औरंगजेब का ऐसा कौन सा काम धंधा घाटे में चला गया था कि उसको टोपियां सिलकर गुजारा करना पड़ता था।वह खुद अपने मूर्ति मंदिर तोड़ो अभियान से सबाब कमा रहा था फिर नमाज के लिए टोपियां सिलने से सबाब कमाने की क्या जरूरत थी ? टोपियां सिलना पार्ट टाइम जॉब था या फुल टाइम ये नहीं पता पर इतिहासकार बताते है कि वह टोपियां सिलता था ।अब टोपी सिलने की एक प्रक्रिया है, क्या टोपी के कपड़े काट के दर्जी की तरह वह खुद सिलता था या उसके कोई और उस्ताद थे जो टोपियां सिलकर देते थे। इतिहासकार ये नहीं बताते कि वह सुई और तलवार में से ज्यादा समय किसको देता था।वह तो सुई और तलवार दोनों से जिहाद कर रहा था।सबके अपने अपने शौक होते है बादशाह के बादशाही शौक होते होंगे औरंगजेब की हॉबी थी मार काट करना । उसने बादशाह बनने के पहले ही भाई का कत्ल करके उसने अपना विजिटिंग कार्ड दे दिया था। बादशाह था लेकिन वह आर्थिक रूप से परेशान था,उसके पास सेना थी,सैनिक थे खजाना था पर जेब खर्च का पैसा नहीं था ।शायद उसकी बेगम उसको जेब खर्च के लिए पैसे नहीं देती हो।खुद का खर्च चलाने के लिए उसको टोपियां सिलना पड़ती थी।ऐसा हमारे लिए स्कूल की किताब में पढ़ाया गया है।
मै सोचता हूं कि औरंगजेब कितना बड़ा फुरसती आदमी रहा होगा,,राजकाज और युद्ध से उसे इतनी फुरसत मिल जाती होगी कि वह टोपी सिल लिया करता था। चलो ठीक है उसने समय निकाल कर टोपी सिल भी ली अब उसकी सिली हुई टोपी वह कहां बेचता होगा ? टोपी बेचने के लिए उसके पास दो विकल्प रहे होगे या तो वह टोपियों को बेचने के लिए थैले में भरकर दिल्ली और आगरा की गलियों में बेचता होगा।
जहां लाल किले या ताजमहल के सामने टेबल लगा कर हर माल 10 रुपए टाइप।ताजमहल देखने आए पर्यटक उसकी टोपियों को खरीदते होंगे।दूसरा ये कि औरंगजेब टोपियों को स्वयं के दरबार में बेचता होगा।
मुझे दूसरा वाला विकल्प ज्यादा ठीक लग था है।अब दरबार में टोपियां लगाए सब दरबारी बैठे हों।बादशाह पूछे बताओ हमारा सल्तनत कैसी चल रही है ,अब किसकी हिम्मत है ये कह दें कि बादशाह ठीक नहीं चल रहा। सबको कहना पड़ता है, हुजूर सब बढ़िया चल रहा है हमारी सारी आवाम खुश है।मातहत कर्मचारी अपने बॉस को को खुश रखते ही हैं ।बादशाह कह दे हम टोपी कैसी बनाते है,,किसका जबाव होगा कि हुजूर आपकी टोपी छोटी है,ये सुनकर बादशाह सिर ही छोटा न कर देगा,इसलिए सब कहते थे बादशाह बहुत अच्छी टोपियां है। यहां से उजबक तक ऐसी टोपियां कोई दर्जी नहीं बनाता।अब एक दरबारी कह दे दूसरे का फर्ज बनता है कि उस से ज्यादा तारीफ करना।सब को अपनी नौकरी बचाना है ।यही परम्परा आज तक चल रही है,
दूसरे दरवारी ने कहा हुजूर आप की शानदार डिजाइन वाली टोपियां है,,।ऐसा लगता है आपने किसी फैशन डिजाइन का कोर्स किया हो।
अब बॉस की बनी हुई कोई चीज हो और वह हाथों हाथ न बिके ऐसा हो नहीं सकता।बादशाह की बनाई टोपी पहन कर में इतराते घूमना उसकी शान होती होगी । ये बादशाह छाप टोपी है,उन्होंने ही मुझे दी है,जब औरंगजेब ब्रांड बन गया होगा तब उसकी पहनी हुई टोपियां देखकर ही समझ जाते होगे ये खास आदमी है बादशाह का कुल मिलाकर टोपियां कैसी भी होती होगी,,पर उनको पहनने वाले खास बना देते होंगे।दरबारियों में टोपियां खरीदने की होड रहती होगी।
औरंगजेब ब्रांड टोपी की डिमांड तो रहती होगी,वह ऑर्डर पर भी बनाता होगा या सिर्फ किसी खास महीने में ही।मान लो किसी महीने एक दो टोपी कम बनी हो तो वह भूखा रहता होगा,,या चादर फैलाकर पैसे मांगता होगा।
औरंगजेब टोपियों को सिलते हुए इस बात का ध्यान जरूर रखता होगा कि उसकी बनाई टोपियों का साइज अलग अलग हो ।उसके रंग अलग अलग हों।आलमगीर की फुरसतिया टोपियां बड़ी महंगी होती थी । अब भले ही औरंगजेब न हो पर उसकी सिली हुई टोपियां आज भी कई लोग पहने घूम रहे हैं।
लेखक - प्रदीप औदिच्य