वडकुनाथन मंदिर, केरल के त्रिशूर शहर के बीचोबीच स्थित भगवान शिव को समर्पित एक अत्यंत प्राचीन और भव्य मंदिर है। केरल की पारंपरिक वास्तुकला और उत्कृष्ट शिल्पकला का यह मंदिर अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान परशुराम ने किया था, जो भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं।
वडकुनाथन मंदिर की विशेषताएं
वडकुनाथन मंदिर को ठेन्कैलासम और वृषभचलम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। "वडकुनाथन" का अर्थ है "उत्तर के भगवान", जो 'केदारनाथ' के समान माना जाता है। यह मंदिर लगभग 1000 वर्ष पुराना है और इसे केरल के सबसे प्राचीन और पवित्र मंदिरों में गिना जाता है। यहां भगवान शिव के साथ-साथ देवी पार्वती की भी पूजा की जाती है। गौरव का विषय है कि यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में भी शामिल है।
मंदिर में भगवान शिव के अभिषेक के लिए घी चढ़ाया जाता है। रोचक बात यह है कि गर्मी में भी यह घी पिघलता नहीं। मान्यता है कि यदि शिवलिंग पर चढ़ाया गया घी पिघलने लगे, तो किसी बड़े संकट का संकेत होता है। घी की एक मोटी परत हमेशा शिवलिंग को ढके रहती है, जो कैलाश पर्वत पर विराजमान बर्फ से ढके भगवान शिव के निवास का प्रतीक माना जाता है। यहां भक्तों को शिवलिंग नहीं दिखता, बल्कि 16 फुट ऊंचा घी का टीला नजर आता है।
प्रमुख त्योहार और आयोजन
महाशिवरात्रि के अवसर पर मंदिर में लक्षदीपम उत्सव मनाया जाता है, जिसमें लाखों दीपक जलाए जाते हैं। इसके अलावा, यहां अनायुट्टू नामक एक विशेष उत्सव भी मनाया जाता है, जिसमें हाथियों को विशेष भोग अर्पित किया जाता है।
वडकुनाथन मंदिर की वास्तुकला
करीब 9 एकड़ क्षेत्र में फैला यह मंदिर चारों ओर से ऊंची पत्थर की दीवारों से घिरा हुआ है। मंदिर परिसर में चार दिशाओं में भव्य गोपुरम (प्रवेश द्वार) बनाए गए हैं। आंतरिक और बाहरी मंदिर संरचनाओं के बीच एक विशाल खुला क्षेत्र है। मंदिर की दीवारों पर महाभारत से प्रेरित सुंदर मुरल चित्र बनाए गए हैं, जिनमें वासुकीशयन और नृत्यनाथा के दृश्य प्रमुख हैं। मंदिर परिसर में एक संग्रहालय भी है, जहां प्राचीन चित्रकला, लकड़ी पर नक्काशी और ऐतिहासिक वस्तुएं संजोई गई हैं।
वडकुनाथन मंदिर का इतिहास
ऐसा माना जाता है कि नरसंहार के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान परशुराम ने इस मंदिर का निर्माण किया। यज्ञ के उपरांत उन्होंने ब्राह्मणों को अपनी सारी भूमि दान कर दी थी और तपस्या के लिए समुद्र से भूमि प्राप्त की, जो आज का केरल है। उसी भूमि पर वडकुनाथन मंदिर सहित कई अन्य मंदिरों का निर्माण उन्होंने कराया।
इतिहासकारों के अनुसार, यह स्थान कभी एक प्राचीन द्रविड़ीय देव स्थल (कवू) था, जो कालांतर में विभिन्न धर्मों जैसे बौद्ध धर्म, जैन धर्म और वैष्णव परंपराओं के प्रभाव में भी आया।