क्या है NISAR मिशन? नासा और इसरो की भूमिका कितनी है
Date : 27-Oct-2024
निसार सैटेलाइट के मिशन को सफल बनाने के लिए नासा और इसरो ने मिलकर इसके रडार एंटीना रिफ्लेक्टर का निर्माण किया है, जिसे अब भारत के बेंगलुरु भेजा जा रहा है। इस संदर्भ में यह सवाल उठता है कि निसार मिशन क्या है, इसे कब लॉन्च किया जाएगा, और इसमें नासा तथा इसरो की भूमिकाएं क्या हैं?
निसार एक ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट है, जिसका उद्देश्य पर्यावरणीय बदलावों और प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी करना है। यह सैटेलाइट अपनी उन्नत रडार इमेजिंग तकनीक के माध्यम से धरती के पारिस्थितिकी तंत्र में होने वाले बदलावों, बर्फ के पिघलने, भूकंप, और सुनामी जैसी आपदाओं का आंकलन करेगा। इसके द्वारा संकलित आंकड़ों का उपयोग न केवल वैज्ञानिकों द्वारा किया जाएगा, बल्कि यह मिशन पृथ्वी पर जीवन को बेहतर बनाने और प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने में भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
कुछ ही दिनों में रडार एंटीना रिफ्लेक्टर बेंगलुरु पहुंच जाएगा, जहां इसे इसरो की एक सुविधा में रडार सिस्टम के साथ पुनः जोड़ा जाएगा। इसके बाद, यह मिशन अपने लॉन्च के करीब एक कदम और बढ़ जाएगा, और इसे 2025 की शुरुआत में लॉन्च किया जाएगा। यह मिशन अंतरराष्ट्रीय स्पेस सहयोग और धरती के ऑब्जर्वेशन के क्षेत्र में एक नए अध्याय की शुरुआत करेगा। रिफ्लेक्टर नासा के इस मिशन में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ सहयोग का एक महत्वपूर्ण योगदान है।
नासा और इसरो ने इस सैटेलाइट में क्या योगदान दिया?
NISAR सैटेलाइट को 3 से 5 साल तक कार्य करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना के विकास के लिए 2014 में ISRO और NASA के बीच एक एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस सैटेलाइट में दो अलग-अलग रडार हैं: एक एस-बैंड रडार जिसे ISRO ने विकसित किया है, और दूसरा एल-बैंड रडार, जिसे NASA ने बनाया है।
इसरो ने अहमदाबाद के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर में एस-बैंड रडार तैयार किया है, इसके साथ ही सैटेलाइट के लिए स्पेसक्राफ्ट बस और जीएसएलवी लॉन्च सिस्टम भी उपलब्ध कराया है। दूसरी ओर, NASA ने स्पेसक्राफ्ट बस में एल-बैंड रडार, GPS, उच्च क्षमता वाले सॉलिड डेटा रिकॉर्डर और पेलोड डेटा सबसिस्टम जैसे महत्वपूर्ण उपकरण शामिल किए हैं। नासा और इसरो की यह साझेदारी न केवल दोनों देशों, बल्कि अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में सभी के लिए उम्मीदें जगाती है। यह मिशन अंतरराष्ट्रीय सहयोग की शक्ति और विज्ञान में साझेदारी के महत्व को भी दर्शाता है।
बाकी सैटेलाइट्स से NISAR कैसे अलग है?
इसरो ने 1979 से अब तक 30 से अधिक पृथ्वी ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट्स लॉन्च किए हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य कृषि और मौसम से संबंधित स्पेस डेटा को बेहतर बनाना है। लेकिन NISAR सैटेलाइट विशेष है क्योंकि इसमें सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) का उपयोग किया गया है, जो अन्य भारतीय सैटेलाइट्स की तुलना में उच्च रिजॉल्यूशन वाली इमेज भेजने में सक्षम है।
नासा के अनुसार, NISAR पहला ऐसा सैटेलाइट मिशन है, जिसमें दो अलग-अलग रडार फ्रीक्वेंसी (एल-बैंड और एस-बैंड) का उपयोग किया गया है। यह सैटेलाइट पृथ्वी की क्रस्ट, आइस शीट और इकोसिस्टम से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेगा, जिससे पर्यावरणीय और भूवैज्ञानिक परिवर्तनों का अध्ययन संभव हो सकेगा।
रिपोर्ट्स के अनुसार, इसरो ने इस प्रोजेक्ट पर 788 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जबकि नासा ने इसमें 808 मिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान दिया है। नासा ने यह भी बताया कि NISAR की इमेजिंग क्षमता इतनी उन्नत है कि यह 150 मील (240 किलोमीटर) चौड़ी पट्टी की तस्वीरें खींच सकता है, जिससे यह सैटेलाइट 12 दिनों में पूरे पृथ्वी की तस्वीरें लेने में सक्षम होगा।
इस 2,800 किलोग्राम के सैटेलाइट में 39 फुट का स्थिर एंटीना रिफ्लेक्टर लगा है, जो सोने की परत वाली तार की जाली से बना है। इसका डिजाइन इस तरह से तैयार किया गया है कि यह ऊपर से भेजे और प्राप्त किए गए रडार सिग्नल को कुशलतापूर्वक कैप्चर कर सके। इस सैटेलाइट से तीन से पांच साल तक निरंतर कार्य करने की उम्मीद जताई जा रही है।
यह सैटेलाइट न केवल पर्यावरणीय अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण होगा, बल्कि सीमा सुरक्षा में भी अहम भूमिका निभाएगा। इससे प्राप्त होने वाली उच्च रिजॉल्यूशन तस्वीरें हिमालय में ग्लेशियरों की निगरानी में मदद करेंगी, जहां ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इसके अलावा, यह जलवायु परिवर्तन, टेक्टोनिक शिफ्ट्स, भूस्खलन और ज्वालामुखी विस्फोट के कारण होने वाले भूगर्भीय परिवर्तनों की भी निगरानी करेगा।
सैटेलाइट समुद्री तटों पर हो रहे परिवर्तनों और भू-आकृतिक गतिविधियों पर भी नज़र रखेगा, जो प्राकृतिक आपदाओं से जुड़ी घटनाओं का सटीक अध्ययन करने में सहायक होगा। NISAR सैटेलाइट न केवल नागरिक उपयोगों के लिए, बल्कि चीन और पाकिस्तान के साथ भारत की सीमाओं पर भी निगरानी रखने में मददगार साबित हो सकता है, जहां हाल के वर्षों में तनावपूर्ण स्थितियां बनी रही हैं।