महालक्ष्मी व्रत को राधा अष्टमी भी कहा जाता है यह व्रत भाद्रपद के शुल्क पक्ष के अष्टमी से शुरू हो जाती है। आज से 16 दिन इस व्रत का समापन होता है। इस व्रत को करने से माँ लक्ष्मी के विशेष कृपा , आशीर्वाद प्राप्त होता है और कभी धन - धान्य की कमी नहीं होती है। इस व्रत के कथा वचन बहुत महत्वपूर्ण होता है।
महालक्ष्मी व्रत की कथा
प्राचीन समय की बात है एक गांव में एक गरीब ब्राम्हण रहता था ,वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। वह हर दिन भगवान विष्णु के पूरी विधि-विधान से पूजा करता था। एक दिन भगवान विष्णु उनसे प्रसन्न हो कर उस गरीब ब्राम्हण को वर मांगने के लिए कहते है। उस ब्राम्हण ने भगवान विष्णु से वर में माता लक्ष्मी को अपने घर स्थापित होने का वर माँगा। यह सुनकर भगवान विष्णु ने उस गरीब ब्राम्हण को एक उपाय बताया , और कहा की दिन-प्रतिदिन एक वृद्ध महिला मंदिर के सामने उपले थोपने आती है तुम उनको अपने घर जाने का आग्रह करना ,वह माँ लक्ष्मी ही है। यह बोल कर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए।
अगली सुबह गरीब ब्राम्हण मंदिर के समीप माता का राह देखता रहा , मंदिर के सामने एक वृद्ध महिला उपले थोपने आती है तब वह ब्राम्हण उनके पास जाता है और अपने घर जाने का निवेदन करने लगता है। यह सुन माँ लक्ष्मी को समझ आ जाता है कि यह सब भगवान विष्णु के कहने पर हो रहा है।
माँ लक्ष्मी के उस गरीब ब्राम्हण को महालक्ष्मी व्रत के बारे में बताते है और कहती है की तुम 15 दिन तक चलने वाली महालक्ष्मी व्रत करो तुम्हारी सारी मनोकामना पूरी हो जाएगी और तुम्हारे घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं होगी।
माता के कहे अनुसार उस गरीब ब्राम्हण ने 15 दिन तक चलने वाली व्रत पूरी विधि-विधान से किया। जिससे माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा उस गरीब ब्राम्हण पर हुई उसके घर धन- धान्य से भर गया। अतः इस व्रत को पुरे विधि- विधान से करने पर माँ लक्ष्मी के असीम कृपा प्राप्त होती है।
महालक्ष्मी व्रत का पूजन विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर लें।अब एक चौकी में महालक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें।स्थापना के बाद पंचामृत से स्नान कराएं।इसके बाद सिंदूर, कुमकुम आदि लगाएं।फूल, माला के साथ सोलह श्रृंगार चढ़ाएं।एक पान में लौंग, बताशा,रुपए, छोटी इलायची रखकर चढ़ा दें।भोग में मिठाई आदि चढ़ा दें।अन्तः धूप ,दीपक से माँ लक्ष्मी की आरती व व्रत कथा का पाठ करें।