महा नवमी
महानवमी हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। आश्विन माह में शुक्ल पक्ष की नवमी या कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की नवमी या फिर मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष की नवमी को 'महानवमी' कहा जाता है। नौ दिनों तक चलने वाले 'नवरात्र' में नवमी की तिथि 'महानवमी' कहलाती है। इस दिन देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप माँ सिद्धिदात्री की पूजा विशेष रूप से की जाती है। यह दुर्गापूजा उत्सव ही है।महानवमी के दिन भक्तजन कुमारी कन्याओं को अपने घर बुलाकर भोजन कराते हैं तथा दान आदि देकर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं।
माँ सिद्धिदात्री
हिन्दू धर्म में विशेष रूप से पूजनीय और नौ दिनों तक चलने वाले 'नवरात्र' का समापन महानवमी पर होता है। नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र के व्रत में हर तरफ़ भक्तिमय माहौल रहता है। नवमी के दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा होती है। माँ दुर्गा अपने नौवें स्वरूप में सिद्धिदात्री के नाम से जानी जाती हैं। आदि शक्ति भगवती का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिनकी चार भुजाएँ हैं। उनका आसन कमल है। दाहिनी ओर नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बाई ओर से नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है। माँ सिद्धिदात्री सुर और असुर दोनों के लिए पूजनीय हैं। जैसा कि माँ के नाम से ही प्रतीत होता है, माँ सभी इच्छाओं और मांगों को पूरा करती हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी का यह रूप यदि भक्तों पर प्रसन्न हो जाता है, तो उसे 26 वरदान मिलते हैं। हिमालय के नंदा पर्वत पर सिद्धिदात्री का पवित्र तीर्थ स्थान है।
सिद्धिदात्री की पूजा
घी का दीपक जलाने के साथ-साथ मां सिद्धिदात्री को कमल का फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा जो भी फल या भोजन मां को अर्पित करें वो लाल वस्त्र में लपेट कर दें। निर्धनों को भोजन कराने के बाद ही खुद खाएं।
प्रार्थना मंत्र
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
कन्या पूजन का महत्व
नवरात्रि व्रत के समापन पर कन्या पूजन का विशेष महत्व माना गया है। मान्यता है कि नौं कन्याओं के पूजन के बाद ही व्रत पूर्ण माने जाते हैं। दुर्गा सप्तशती में भी कन्या पूजन का महत्व विस्तार से बताया गया है। नवरात्रि के दिनों में कन्याओं को अपार शक्ति मां जगदंबा का स्वरूप मानकर आदर-सत्कार करने एवं भोजन कराने से घर में सुख-समृद्धि व मां दुर्गा की कृपा बनी रहती है।