देश की आजादी के लिए तमाम महिला-पुरुषों ने बलिदान दिया, लेकिन इनमें प्रमुख क्रांतिकारी प्रीतिलता का अलग ही स्थान था। वह महज 21 साल की आयु में देश की आजादी के लिए लड़ती हईं बलिदान हो गईं। अंग्रेजों पर बम विस्फोट कर उन्होंने खलबली मचा दी थी, लेकिन जब उन्हें गोली लगी तो घायल हो गईं। वह अंग्रेजों के हाथ गिरफ्तार नहीं होना चाहती थीं। इसलिए इस वीरांगना ने पोटेशियम साइनाइड खाकर बलिदान दे दिया। ऐसी सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी प्रीतिलता वादेदार का जन्म 5 मई 1911 को चटगाँव में हुआ था। अब यह क्षेत्र बंगलादेश में है । उनके पिता नगरपालिका के क्लर्क थे। वे चटगाँव के कन्या विद्यालय की मेघावी छात्रा थीं। उन्होने सन् 1928 में मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उतीर्ण की। वे इण्टरमिडिएट परीक्षा में पूरे ढाका बोर्ड में पाँचवें स्थान पर आयीं। पिता शासकीय सेवा में थे पर प्रीतिलता स्वराज आंदोलन से जुड़ गयीं। इसके चलते कलकत्ता विश्वविद्यालय ने उनकी डिग्री रोक दी थी। डिग्री उनके बलिदान के 80 वर्ष बाद जारी की गई। मरणोपरांत 80 वर्ष बाद डिग्री जारी होने की घटना अपने आप में सबसे अलग है।
स्कूली जीवन में वे पहले एक संस्था बालचर से जुड़ी। यह संस्था अंग्रेजों के प्रति वफादारी का अभियान चला रही थी, लेकिन वे बचपन से रानी लक्ष्मी बाई के जीवन चरित्र से खूब प्रभावित थीं। उनके मन में भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के विचार उठते थे। इस कारण उनके मन में अंग्रेजों के प्रति और दूरियाँ बढ़ी। उन्होंने यह संस्था छोड़ी और क्रांतिकारी आँदोलन के समीप आईं। इसी बीच उनकी भेंट प्रसिद्ध क्रांतिकारी सूर्य सेन से हुई। प्रीतिलता उनके दल की सदस्य बन गईं। प्रीतिलता जब सूर्यसेन से मिलीं, तब वे अज्ञातवास में थे। सूर्यसेन के संदेश यहाँ वहाँ पहुँचाने का काम क्राँतिकारी प्रीतिलता को मिला जो उन्होंने सफलता पूर्वक किया। इससे प्रभावित होकर उनके दल ने उन्हें इन्डियन रिपब्लिकन आर्मी में महिला सैनिक बना दिया। वे एक दिन अपने दल के साथ जा रहीं थीं कि घलघाट क्षेत्र में पुलिस ने घेर लिया। क्रान्तिकारियो के इस समूह में अपूर्व सेन, निर्मल सेन, प्रीतिलता और सूर्यसेन आदि थे। जमकर मुकाबला हुआ, इसमें अपूर्वसेन और निर्मल सेन का बलिदान हो गया, जबकि सूर्यसेन और प्रीतिलता घेरा तोड़ कर निकलने में सफल हो गये। क्रांतिकारी सूर्यसेन पर उस समय 10 हजार रूपये का इनाम घोषित था।
क्रांतिकारी सूर्यसेन ने अंग्रेजों पर हमला करने की योजना बनाई। योजना पहाड़ी की तलहटी में यूरोपीय क्लब पर धावा बोलने की थी। यह पहाड़ी क्लबअंग्रेजो के ऐशो-आराम का एक बड़ा अड्डा था। प्रीतिलता के नेतृत्त्व में क्रांतिकारी वहां पहुचे। यह 24 सितम्बर 1932 की रात थी। हथियारों के साथ प्रीतिलता ने पोटेशियम साइनाइड नामक विष भी रख लिया था। वे चाहतीं थीं कि जीवित रहते अंग्रेजों की गिरफ्त में न आयें। प्रीतिलता अपने दल के साथ क्लब पहुचीं। बाहर से खिड़की में बम लगाया गया। बम ब्लास्ट से क्लब में एकाएक चीखे सुनाई देने लगीं। 13 अंग्रेज जख्मी हो गये और बाकी भाग गये। घटना में एक यूरोपीय महिला मारी गयी। थोड़ी देर बाद उस क्लब से गोलीबारी होने लगी। प्रीतिलता को एक गोली लगी। वे घायल हो गयीं। जब भागने में सफल न हो सकीं तो पोटेशियम सायनाइड खा लिया। उस समय उनकी उम्र 21 साल थी। इस प्रकार अंग्रेजों से लड़ते हुए प्रीतिलता ने अपना बलिदान दे दिया।
(लेखक - रमेश शर्मा, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)