गणपति जी के जन्म और उनके स्वरूप को लेकर कथा है कि गणेशजी ने भगवान शिव को द्वार पर रोका और शिवजी ने उनका सिरच्छेद कर दिया। माता पार्वती के विलाप करने के बाद एक हथिनी के बच्चे का शीश लाकर पुनर्जीवित किया । इसलिए उनका स्वरूप ऐसा है । प्रश्न है कि इस कथा का संदेश क्या है ? भगवान शिव देवाधिदेव हैं, त्रिकालदर्शी हैं। क्या वे नहीं जान सकते थे कि यह बालक कौन है? किसके आदेश से द्वार पर है और फिर भला सृष्टि में कौन सा द्वार है जो उन्हें रोक सकता है ? यदि भगवान शिव ने सिरच्छेद कर भी दिया तो वे पल भर में नया शीश सृजित कर सकते थे। लेकिन शीश के लिये ऐसे माता-पुत्र खोजे गये जो एक दूसरे की ओर पीठ किये हुये हैं । इस कथा में लोक कल्याण और लोक संचालन के अनेक संदेश हैं। सबसे पहला संदेश उन द्वारपालों के लिये है जो द्वार पर अपनी बुद्धि विवेक का प्रयोग नहीं करते । द्वारपाल को यह बुद्धि अवश्य लगानी चाहिए कि आगंतुक कौन है और उसके साथ क्या व्यवहार करना चाहिए। आगन्तुक को परखकर उसके अनुरूप व्यवहार करना चाहिए। आधुनिक संदर्भ में तो यह विवेकशीलता अति आवश्यक हो गई है । दूसरा संदेश माता और पुत्र केलिये है । कथा में जिस हथिनी के बच्चे का शीश काटकर लाया गया वह अपनी माँ से विमुख होकर सो रहा था और माता की पीठ भी बच्चे की ओर थी । अर्थात दोनों एक दूसरे के विपरीत। वैदिक काल से लेकर आधुनिक विज्ञान के निष्कर्ष तक यह स्पष्ट हो चुका है कि व्यक्तित्व का निर्माण माता करती है । न केवल शरीर की पुष्टता और विकास अपितु शिक्षा और संस्कार भी । संसार में माता के साँचे में ढले बच्चे ही आसमान की ऊँचाई छूते है । भला उस बच्चे का भविष्य कैसे सुरक्षित रह सकेगा, जो माता से विपरीत दिशा में बढ़ रहा है और माता ने भी मुँह फेर लिया है । यह कथा इन दोनों प्रकार की मानसिकता को चेतावनी है । जो माताएँ पुत्र पर ध्यान न देतीं उनको भी और जो पुत्र माता का सम्मान नहीं करते या माता से विमुख हैं उनको भी ।
गणेश जी सूँढ अर्थात नाक लंबी है । नेतृत्व कर्ता की सूंघने की शक्ति तीक्ष्ण होनी चाहिए। अपने परिवार में,समाज में या राष्ट्र में कहाँ क्या कुछ घट रहा, यह सब नेतृत्व कर्ता को दूर से ही सूंघ लेना चाहिए। गणेश जी के कान लंबे हैं। यनि नेतृत्वकर्ता का सूचना तंत्र तगड़ा हो और हर बात को सुनने क क्षमता होनी चाहिए। उनका पेट बड़ा है अर्थात जो भी अधिक से अधिक बात सुनी है उसे अपने पेट में डाल लेनी चाहिए। पचाने की क्षमता होनी चाहिए। ऐसा न हो कि इधर सुना और उधर सुनाया। एक सफल नेतृत्वकर्ता वही जो अपने प्रभाव सीमा की ह घटना हर व्यक्ति प पैनी नजर रखे। कहाँ क्या घट रहा उसे सूंघ ले, हर बात को सुने और अपने भीतर छिपा कर रखे । माथा चौड़ा यनि उसकी छवि प्रभावकारी होनी चाहिए।