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धूम्रपान के लगाम पर जन-जागरूकता की आवश्यकता

Date : 31-May-2023

तंबाकू-खैनी से होने वाली आकस्मिक मौतों के मामले में हिन्दुस्तान दुनिया के दूसरे नंबर पर है। हाल ही में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट बताती है कि अस्सी के दशक तक धूम्रपान के सेवन से उतना नुकसान नहीं होता था, जितना अब होता है, क्योंकि कंपनियां जानबूझकर लोगों की सेहत से खिलवाड़ कर रही हैं। धूम्रपान पदार्थों में बेहिसाब केमिकल का इस्तेमाल होने लगा है?

तंबाकू में कुप्रभाव डालने वाले मुख्य तत्व निकोटीन, पुसिक एसिड, निकिल ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड व कोबाल्ट ऑक्साइड होते हैं। इन पदार्थों का सूक्ष्म मात्रा में सेवन भी अत्यधिक हानिकारक होता है। इससे सामान्य त्वचा रोग से लेकर पागलपन, नपुंसकता व मृत्यु तक संभव है। देहातों में पुरुष के अलावा महिलाएं भी अब अत्यधिक धूम्रपान करने लगी हैं। शहरों में पहले आधुनिकता के नाम पर महिलाएं दिखावे के रूप में सिगरेट, गुटखा के अलावा नशीले पदार्थ का इस्तेमाल करती थीं। अब इसका चलन बढ़ गया है। महिलाओं में तंबाकू आदि का सेवन चिंतनीय है, क्योंकि तंबाकू के सेवन से महिलाओं में बांझपन का खतरा बढ़ जाता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार हिन्दुस्तान में प्रतिवर्ष पांच लाख लोगों की ज़िंदगी तंबाकू के सेवन के चलते खत्म हो जाती है। धूम्रपान भी कोरोना, ब्लैक-व्हाइट फंगस जैसी महामारी से कम नहीं है, बस तरीका थोड़ा भिन्न है। सुट्टा मारने और खैनी चबाने की लत में युवा जकड़े हैं। चिकित्सीय रिसर्च भी बताती हैं कि खैनी चबाने वाला प्रत्येक दसवां व्यक्ति कैंसर से पीड़ित हो रहा है। सभी जानते हैं कि मुंह का कैंसर तंबाकू के सेवन से फैलता है। एक बार शुरुआत हो जाए तो एकाध वर्ष में इंसान का जीवन खत्म हो जाता है। तमाम तरह के दुष्परिणामों को जानते हुए भी लोग अपनी सारी कमाई तंबाकू चबाने में उड़ा देते हैं। यह एक ऐसी लत है जो एक बार लग गई, फिर आसानी से नहीं छूटती। धूम्रपान को त्यागना हम आप पर ही निर्भर करता है, इसमें दूसरा कोई भूमिका नहीं निभा सकता।

गौर करें तो धूम्रपान की गति घटने के बजाय निरंतर बढ़ रही है। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों की स्थिति अन्य राज्यों के मुकाबले बेहद खतरनाक है। ये दोनों राज्य नशे में उड़ रहे हैं। पंजाब पाकिस्तान का बॉर्डर राज्य है। जहां सीमा पर से चोरी छिपे और ड्रोन के जरिए मादक पदार्थों की खेपें आती ही रहती हैं। हालांकि उसे रोकने के लिए प्रशासनिक स्तर पर लगातार पकड़-धकड़ भी की जाती है लेकिन उस तरफ के लोग अपने मंसूबों में अंजाम देने में कामयाब हो रहे हैं। निश्चित रूप से ये समस्या शासन-प्रशासन के लिए सिरदर्द बन चुकी है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट बताती है कि बीते एक दशक में धूम्रपान करने वालों में सबसे ज्यादा युवा पीढ़ी है, जिसकी उम्र महज 15 से 18 वर्ष के बीच है। निश्चित रूप ये आंकड़े सभ्य संसार को सोचने पर मजबूर करते हैं कि आखिर युवा पीढ़ी बढ़ किस ओर रही है। इतना तय है कि धूम्रपान के खिलाफ सिर्फ हुकूमतें ही अपने बूते नहीं लड़ सकतीं, समाज को भी उनके साथ कदमताल करना होगा, क्योंकि जब तक सामाजिक स्तर पर प्रत्येक देशवासी चौकन्ना नहीं होगा, सुधार नहीं होने वाला। इस लड़ाई की शुरुआत हमें सबसे पहले अपने घर से करनी होगी, अपने बच्चों पर नजर रखने के साथ-साथ पड़ोसियों पर भी निगरानी रखनी होगी। क्योंकि नए जमाने के युवा सिगरेट, तंबाकू के खाने-पीने को सिर्फ शौक ही नहीं समझते, बल्कि इसे आधुनिक स्टेटस सिंबल मानते हैं। ऐसा भी नहीं है कि ये वर्ग धूम्रपान के दुष्प्रभावों से अनजान हैं। सब कुछ जानते हुए भी, मौत को गले लगाने को आतुर हैं।

नशा वस्तुतः नशा करने वाले इंसान को ही नहीं नाश करता, बल्कि समूचे परिवार को भी उजाड़कर तहस-नहस कर देता है। इस दंश को जो झेलता है, वह इस दर्द को अच्छे से समझता है। केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर खुद इस समस्या के भुक्तभोगी हैं, अपने नौजवान बेटे को खो चुके हैं। वह विगत तीन-चार वर्षों से नशामुक्ति को लेकर एक बड़ा अभियान छेड़े हुए हैं। युवाओं से धूम्रपान न करने की गुजारिश करते हैं। दरअसल, उनका धूम्रपान के दुष्प्रभाव से सीधा मुकाबला हुआ है। उनके पुत्र की दर्दनाक मौत इसी के चलते कुछ साल पहले हुई थी। जो अपने पीछे पत्नी और एक दुधमुंहे बच्चे को छोड़कर गए। ऐसी कहानियां संभ्रांत परिवारों तक ही नहीं है, बल्कि घर-घर में पहुंच चुकी है। ऐसी घटनाओं से सीख लेकर हमें खुद भी बचना होगा और दूसरों को भी बचाना होगा।

धूम्रपान के संबंध में एक कड़वी सच्चाई है, जो उजागर तो नहीं होती, पर पानी की तरह साफ है। दरअसल, इस समस्या के मूल रूप से दो पहलू हैं। पहला,पदार्थों का उत्पादन और दूसरा धूम्रपान की वस्तुओं की बढ़ती मांग। दोनों विषयों की गंभीरता को अपने विवेक से समझने की आवश्यकता है। जब लोग गुटका, खैनी, सिगरेट व तंबाकू आदि की अत्यधिक मांग करेंगे तभी धूम्रपान पदार्थों के उत्पादनों में उछाल आएगा। उत्पादन को बढ़ाने और रोकने की ताकत बेशक हुकूमत के हाथों में होती है लेकिन इस विषय में सरकारें ज्यादा हाथ इसलिए नहीं डालतीं, क्योंकि ये ऐसा कमाई का क्षेत्र है, जिससे उनका खजाना भरता है। धूम्रपान की चीजों में लगने वाला भारी भरकम टैक्स ही तो सरकारों के राजस्व में बढ़ोतरी करता है। इसके बाद सोचने-समझने की शायद जरूरत नहीं है कि ये विषय सरकारों के लिए कितना लाभदायक है और आमजन के लिए कितना नुकसानदायक?

 
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