क्रमांक 12. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक | The Voice TV

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सपनों को हकीकत में बदलने से पहले, सपनों को देखना ज़रूरी है – डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम

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क्रमांक 12. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक

Date : 09-Aug-2023

दिन - बुधवार , 09 अगस्त  2023,

श्रृंखला क्रमांक12

हमारे न्यूज़ पोर्टल द्वारा एक श्रृंखला प्रकाशित  की जा रही है , जिसमे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी को स्मरण कर रहे  हैं | जिनके  बलिदान और त्याग को  वर्तमान   समाज भूल सा गया है और आज उनका कही उल्लेख भी नहीं है |

इस शृंखला द्वारा हम  समाज की स्मृति  में यह बात का पुनः स्मरण करवाना चाहते है कि स्वतंत्रता संग्राम में समाज के बहुत बड़े वर्ग ने  जाति  धर्म से ऊपर उठ कर एक अखंड भारत के  स्वतंत्रता के लिए प्राण न्योछावर  किये थे  | उन्होंने इस बात की कभी कल्पना भी नहीं कि थी की  स्वतन्त्र भारत एक खंडित स्वरुप में प्राप्त होगा |

इनके जीवन का स्मरण करे तो हमें यह बात ध्यान में आती है कि समाज और देश अखंड रहे है | आज भारत विरोधी वो सारी शक्तियां हैं जो विदेशी धन से पोषित होती है। देश और समाज को  खंडित करने के ध्येय  से कार्य कर रही है |

आज आजादी  के 75 वर्ष बाद पुनः इन विकृत मानसिकता से परिपूर्ण शक्तियों को पहचानना होगा एवं इन्हे निर्मूल करना होगा, इन स्वतंत्रता सेनानियों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी |

आज की श्रंखला में हम  जिनका स्मरण करेंग उन स्वतन्त्रता सेनानियों का  नाम इस प्रकार है -

1.    सुंदर लाल वैद्य

2.    स्वामी प्रसाद पस्तोर

3.    किशोरी शरण चतुर्वेदी

4.    प्रेम नारायण खरे

5.    राम पालक उपाध्याय

*संक्षिप्त विवरण*

 1.सुंदर लाल वैद्य

सुन्दर लाल वैद जानकी प्रसाद के पुत्र थे और भरथना कस्बे, जिला इटावा के निवासी थे। वह स्थानीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे। 12 अगस्त 1942 को प्रातः 10 बजे से दोपहर 12 बजे तक लगभग 4000 लोगों की भारी भीड़ भरथना कस्बे में घूमती रही। यह एक जन आंदोलन था जो कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी के बाद शुरू हुआ और विभिन्न चरणों में निम्नलिखित गतिविधियाँ की गईं: - उन्होंने मवेशी तालाब के गेट और ताले को तोड़ दिया और पकड़े गए मवेशियों को मुक्त कर दिया। आनंद माधो और बृजमोहन ने तहसील भवन पर कांग्रेस का झंडा फहराया। उन्होंने लोगों को दुकानें बंद करने के लिए मजबूर किया और जो लोग अनिच्छुक थे उनकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। वे रेलवे स्टेशन गए और एक ठेला फेंक दिया। वे वापस पूर्वी केबिन की ओर भागे और टेलीग्राफ के तार काट दिये। उन्होंने डाकघर की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया।

सुंदर लाल को दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई - आईपीसी की धारा 143 के तहत छह महीने के लिए कठोर कारावास, आईपीसी की धारा 147 के तहत दो साल के लिए कठोर कारावास, आईपीसी की धारा 323 के तहत एक वर्ष के लिए कठोर कारावास, आईपीसी की धारा 395 के तहत छह महीने के लिए कठोर कारावास। , आईपीसी की धारा 427 के तहत दो साल का कठोर कारावास, आईपीसी की धारा 448 के तहत एक साल का कठोर कारावास, आईपीसी की धारा 451 के तहत सात साल का कठोर कारावास, धारा 17 सीआरपीसी के तहत कठोर कारावास। संशोधन अधिनियम आईपीसी के तहत छह महीने का कठोर कारावास, डीआईआर के नियम 35 ()(बी)(सी)(डी) के तहत सात साल का कठोर कारावास और 200 रुपये जुर्माना, भुगतान करने पर छह महीने का अतिरिक्त कठोर कारावास। डीआईआर के नियम 35 (1)(2) के तहत सात साल का कठोर कारावास, डीआईआर के नियम 38 () के तहत

