मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक नगर महेश्वर नर्मदा तट पर बस हुआ एक प्राचीन धार्मिक स्थान है, जो अपने सुरम्य घाट, नर्मदा नदी, मंदिरों एवं किले के लिए प्रसिद्ध है।यह शहर हैहयवंशी राजा सहस्रार्जुन, जिसने रावण को पराजित किया था, की राजधानी रहा है। ऋषि जमदग्नि को प्रताड़ित करने के कारण उनके पुत्र भगवान परशुराम ने सहस्रार्जुन का वध किया था। कालांतर में महान देवी अहिल्याबाई होल्कर की भी राजधानी रहा है। नर्मदा नदी के किनारे बसा यह शहर अपने बहुत ही सुंदर व भव्य घाट तथा महेश्वरी साड़ियों के लिये प्रसिद्ध है। घाट पर अत्यंत कलात्मक मंदिर हैं जिनमे से राजराजेश्वर मंदिर प्रमुख है। आदिगुरु शंकराचार्य तथा पंडित मण्डन मिश्र का प्रसिद्ध शास्त्रार्य यहीं हुआ था। यह जिले की एक तहसील का मुख्यालय भी है। प्रसिध्द पर्यटन स्थल है।
यहां के मंदिर एवं घाट में पत्थरों पर उत्कीर्ण सुन्दर कला कृतियां संस्कृति, सभ्यता के परिचय के साथ ही हैंडलूम इंडस्ट्री के लिए भी डिजाइन हेतु प्रेरणा का कार्य करती हैं। महेश्वर की हैंडलूम इंडस्ट्री एवं हथकरघा पर बुनी हुई साड़ियां विश्व प्रसिद्ध हैं। महेश्वर के परंपरागत बुनकर 17वीं शताब्दी से सुन्दर डिजाइन में साड़ी, पगड़ी, गमछा, शाल, ड्रेस मटेरियल एवं कपडे बुनते आ रहे हैं।
महेश्वर की इसी परम्परा को अनवरत रखते हुए यहां के बुनकर लगातार नए-नए प्रयोग हैंडलूम में करते रहते हैं। इसी तारतम्य में महेश्वर के संत कबीर अवार्ड से पुरस्कृत मास्टर बुनकर मोहम्मद आरीफ खान ने अभिनव प्रयोग करते हुए हथकरघे पर महेश्वरी हैंडलूम इंडस्ट्री के इतिहास में पहली बार महेश्वर किले एवं देवी अहिल्या बाई की छवि को वाल हैंगिंग में उकेरा है।