महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं
सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः
केदारमीशं शिवमेकमीडे॥
जब भी भारत के तीर्थ स्थलों का नाम लिया जाता है तो उसमें केदारनाथ धाम का नाम मुख्य रूप से लिया जाता है। भगवान शिव का यह भव्य ज्योतिर्लिंग धाम हिमालय की गोद में उत्तराखंड में स्थित है। भगवान शिव का यह केदारनाथ धाम केवल भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग की श्रृंखला में ही नहीं बल्कि भारत और उत्तराखंड के चार धाम और पंच केदार की श्रृंखला में भी गिना जाता है।
केदारनाथ का अर्थ है 'क्षेत्र का स्वामी या केदार खंड' क्षेत्र, जो इस क्षेत्र का ऐतिहासिक नाम है। इस मंदिर का निर्माण कल्चुरी शैली से किया गया है और इसके निर्माता पांडव वंश जनमेजय है। केदारनाथ मंदिर का निर्माण द्वापर युग में हुआ था। इस मंदिर में स्थित स्वयंभू शिवलिंग बहुत ही प्रचलित एवं प्राचीन है।
केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड।
केदारनाथ मंदिर न सिर्फ तीन पहाड़ बल्कि पांच नदियों का संगम भी है यहां- मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी । इन नदियों में से कुछ का अब अस्तित्व नहीं रहा लेकिन अलकनंदा की सहायक नदी मंदाकिनी आज भी मौजूद है।
केदारनाथ मंदिर की पौराणिक कथा
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना का ऐतिहासिक आधार तब निर्मित हुआ जब एक दिन हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार एवं महातपस्वी नर और नारायण तप कर रहे थे। उनकी तपस्या से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए तथा उनकी प्रार्थना के फल स्वरूप उन्हें आशीर्वाद दिया कि वह ज्योतिर्लिंग के रूप में सदैव यहां वास करेंगे।
केदारनाथ मंदिर के बाहरी भाग में स्थित नंदी बैल के वाहन के रूप में विराजमान एवं स्थापित होने का आधार तब बना जब द्वापर युग में महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या अर्थात (परिवार वालो की हत्या) के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे | परंतु भगवान शंकर उनसे नाराज थे। पांडव भगवान शंकर के दर्शन के लिए काशी पहुंचे परंतु भगवान शंकर ने उन्हें वहां दर्शन नहीं दिए। इसके पश्चात पांडवों ने हिमालय जाने का फैसला किया और हिमालय तक पहुंच गए परंतु भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे इसलिए भगवान शंकर वहां से भी अंतर्ध्यान हो गए और केदार में वास किया। पांडव भी भगवान शंकर का आशीर्वाद पाने के लिए एकजुटता से और लगन से भगवान शंकर को ढूंढते ढूंढते केदार पहुंच गए।
भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण करके अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था कि भगवान शंकर इन पशुओ के झुण्ड में उपस्थित है । तभी भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिए ।
अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल का रूप धारण कर पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। तब भीम पूरी ताकत से बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि अंतर्ध्यान करने लगा। तब भीम ने बैल का पीठ का भाग पकड़ लिया। और भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तुरंत दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ धाम में पूजे जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शंकर नंदी बैल के रूप में प्रकट हुए थे तो उनका धड़ से ऊपरी भाग काठमांडू में प्रदर्शित हुआ था तथा वहां अब पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर स्थापित है। भगवान शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, भगवान शिव का मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में तथा भगवान शंकर की जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट हुई थी। इन्हीं विशेषताओं के फलस्वरुप श्री केदारनाथ को पंचकेदार भी कहा जाता है।
400 वर्ष तक बर्फ लुप्त में था केदारनाथ धाम
2013 में आयी भीषण आपदा ने पूरे केदारघाटी में भारी तबाही मचाई, हज़ारों लाखों लोग गायब हो गए, कई मौत की नींद सो गए लेकिन हैरानी की बात ये है कि इस भयावह मंज़र तथा आस पास का पूरा क्षेत्र तबाह होने के बावजूद भी मंदिर पर एक खरोंच तक नहीं आयी। इससे पहले भी चार सौ सालों तक बर्फ में दबे रहने के बावजूद भी केदारनाथ मंदिर सुरक्षित बाहर निकला। मंदिर के सुरक्षित रहने पीछे का वैज्ञानिक तर्क ये है कि इसे एक ऐसी तकनीक से बनाया गया है जो आपदा तथा बर्फ की मार को आसानी से झेल सकती है। दरअसल 6 फुट ऊँचे चूबतरे में बने इस केदारनाथ मंदिर का निर्माण कटवां पत्थर के विशाल शिलाखंडों को आपस में जोड़कर बनाया गया है यानी की मंदिर को बनाने के इंटरलॉकिंग तकनीक का प्रयोग किया गया इसलिए आज तक यह मंदिर आज भी सुरक्षित है।
भविष्य में केदारनाथ मंदिर के लुप्त होने की भविष्यवाणी की गयी है। माना जाता है जिस दिन नर या नारायण पर्वत आपस में मिल जायेंगे, उस दिन केदारनाथ ज्योतिर्लिंग गायब हो जायेगा या हो सकता है कि फिर से हिमयुग आये और फिर से केदारनाथ मंदिर बर्फ के अंदर दब जाए या फिर हो सकता है कि ये मंदिर ग्लेशियर के अंदर दब जाए। लेकिन क्या इन सब के बावजूद भी ये मंदिर फिर से सुरक्षित रहेगा?
भविष्य की गर्भ में क्या छुपा है यहाँ किसी को ज्ञात नहीं है परन्तु 400 वर्ष तक बर्फ में लुप्त होने के बावजूद केदारनाथ सुरक्षित है और भक्तो के आस्था का केंद्र बना हुआ है |