2.स्वामी प्रसाद पस्तोर

स्वामी प्रसाद पस्तोर का जन्म मध्यप्रदेश के एक छोटे से जिले टीकमगढ़ के ग्राम बड़ा लिधौरा में हुआ था। आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आपके पिता का नाम स्व.श्री रामचरण पस्तोर जी एवं माता जी का नाम स्व. श्रीमती रुकमणि देवी पस्तोर है।

श्री पस्तारे जी ने इंटरमीडियट तक शिक्षा ग्रहण की आरै अपने विद्याथी्र जीवन से स्वतत्रंता संग्राम मंे शामिल हएु। वर्तमान मंे शासन द्वारा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सम्मान निधि प्राप्त कर रहे है। आपने भूदान यज्ञ में पाँच साल तक श्री बिनोवा भावे जी के कार्य सम्पन्न किये। आप राजनीति मंे भी बहुत सक्रिय रहे है। आप चालीस वर्षो तक जिला सहकारी भूिम विकास बैंक के अध्यक्ष रहे। आप छः साल तक समाजवादी मंच के जिलाध्यक्ष रहे।  लगभग पन्द्रह साल तक म.प्र. राज्य सहकारी भूमि विकास के संचालक रहकर अपने दायित्वों का निर्वहन करते रहे। आपका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि आपने बिना किसी पार्टी में रहकर  चुनाव में निर्दलीय खड़े होकर भी विजय हासिल की। आप सन् 1980 ई. से सन् 1985 ई. तक निर्दलीय विधायक रहे।

राजनीति के साथ-साथ आप पत्रकारिता के क्षेत्र में भी बहुत सक्रिय रहे। कुछ समय तब आपने टीकमगढ़ जिले से प्रकाशित ‘साप्ताहिक ओरछा टाइम्स’ के संपादन कार्य को बखूबी किया है और बाद में अर्थबोध साप्ताहिक समाचार पत्र के संपादक भी रहे। 

दस वर्षो तक लगातार श्रमजीवी पत्रकार संघ के जिलाध्यक्ष के पद को सुशाेिभत किया। आपको पत्रकारिता के क्षेत्र मंे उल्लेखनीय योगदान के लिए ‘बनारसी दास जी चतुर्वेदी अवार्ड’ से सम्मानित किया गया।

श्री पस्तोर जी साहित्य लेखन में भी रुचि रखते है। इनका एक काव्य संग्रह ‘सारा देश मौन है’ सन्-2018 ई. में प्रकाशित हो चुका है। आज भी लिधौरा को आदरणीय भैया स्वामी प्रसाद पस्तोर के नाम से जाना जाता है।

3.किशोरी शरण चतुर्वेदी

आपका जन्म 15 जुलाई सन् 1933. को ग्राम डंगराना जिला ललितपुर उत्तरप्रदेश में हुआ था। आपके पिता का नाम स्व. श्री बल्दवे प्रसाद था एवं माता जी का नाम स्व. श्रीमती सरयूदेवी था। आपने शिक्षा सवाई महेन्द्र हाई स्कूल टीकमगढ़ शिक्षा प्राप्त की सन्. 1966. के सागर विश्वविद्यालय से बी.. एवं सन 1968. मंे एम.. की उपाधि हासिल की।

 .बी.एम. स्कूल में सन् 1952. में शासकीय सेवा में दिगौड़ा में आप अध्यापक के पद पर नियुक्त हुए थे। बाद में वर्मा, लिधौरा, खरौ गारे , वर्माडागं, रामनगर आदि स्थानों पर अपनी सेवाएँ देते हुए ग्राम धामना जिला टीकमगढ से सेवानिवृत्त हुए। उनका शिक्षण कार्य अत्यतं सराहनीय था। सन् 1995 . में वह शासकीय सेवा से निवृत्त हो गये। इनका विवाह दिगौडा़ के ही स्व. श्री गगंा प्रसाद जी चौबे की सुपुत्री नन्नी देवी के साथ हुआ था। इन्होंने अपना स्थाई निवास दिगौड़ा को ही बनाया था।

