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बचपन से ही निर्भीक और निडर थे भगत सिंह

Date : 28-Sep-2023

भारतीय इतिहास के पन्नों में दर्ज एक ऐसा नाम, जिनके बलिदान की कहानियां हम सब बचपन से सुनते और पढ़ते आए है|

उनके कार्यों ने देश के युवाओं को राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए हमेशा प्रेरित किया| जहां कई लोग भगत सिंह के क्रांतिकारी दृष्टिकोण से सहमत नहीं थे| वहीं दूसरी तरफ बड़ी संख्या में लोग के लिए वह  प्रेरणा स्रोत रहे|| आज हम उनके 116 वी जयंती उपलक्ष्य में उनके बचपन से जुड़े एक ऐसे प्रसंग को जानेगे जो ये दर्शता है कि  वीर भगत सिंह बचपन से ही  देशभक्त और स्वतंत्रता प्रेमी रहे और महज 23 वर्ष की आयु  में ख़ुशी-ख़ुशी फंसी के फंदे पर चढ़ गए |

जहाँ बच्चे अपने मनोरंजन के लिए खोखो ,कबडी आदि खेल खेला करते थे वही भगत सिंह अपने मित्रों के साथ कुछ ऐसे अनोखे खेल खेला करते थे, जो युद्ध आक्रमण से संबंधित थे।

वे अपने मित्रों को लेकर दो टोलिया बनाते थे और एक टोली को दूसरी टोली पर आक्रमण करने के लिए कहते थे और बड़े निर्भीक और निडर होकर उस टोली का निवारण करते थे।

इन खेलों में भगत सिंह का साहस और निर्भरता स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होता था । भगत सिंह बचपन से ही इतनी निडर और साहसी थे। एक बार उनके पिता श्री सरदार किशन सिंह जी उन्हें लेकर अपने मित्र नंदकिशोर के पास गए। नंदकिशोर खेत में कुछ बीज बो रहे थे।

श्री सरदार किशन सिंह को देख वे दोनों आपस में बैठकर बातें करने लगे और काफी चर्चा करने के बाद उनकी नजर भगत के खेल पर गई। भगत सिंह मिट्टी इखट्टा करके उसमें कुछ दबा रहा था। नंदकिशोर को भगत से बात करने का मन हुआ।

उन्होंने पूछाबेटा तुम्हारा क्या नाम है।

भगत सिंह- भगत सिंह ने जवाब दिया।

तुम उस मिट्टी में क्या दबा रहे हो।?

मैं बंदूक बो रहा हूं भगत ने जवाब दिया।

बंदूक

हाँ बंदूके

ऐसा क्यों?

अपने देश को स्वतंत्र कराने के लिए।

तुम्हारा धर्म क्या है भगत सिंह?”

मेरा धर्म देशभक्ति है और देश को स्वतंत्र करना मेरा लक्ष्य।

नंदकिशोर भी देशभक्त थे। उन्होंने बड़े स्नेह पूर्वक भगत सिंह को बुलाया और उनके देशप्रेम के भाव को सराहा |

नंदकिशोर मेहता जी ने किशन जी से कहाकिशन जी आप तो भाग्यवान निकले, जो आपके घर ऐसा पुत्र जन्मा। यह एक दिन आपका नाम पूरी दुनिया में रोशन करेगा। उनकी की गई  यह भविष्यवाणी आज सत्य निकली। भगत सिंह को आज एक देशप्रेमी और स्वतंत्रता सेनानी के बड़े उदाहरण के रूप में जाना जाता है।

इस प्रेरक पसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि परिस्थितियां कैसी भी हो लेकिन साहस और निडरता से उस पद को नहीं छोड़ना चाहिए। साहस और निडरता से आज हम स्वतंत्र हैं, जो आजादी हमें भगत सिंह जैसे अनेक सेनानियों ने दिलवाई है।

 
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