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एक लक्ष्य पर पहुंचना दूसरे लक्ष्य की ओर प्रस्थान बिंदु है - जॉन डूई

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शिक्षाप्रद कहानी-वीर बालक झुनकू सिंह

Date : 11-Dec-2023

 गांधीजी ने कहाँ – “आज हमारे देश में ऐसे नौवजवानों की आवश्यकता है जो तिरंगे की शान बनाए रखें| उसे गिरने न दें | यह तिरंगा हमें सत्य, अहिंसा और न्याय का पाठ पढ़ाता है|’’

गांधीजी का संदेश गांव-गांव तक पहुंच रहा था | आजादी की लड़ाई लड़ने बच्चे, बूढ़े, जवान,औरत-मर्द, सभी गांधीजी की साथ एकजुट हो रहे थे| झुनकू सिंह छोटा था तो क्या,उसमें भी साहस पैदा हो गया था | अपने गांव के लोगों को उसने गांधीजी की बातें बताईं | इस सेना में बालक-बालिकाएं, औरतें, बूढ़े-जवान सभी थे | सभी देश पर मर-मिटने के लिए तैयार थे |

गांव में एक दिन एक समाचार पहुंचा | गांधीजी के सेवक करहा रियासत में एक सभा करेंगे | झुमकू सिंह भी इस सभा के लिए तैयार हो गया | हर गांव से एक-एक टुकड़ी इस सभा में पहुंचेगी | झुनकू सिंह ने अपने गांव की टुकड़ी के लिए एक तिरंगा तैयार किया | झुनकू को रात को नींद नही आई | कब दिन निकलेगा और कब वह तिरंगे को लेकर सबसे आगे होगा |

सुबह हुई नन्हें गांव के नन्हें देश भक्त एक स्थान पर तय समय पहुंच गए| सबने खादी के वस्त्र पहने हुए थे | झुनकू के हाथ में तिरंगा था|वह सबसे आगे था | सबसे आगे रहने की होड़ लगी थी | किसी को भी पुलिस की गोली का डर नहीं था |

पंक्तियों में जुलूस नारे लगाता हुआ चल पड़ा | उनका नारा था –

‘तिरंगा हमारी शान है, तिरंगा हमारी जान है,

जो हम से टकराएगा, चूर-चूर हो जाएगा |’

जुलूस को पोलिस ने एक चौराहे पर रोकना चाहा | जुलूस नहीं रुका | लाठियों से डराना चाहा| कोई भी नहीं रुका | झुनकू के सिर पर पहली लाठी पड़ी | फिर तो लाठियां-ही लाठियां उन पर पड़ने लगीं | लाठियों के प्रहार से बहुतों के सिर से खून बहने लगा | झुनकू ने खून की परवाह न की | वह तिरंगे को मजबूती से पकड़े आगे बढ़ता रहा उसका कुर्ता खून में रंग गया था |

पोलिस का दारोगा परेशान था| जब तक इस तिरंगे को नहीं गिराया जाता तब तक लोग रुकेंगे नहीं| दारोगा ने अपनी पिस्तौल निकली| उसने झुनकू को निशाना बनाया | गोली झुनकू के सीने में लगी | वह और जोर से चिल्लाने लगा –

‘भारत माता की जय, भारत माता की जय |’

झुनकू के पीछे एक बुढ़िया चल रही थी | जब उस बुढ़िया ने देखा कि झुनकू गिर रहा है, उसने झपटकर तिरंगा सम्भाल लिया| दूसरी गोली बुढ़िया को लगी| तिरंगा गिरने वाला था कि उसके पीछे एक चौदह साल की बालिका थी, उसने तिरंगा सम्भाल लिया | तीसरी गोली ने उसका सीना चीर दिया| नन्ही जान जमीन पर गिरी तो सही, पर लोगों ने दूर से देखा कि तिरंगा अब भी ऊपर था| वह उसी तरह लहरा रहा था | उस बालिका ने तिरंगे को गोली से बने अपने सीने के छेद में गाड़ दिया | उसके मुंह से मरते समय निकला था |

‘तिरंगा हमारी शान है, तिरंगा हमारी जान है |'

 
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