टीकमगढ़ में जब वे पढ़ रहे थे तब उस समय (सन् 1945-1947.) देश मंे चारांे और स्वतत्रंता आदंोलन चल रहे थे तब छात्रसंघ भी स्वतंत्रता में उस दल में अपनी आहुति दे रहा था। मित्रगणों ने छात्र संघ गठन करक, स्वतंत्रता आंदोलन चलाया इस पर उन्हंे शासन द्वारा विद्यालय से निष्कासित कर दिया फिर भी आप ओरछा विद्यार्थी कांग्रेस एवं ओरछा सेवा संघ द्वारा संचालित आंदोलनों में सक्रियता से अपनी सहभागिता देते रहे। यह आंदोलन सन् 1946 . मंे तेजी से चलाया गया। तब चतुर्वेदी जी को दोहरी मार पडी थी। एक ओर विद्यालय से निष्कासित कर दिया गया था तो दूसरी ओर राजदरबार से मिलने वाली आर्थिक सहायता छात्रवृित्त से भी हाथ धोना पडा़ था।

अंग्रेजी शासन के खिलाफ आंदोलन में सक्रिय होने के कारण इन्हंे बहुत यातनाएँ सहनी पड़ी। इनके साथ मारपीट भी की गई और साथ ही ओरछा स्टेट से निष्कासित कर दिया गया था। तब ये निष्कासित अवधि में पहले बानपुर जिला ललितपुर में भूमिगत रहे फिर झाँसी पहुँच गये थे। जब पुलिस बल आंदंोलन करने वाले छात्रांे की धर पकड़ करने लगे तो आप टीकमगढ़ रियासत छोड़कर झाँसी चले गए। झांसी मंे उनकी भेंट स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. परमानंद जी से हुई। उनके विचारों से प्रभावित होकर आपने उनकी गुरूदीक्षा ले ली और यहाँ पर भी आंदाले मंे भाग लेने लगे। उनका काम क्रांतिकारियांे के समाचार यहाँ से वहाँ भेजना, भोजन, क्रांतिकारी सामग्री भेजने का था। राष्ट्रभक्ति का परिचय देते रहे, बालक होने के कारण पुलिस से दूर रहते हुए क्रांतिकारियों का सहयोग करते थे। आपको क्रांतिकारी श्री भगवानदास माहौर, श्री सदाशिवराव मलकापुर आदि क्रांितकारियांे का सानिध्य भी प्राप्त हुआ था। श्री किशोरी शरण जी चतुर्वेदी को 15 अगस्त सन् 1989 . को .प्र. के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोती लाल जी बोरा द्वारा प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया था।

श्री किशोरी शरण चतुर्वेदी जी का निधन दिनांक 20 फरवरी सन् 2020 को दिगौड़ा जिला टीकमगढ़ मंे हो गया था। 

 4. प्रेम नारायण खरे

प्रेम नारायण खरे जी का जन्म 15 जून सन् 1910 . को टीकमगढ़ मंे हुआ था। आपके पिता का नाम श्री भगवानदास खरे है। आपका विवाह सन् 1930 . में ग्राम कटेरा निवासी कंचन देवी के साथ हुआ था।

