दामोदर गणेश बापट एक ऐसे भारतीय समाजसेवी थे जिन्होंने अपना जीवन कुष्ठ रोगियों की सेवा में समर्पित कर दिया। वे छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में भारतीय कुष्ठ निवारक संघ (BKNS) के माध्यम से दशकों तक कार्य करते रहे। 2018 में भारत सरकार ने उनके अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री प्रदान किया। साथ ही छत्तीसगढ़ सरकार ने उन्हें राज्य अलंकार से भी सम्मानित किया।
बापट जी का जन्म महाराष्ट्र के अमरावती जिले के ग्राम पथरोट में हुआ था। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से बीए और बीकॉम की पढ़ाई पूरी की। बचपन से ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े हुए थे। शिक्षा पूर्ण करने के बाद उन्होंने कुछ समय नौकरी की, लेकिन समाजसेवा की तीव्र इच्छा उन्हें वनवासी कल्याण आश्रम, जशपुर ले आई, जहाँ उन्होंने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया।
इस सेवा कार्य के दौरान ही वे कुष्ठ रोगियों के संपर्क में आए और उनका जीवन एक नए मार्ग की ओर मुड़ गया। 1974 में वे चंपा से 8 किलोमीटर दूर स्थित सोठी गांव में भारतीय कुष्ठ निवारक संघ (BKNS) से जुड़े। यह संस्था डॉ. सदाशिव कात्रे द्वारा 1962 में शुरू की गई थी। 1975 में बापट को संस्था का सचिव बनाया गया, और तब से उन्होंने संगठन को एक नई दिशा दी।
बापट की प्रेरणा से आज BKNS की सेवा में 17 पूर्णकालिक स्वयंसेवक कार्यरत हैं, जो लगभग 160 कुष्ठ रोगियों की देखभाल करते हैं। संस्था ने कुष्ठ रोगियों के पुनर्वास पर जोर दिया, जिसमें उन्हें आश्रय, भोजन, इलाज और आत्मनिर्भरता की दिशा में सहयोग प्रदान किया जाता है। इनमें से कई रोगी अपने परिवारों द्वारा त्यागे जा चुके होते हैं, और संस्था उन्हें सम्मानजनक जीवन देती है।
बापट ने न केवल कुष्ठ रोगियों की सेवा की, बल्कि टी.बी. रोगियों के इलाज के लिए भी “संत घासीदास अस्पताल” की स्थापना की। यहाँ 20 बिस्तरों की सुविधा है और नियमित रूप से निशुल्क नेत्र चिकित्सा शिविर लगाए जाते हैं, जिनमें अब तक 10,000 से अधिक मोतियाबिंद के सफल ऑपरेशन किए जा चुके हैं। इसके साथ ही उन्होंने गरीब वनवासी बच्चों के लिए ‘सुशील बालगृह’ नाम से छात्रावास भी आरंभ किया।
उनकी सेवा के लिए उन्हें अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए, जिनमें देवी अहिल्याबाई राष्ट्रीय पुरस्कार (2006), विवेकानंद सेवा पुरस्कार, भाऊराव देवरस सेवा स्मृति पुरस्कार आदि शामिल हैं। बापट जी ने पूरी निष्ठा और तपस्या से समाज के सबसे उपेक्षित वर्ग की सेवा की।
जुलाई 2019 में उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ और 17 अगस्त 2019 को सुबह 2:35 बजे उनका निधन हो गया। 84 वर्ष की उम्र में उन्होंने अनुसंधान हेतु अपना शरीर भी दान कर दिया, जो उनकी सेवा भावना की पराकाष्ठा को दर्शाता है। अपने जीवन के अंतिम 45 वर्षों में उन्होंने कुष्ठ रोग के प्रति जागरूकता फैलाने और रोगियों की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी।