हमारे न्यूज़ पोर्टल द्वारा एक श्रृंखला प्रकाशित किया जा रहा है , जिसमे हम उन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक को स्मरण कर रहे जिनके बलिदान और त्याग का वर्तमान समय में कोई उल्लेख नहीं है |
इस शृंखला द्वारा हम समाज की स्मृति में यह बात का पुनः स्मरण करवाना चाहते है| स्वतंत्रता संग्राम में समाज के बहुत बड़े वर्ग ने जो जाति धर्म से ऊपर उठ कर एक अखंड भारत के स्वतंत्रता के लिए बलिदान दिया है |उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी की भारत एक खंडित स्वरुप में प्राप्त होगा |आज हम पांडुरंगा सेनापति बापट के बारे में बात करेंगे-
पांडुरंगा सेनापति बापट का जन्म 12 नवंबर 1880 को पारनेर में एक मराठी चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने डेक्कन कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की और फिर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए सरकारी छात्रवृत्ति पर ब्रिटेन की यात्रा की। ब्रिटेन में रहने के दौरान, उन्होंने अपना अधिकांश समय अपनी आधिकारिक पढ़ाई के बजाय बम बनाने का कौशल सीखने में बिताया। 1912 में उन्हें बमबारी के सिलसिले में गिरफ्तार कर लिया गया और जेल की सज़ा सुनाई गई।
उन्होंने टाटा कंपनी द्वारा मुसली बांध के निर्माण के खिलाफ गांधीजी के विरोध के साथ खुद को फिर से जोड़ लिया। अंततः बांध का निर्माण किया गया और इस प्रकार विरोध अंततः विफल हो गया। निर्माण परियोजना में तोड़फोड़ के आरोप में उन्हें जेल भेजा गया था। उनकी तीसरी जेल की सजा सुभाष चंद्र बोस द्वारा आयोजित एक सार्वजनिक सभा में बोलने के लिए थी।
इनके जीवन का स्मरण करे तो हमें यह बात ध्यान में आती है कि समाज और देश अखंड रहे है | आज भारत विरोधी वो सारी शक्तियां हैं जो विदेशी धन से पोषित होती है एवं देश और समाज को खंडित करने के धैय से कार्य कर रही है |
आज आजादी के 75 वर्ष बाद पुनः इन विकृत मानसिकता से परिपूर्ण शक्तियों को पहचानना होगा एवं इन्हे निर्मूल करना होगा, यही इन स्वतंत्रता सेनानियों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी |