स्वतंत्रता संघर्ष के ऐतिहासिक युग की जब भी किताबों और लेखों में बात होती है, तो वहां कुछ गिने-चुने ही महान क्रांतिकारी और समाज सुधारकों की चर्चा होती है। स्वतंत्रता सेनानियों की इस सूची में कुछ ऐसे नाम भी शामिल हैं जो लोकप्रियता, लंबे-लंबे भाषणों और राजनीति करने वालों के पीछे कहीं छिप से गए। ऐसा ही एक नाम है समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी, गांधीवादी और भारतीय हस्तकला के क्षेत्र में नई रोशनी की किरण लाने वाली ‘कमलादेवी चट्टोपाध्याय’ का।
कमलादेवी अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी नारीवादी आंदोलन में भी एक प्रमुख भूमिका थीं। 1920 के दशक के अंत से लेकर 1940 के दशक और आगे भी, कमलादेवी भारतीय महिलाओं और राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए एक दूत बन गईं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कारणों की भी वकालत की - जैसे कि नस्लवाद और राष्ट्रों के बीच राजनीतिक और आर्थिक समानता। उन्होंने 1929 में बर्लिन में महिलाओं के अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन में भी भाग लिया।
प्रकृति की दीवानी कमला देवी ने ‘ऑल इंडिया वीमेन्स कांफ्रेंस’ की स्थापना की. वह बहुत दिलेर थीं और पहली ऐसी भारतीय महिला थीं, जिन्होंने 1920 के दशक में खुले राजनीतिक चुनाव में खड़े होने का साहस जुटाया था, वह भी ऐसे समय में जब बहुसंख्यक भारतीय महिलाओं को आजादी शब्द का अर्थ भी नहीं मालूम था. ये गांधी जी के ‘नमक आंदोलन’ और ‘असहयोग आंदोलन’ में हिस्सा लेने वाली महिलाओं में से एक थीं.
नमक कानून तोड़ने के मामले में बांबे प्रेसीडेंसी में गिरफ्तार होने वाली वे पहली महिला थीं. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वे चार बार जेल गईं और पांच साल तक सलाखों के पीछे रहीं.
कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने देश के विभिन्न हिस्सों में बिखरी समृद्ध हस्तशिल्प तथा हथकरघा कलाओं की खोज की दिशा में अद्भुत एवं सराहनीय कार्य किया। कमला चट्टोपाध्याय पहली भारतीय महिला थीं, जिन्होंने हथकरघा और हस्तशिल्प को न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
आजादी के बाद इन्हें वर्ष 1952 में ‘आल इंडिया हेंडीक्राफ्ट’ का प्रमुख नियुक्त किया गया। ग्रामीण इलाकों में इन्होंने घूम-घूम कर एक पारखी की तरह हस्तशिल्प और हथकरघा कलाओं का संग्रह किया। इन्होंने देश के बुनकरों के लिए जिस शिद्दत के साथ काम किया, उसका असर यह था कि जब ये गांवों में जाती थीं, तो हस्तशिल्पी, बुनकर, जुलाहे, सुनार अपने सिर से पगड़ी उतार कर इनके कदमों में रख देते थे। इसी समुदाय ने इनके अथक और निःस्वार्थ मां के समान सेवा की भावना से प्रेरित होकर इनको ‘हथकरघा मां’ का नाम दिया गया।
भारत में आज अनेक प्रमुख सांस्कृतिक संस्थान इनकी दूरदृष्टि और पक्के इरादे के परिणाम हैं. जिनमें प्रमुख हैं- नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, संगीत नाटक अकेडमी, सेन्ट्रल कॉटेज इंडस्ट्रीज एम्पोरियम और क्राफ्ट कौंसिल ऑफ इंडिया. इन्होंने हस्तशिल्प और को-ओपरेटिव आंदोलनों को बढ़ावा देकर भारतीय जनता को सामाजिक और आर्थिक रूप से विकसित करने में अपना योगदान दिया. हालांकि इन कार्यों को करते समय इन्हें आजादी से पहले और बाद में सरकार से भी संघर्ष करना पड़ा.
पुस्तकें-
कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने ‘द अवेकिंग ऑफ इंडियन वोमेन’ वर्ष 1939, ‘जापान इट्स विकनेस एंड स्ट्रेन्थ’ वर्ष 1943, ‘अंकल सैम एम्पायर’ वर्ष 1944, ‘इन वार-टॉर्न चाइना’ वर्ष 1944 और ‘टुवर्ड्स ए नेशनल थिएटर’ नामक पुस्तकें भी लिखीं, जो बहुत चर्चित रहीं।
पुरस्कार एवं सम्मान-
· समाज सेवा के लिए भारत सरकर ने इन्हें नागरिक सम्मान ‘पद्म भूषण’ से वर्ष 1955 में सम्मानित किया.
· वर्ष 1987 में भारत सरकर ने अपने दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से इन्हें सम्मानित किया.
· सामुदायिक नेतृत्व के लिए वर्ष 1966 में इन्हें ‘रेमन मैग्सेसे’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
· इन्हें संगीत नाटक अकादमी की द्वारा ‘फेलोशिप और रत्न सदस्य’ से सम्मानित किया गया.
· संगीत नाटक अकादमी के द्वारा ही वर्ष 1974 में इन्हें ‘लाइफटाइम अचिवेमेंट’ पुरस्कार भी प्रदान किया गया था.
· यूनेस्को ने इन्हें वर्ष 1977 में हेंडीक्राफ्ट को बढ़ावा देने के लिए सम्मानित किया था.
· शान्ति निकेतन ने अपने सर्वोच्च सम्मान ‘देसिकोट्टम’ से सम्मानित किया.