  श्री खरे सन् 1937 . में पं. जवाहर लाल नेहरू की चुनावी सभा मैहरानी उत्तर प्रदेश मंे शामिल हुए और कागं्रेस के सदस्य बन गये थे। सितम्बर सन् 1937 . प्रथम झण्डा सत्याग्रह टीकमगढ़ में श्री खरे को विशेष रूप से दमन लक्ष्य बनाया गया। सात दिवस तब बंदी अवस्था में घोर यातनाएँ दी गयी तथा राज्य से निर्वासित कर दिया गया। श्री खरे जी ने इन घटनाआंे के परचे छपवाने हेतु पत्नी के जेवर भी गिरवी रख दिये। सहयोगिनी श्रीमती कंचन देवी दो आबोध शिशुओं को लेकर मायके में रहने लगी तथा श्री खरे जी तन-मन-धन से स्वाधीनता संग्राम आंदंोलन में कूद पड़े। रियासतों में कांग्रेस का प्रचार उन दिनों इतना जोखिम भरा हुआ था कि इन्हें छिपकर रहना पड़ता था। जनवरी सन् 1939 . में आप टोड़ी फतेहपुर में आंदोलन करते हुए बंद हुए और आठ माह नौगाँव टोड़ी फतेहपुर की जेल में रहे। बाद में राज्य से निष्कासित कर दिये गये। उन दिनों आप टीकमगढ़ जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे। साथ ही वृन्दावन वर्मा झाँसी के सहयोग सेस्वाधीनपत्र का संचालन करते हुए पन्ना, टीकमगढ़ अलीपुरा राज्यांे मंे प्रचार किया। व्यक्तिगत सत्याग्रह करके दिनांक 27-जुलाई सन् 1941. से 21 नवम्बर सन् 1941 . तक झाँसी सेन्ट्रल जेल में रहे जहाँ देवली कैम्प जे के कैदियों की सहानुभूति अनशन करने पर रिहा कर दिया गया। फरवरी सन् 1946 . मंे खरे जी को पुनः वहाँ बंदी बना लिये गये। अतं मंे राज्य को समझौता करना पड़ा। मार्च सन् 1946 . में मैहर राज्य में आंदोलन चलाया गया। जहाँ वंशीपुर जगंल कोठी में खूंखार पहरे में जंगली जानवरों के मध्य बंदी बनाकर 6 माह जेल में रखा गया तथा मूँछों के बालों को चिमटी से उखााड़ कर घोर यातनाएँ दी गयी। उनका प्राणान्त निकट ही था कि महाराजा मैहर को बनारसीदास चतुर्वेदी ने पत्र लिखकर श्री खरे जी को छुड़ाया। थी। सन् 1947. मंे दतियार मंे दीवान विरोधी आंदोलन चलाया गया। नौगाँव सम्मेलन के अनुसार आपको नागौद राज्य में आंदोलन चलाने के लिए नियुक्त किया गया। नवम्बर सन् 1945 . सिद्धपुरा नागौद में श्री खरे जी की घातक पिटाई हुई और अचेत अवस्था में पुलिस द्वारा राज्य की सीमा से बाहर फंेक दिया गया। मैहर मंे उनको विष मिलाकर भी खिलाया गया, उत्तरदायी शासन आंदोलन की प्राप्ति तक उनका जीवन सदैव संघर्षमय तो बीता ही स्वतंत्रता के पश्चात् भी उनका जीवन संघर्षमय ही रहा।

5.राम पालक उपाध्याय

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम पालक उपाध्याय जी बस्ती जिले के एक प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। क्रांतिकारी राम पालक उपाध्याय जी के पिता श्री गोकुल उपाध्याय थे। क्रांतिकारी राम पालक उपाध्याय पिपरा गौतम, बस्ती के रहने वाले थे। क्रांतिकारी राम पालक उपाध्याय की प्राथमिक शिक्षा इन्ही के गाँव में हुई थी। क्रांतिकारी राम पालक उपाध्याय 1932 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिया और इस दौरान पकडे जाने पर उन्हें छह माह की कैद एवं सौ रुपये जुर्माना की सजा हुई। परन्तु किसी कारणवश जुर्माना अदा कर पाने पर छह माह कैद की सजा अतिरिक्त मिली। इसके अलावा उन्होंने व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान 1941 में तीन माह कैद और बीस रुपये जुर्माने की सजा पायी। और अंत में करो या मरो के सन्देश के साथ चल रहे भारत छोड़ो आन्दोलन, 1942 में भाग लेने के कारण भारत रक्षा कानून की धारा 34 के अंतर्गत क्रांतिकारी राम पालक उपाध्याय को अठारह माह कैद की सजा मिली।

 

 

 

 

 

 

 

 
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