ब्रिटिश राज में कलेक्टर-एसपी जैसे महत्वपूर्ण पदों पर अंग्रेजों का ही चयन होता था। साल 1832 में भारतीयों के लिए मुंसिफ और सदर अमीन पद बनाए गए। फिर महत्वपूर्ण पदों पर भारतीयों को नियुक्त करना शुरू किया। पहले भारतीय आईएएस बनने का गौरव विश्वविख्यात कवि रवींद्रनाथ टैगोर के बड़े भाई सत्येंद्रनाथ टैगोर को मिला।
सत्येंद्रनाथ टैगोर का जन्म 1 जून 1842 को कोलकाता में हुआ था. उन्होंने कोलकाता के मशहूर ‘प्रेसिडेंसी कॉलेज’ से पढ़ाई की थी. भारत में राज कर रही ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा सिविल सेवकों को चुनने की प्रकिया को लेकर कई तरह के सवाल उठने लगे, क्योंकि इसमें भारतीयों को बराबर मौका नहीं मिला था। इसलिए साल 1854 में लंदन में सिविल सर्विस कमीशन का गठन किया गया। भारत में अधिकारियों की नियुक्ति के लिए सिविल सर्विस की परीक्षा की शुरुआत हुई।अंग्रेजों ने भले ही दुनिया को दिखाने के लिए सिविल सर्विस कमीशन का गठन कर दिया, लेकिन वह बिल्कुल नहीं चाहते थे कि कोई भारतीय इस परीक्षा को पास करे। ऐसे में अंग्रेजों ने तय किया कि यह परीक्षा सिर्फ लंदन में होगी। ऐसे में हर किसी भारतीय के लिए लंदन पहुंचना मुमकिन नहीं था। दूसरा परीक्षा के सिलेबस को इस तरह से तैयार किया गया था कि भारतीयों के लिए परीक्षा पास करना मुश्किल थी। परीक्षा में यूरोपीय क्लासिक के लिए ज्यादा नंबर रखे गए। सिविल सर्विस कमीशन का गठन होने और परीक्षा शुरू होने पर लग रहा था कि कोई भारतीय इस परीक्षा को पास कर अंग्रेजों के जमाने में अफसर शायद ही बन पाए, मगर अंग्रेजों के इस गुरुर को सत्येंद्रनाथ टैगोर ने तोड़ा। 1857 में कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षाओं के लिए उपस्थित होने वाले छात्रों के पहले बैच का हिस्सा था। उसे पहले डिवीजन में रखा गया था और प्रेसीडेंसी कॉलेज में भर्ती कराया गया था। उनके दोस्त मनमोहन घोष ने प्रोत्साहन और समर्थन की पेशकश की, और दोनों ने सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी करने और प्रतिस्पर्धा करने के लिए 1862 में इंग्लैंड के लिए पाल स्थापित किया।जिसे आधिकारिक तौर पर ‘इंपीरियल सिविल सर्विस‘ के रूप में जाना जाता है. ब्रिटिश शासन के दौरान सन 1858 और 1947 के बीच ये भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की ‘उच्च सिविल सेवा’ थी. ब्रिटिशकाल के दौरान सन 1861 में ‘इंडियन सिविल सर्विसेज एक्ट 1861’ के तहत ‘भारतीय सिविल सेवा’ का गठन किया गया. इसके बाद जून 1863 में सत्येंद्रनाथ टैगोर (पहले भारतीय) का चयन हुआ था. इससे पहले तक केवल अंग्रेज़ ही इस पद के लायक समझे जाते थे. । उन्होंने अपना प्रोबेशनरी प्रशिक्षण पूरा किया और नवंबर 1864 में भारत लौट आए। मनमोहन घोष आईसीएस के लिए परीक्षा में सफल नहीं हुए, लेकिन उन्हें बाद में बुलाया गया। सत्येंद्रनाथ को बॉम्बे प्रेसीडेंसी में नियुक्त किया गया था, जो तब महाराष्ट्र, गुजरात और सिंध के पश्चिमी हिस्सों को कवर करता था। बॉम्बे (अब मुंबई) में चार महीने की प्रारंभिक पोस्टिंग के बाद, उनकी अहमदाबाद में पहली सक्रिय पोस्टिंग थी। कई शहरों में पोस्टिंग के साथ, उन्होंने देश भर में यात्रा की। लंबे समय तक घर से दूर रहने के कारण, उनके परिवार के सदस्य उनसे मिलने गए और लंबे समय तक उनके साथ रहे। उनके नियमित आगंतुकों में उनके छोटे भाई ज्योतिंद्रनाथ, रवींद्रनाथ और उनकी बहन स्वर्णकुमारी देवी थीं। बंगाल के बाहर उनकी पोस्टिंग ने उन्हें कई भारतीय भाषाओं को सीखने में मदद की। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक की गीतरहस्य और तुकाराम की अभंग कविताओं का बंगाली में अनुवाद किया। 1882 में, सत्येंद्रनाथ कर्नाटक के करवार में जिला न्यायाधीश थे। उन्होंने लगभग तीस वर्षों तक आईसीएस में सेवा की और 1897 में महाराष्ट्र में सतारा के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए। सिविल सर्विस परीक्षा में ज़्यादा से ज़्यादा भारतीय भाग ले सके, इसके लिए भारतीयों ने क़रीब 50 सालों तक संघर्ष किया. इस दौरान भारतीय चाहते थे कि ये परीक्षा लंदन की बजाय भारत में आयोजित की जाये, लेकिन ब्रिटिश सरकार इसके ख़िलाफ़ थी. भारतीयों के लगातार प्रयास और याचिकाओं के बाद आख़िरकार ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा और सन 1922 से ये परीक्षा भारत में होने लगी. 30 साल तक ‘सिविल सर्वेंट’ की नौकरी करने के बाद सन 1897 में सत्येंद्रनाथ टैगोर महाराष्ट्र के ‘सतारा’ के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत हो गये. रिटायरमेंट के बाद वो कलकत्ता लौट आये और साहित्य लेखन में लग गये. क़रीब 20 सालों तक देश-विदेश में बतौर लेखक, कवि, साहित्यकार, संगीतकार, समाज सुधारक और भाषाविद प्रसिद्धि हासिल करने के बाद 9 जनवरी, 1923 को कोलकाता में उनका निधन हो गया.