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9 जनवरी : पूरा जीवन स्वदेशी और स्वत्व के लिये समर्पित: सुन्दरराव ठाकरे

Date : 09-Jan-2025

 स्वतंत्रता सेनानी और स्वदेशी केलिये समर्पित डाक्टर सुन्दरराव ठाकरे का जन्म  पूना में गिरफ्तार हुये 

भारतीय स्वाधीनता संघर्ष के आख्यानों का अध्ययन करें तो हमें एक विसंगति मिलती है । वह यह कि जिन भी विभूतियों के चिंतन में अपने संघर्ष में भारत राष्ट्र के सांस्कृतिक गौरव को प्राथमिकता दी उनका उल्लेख न के बराबर ही मिलता है। उनमें से असंख्य तो अपरिचय के महासागर में खो गये। ऐसे ही एक महान राष्ट्रसेवी हैं डाक्टर सुन्दर राव ठाकरे जिन्होंने अहमदाबाद मेडिकल कॉलेज से मेडिकल डिग्री ली और पूरा जीवन स्वदेशी प्रचार केलिये समर्पित कर दिया । वे केवल 14 वर्ष की आयु से स्वदेशी प्रचार अभियान से जुड़ गये थे और पूरा जीवन स्वत्व केलिये समर्पित रहे । 1906 में बच्चों की प्रभात फेरी निकाली,  चार वेंत का दंड मिला पर पीछे न हटे । ऐसे महान चिंतक विचारक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुन्दर राव ठाकरे का जन्म 9 जनवरी 1892 में गुजरात के महसाणा जिले के अंतर्गत लक्ष्मीपुर कस्बे में हुआ था । यद्धपि उनका परिवार कोंकण के पालीगाँव का रहने वाला था । पिता श्रीपाद ठाकरे मेहसाणा आये । यहीं इन्होंने विवाह मेहसाँणा में हुआ और यहीं बस गये । उनके दो पुत्र हुये । बड़े विनायक राव और छोटे सुन्दर राव ।

सुन्दर राव जी की आरंभिक शिक्षा मेहसाणा में ही हुई और मेडिकल की पढ़ाई के लिये अहमदाबाद चले गये । अंग्रेजों के बंगाल विभाजन निर्णय के विरुद्ध देश भर वातावरण बनने लगा था और भारत में स्वदेशी आंदोलन 1905 में आरंभ हुआ । स्वदेशी के सूत्रधार अमर गीतकार और  वंदेमातरम के रचयिता बंकिम चंद्र चटर्जी थे । उन्होंने 1886 में अपनी रचना के साथ स्वत्व और स्वदेशी जागरण का आव्हान कर दिया था । यह तिथि और यह गीत स्वदेशी के नव जागरण की तिथि मानी जाती है फिर भी स्वदेशी आंदोलन का विस्तार 1905 में हुआ । तब अंग्रेजों ने साम्प्रदायिक आधार पर मुस्लिम तुष्टीकरण के लिये बंगाल का विभाजन घोषित कर दिया था । बंगाल विभाजन के विरोध जो आँदोलन आरंभ हुआ वह स्वदेशी आंदोलन की दिशा में मुड़ गया । जो 1911 तक चला । डाक्टर सुन्दर राव ठाकरे उन दिनों किशोर वय में थे और मेहसाणा में विद्यालयीन पढ़ाई कर रहे थे । उन्होंने अप्रैल 1906 में विद्यार्थियों को एकत्र किया और विदेशी वस्त्रों की होली चलाई और अन्य स्वदेशी वस्तुएं ही उपयोग करने की शपथ ली । पुलिस ने लाठी चार्ज करके तितर वितर किया । आगे चलकर मेडिकल की पढ़ाई करने वे अहमदाबाद के मेडिकल कालेज के छात्र बने । मेडिकल कालेज में भी उनका स्वदेशी अभियान जारी रहा । पढ़ाई पूरी करने के बाद काँग्रेस के संपर्क में आये और गाँधीजी के चरखा एवं खादी अभियान से जुड़ गये । उन्होंने आजीवन खादी पहनने का संकल्प ले लिया जो जीवन भर रहा । उनकी पहली गिरफ्तारी 1921 में असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने के दौरान पूना में हुई । यह गिरफ्तारी डाक्टर की डिग्री मिलने बाद हुई । 

लेकिन स्वतंत्रता आन्दोलन के साथ खिलाफत आंदोलन को जोड़ना डाक्टर सुन्दर राव को पसंद न आया।  उनका मानना था  कि खलीफा पद्धति किसी पंथ विशेष की निजी है और उसका भारत से कोई लेना देना नहीं है । इसी बीच मालाबार में भयानक मारकाट हो गयी । उन्हें 1926 में स्वामी श्रद्धानंद जी की हत्या पर गाँधी जी की प्रतिक्रिया पसंद न आई और वे काँग्रेस से अलग हो गये । पर स्वदेशी और खादी के संकल्प के लिये जीवन भर समर्पित रहे । वे पहले कर्नाटक जाकर अस्पताल में नौकरी करने लगे, फिर मेहसाणा की अपनी समस्त संपत्ति भाई विनायक राव और उनके परिवार को सौंपकर मध्यप्रदेश के धार में आकर बस गये । धार उनकी पत्नि शाँताबाई दिघे का मायका था । यहाँ उन्होने अपना चिकित्सालय खोला और समाज सेवा में जुट गये । उनका मानना था कि जितना महत्वपूर्ण स्वाधिनता संग्राम है उतना ही महत्वपूर्ण है स्वतंत्रता को सहेजने केलिये स्वदेशी अभियान। स्वदेशी केवल वस्त्रों या वस्तुओं तक सीमित न रहे अपितु विचार, व्यवहार और जीवन शैली के अनुरूप रहे । मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का विस्तार हुआ तो वे इससे जुड़ गये । उनका पूरा जीवन समाज, स्वदेशी और राष्ट्र के सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति समर्पित रहा ।  सुप्रसिद्ध राजनेता, भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य कुशाभाऊ ठाकरे इन्ही के सुपुत्र थे ।

लेखक - रमेश शर्मा 

 
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