रैदास जन्म के कारनै होत न कोए नीच।
नर कूं नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच॥– संत रैदास
“चौदस सो तैंसीस कि माघ सुदी पन्दरास,
दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री गुरु रविदास।”
इस दोहे के अनुसार, उनका जन्म माघ मास की पूर्णिमा को रविवार के दिन 1433 में हुआ था। इसलिए, हर साल माघ मास की पूर्णिमा को गुरु रविदास जयंती मनाई जाती है, जो इस वर्ष 24 फरवरी 2024 को होगी।
रैदास पूत सब प्रभु के, कोए नहिं जात कुजात॥“
रविदास जी का जीवन भक्ति और ध्यान में समर्पित था। उन्होंने भक्ति के माध्यम से कई गीत, दोहे और भजन रचे। उनके प्रमुख धार्मिक संदेश आत्मनिर्भरता, सहिष्णुता और एकता थे। उनका योगदान हिंदू धर्म और सिख धर्म दोनों में महत्वपूर्ण था। सिख धर्म के पांचवे गुरु अर्जुन देव ने रविदास जी की 41 कविताओं को गुरुग्रंथ साहिब में शामिल किया।
गुरु रविदास जी ने जातिवाद, भेदभाव और सामाजिक असमानता के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने समाज को सुधारने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किए। संत कबीर ने उन्हें ‘संतन में रविदास’ कहकर सम्मानित किया। तब से उन्हें संत की उपाधि दी गई है |
गुरु रविदास जी ने शिक्षा के महत्व को समझा और अपने शिष्यों को उच्चतम शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने शिष्यों को समाज की सेवा के लिए तैयार किया। मध्यकाल की प्रसिद्ध संत मीराबाई भी रविदास जी को अपना आध्यात्मिक गुरु मानती थीं।
· वे जूते बनाने का काम करते थे और रविदासीया पंथ की स्थापना की थी।
· मध्यकालीन ग्रंथ रत्नावली में कहा गया है कि रविदास ने अपना आध्यात्मिक ज्ञान रामानंद से प्राप्त किया था।