1857 की क्रांति को भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के रूप में जाना जाता है| भारतीय इतिहास में ऐसे कई राजा और सम्राट हुए हैं जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विदेशी ताकतों को यहां की मिट्टी पर आसानी से पांव नहीं जमाने दिए| भारतीय इतिहास में राजा-रजवाड़ों, सम्राटों पर कई कहानियां प्रचलित हैं| लेकिन रानियों पर कम ही बात होती है| ऐसी ही एक वीर रानी थी| जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई से बहुत पहले अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ाए थे|
रानी वेलू को किसी राजकुमार की तरह ही युद्ध कलाओं, घुड़सवारी, तीरंदाज़ी और विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का प्रशिक्षण दिया गया| इसके अलावा उन्हें अंग्रेज़ी, फ़्रेंच और उर्दू जैसी कई भाषाएं भी सिखाई गईं| 1746 में, जब वेलू नचियार 16 साल की हुईं तब उनका विवाह शिवगंगा राजा मुथुवदुगनाथपेरिया उदययथेवर के साथ कर दिया गया|
रानी वेलु नचियार भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ युद्ध छेड़ने वाली पहली भारतीय रानी थी। वे 1780 से 1790 तक शिवगंगा रियासत की रानी थी। उन्हें तमिल लोगों द्वारा वीरमंगई के रूप में भी जाना जाता है। जब ब्रिटिश सैनिकों और आरकोट के नवाब के बेटे ने शिवगंगा पर कब्ज़ा कर लिया और उनके पति की हत्या कर दी, तो वह अपनी बेटी के साथ चली गईं और विरुपाची में पलायकारर कोपाला नायककर के संरक्षण में रहने लगीं, अपनी सेना बनाई और युद्ध छेड़ने के लिए गोपाल नायकर और सुल्तान हैदर अली से हाथ मिलाया। अंग्रेजों के खिलाफ और अपना राज्य पुनः प्राप्त किया। उन्हें मानव बम लगाने वाले पहले व्यक्ति के रूप में भी श्रेय दिया जाता है।
उसी बीच रानी वेलु नचियार ने डिंडीगुल में मैसूर के बहादुर शासक हैदर अली से भेट की , और रानी ने उर्दू में स्पष्ट बात करते हुए हैदर अली को चौका दिया | हैदर अली ने रानी वेलु नचियार को अंग्रेजों के साथ युद्ध में हर संभव सहायता करने का वचन दिया, साथ ही हैदर अली ने 400 पाउंड मासिक आर्थिक सहायता, 5,000 पैदल सेना, इतने ही घुड़सवार सैनिक और भारी मात्रा में अस्त्र-शस्त्र भी प्रदान किए |
हैदर अली का समर्थन प्राप्त कर रानी वेलु नचियार ने अपनी सेना का गठन किया | साथ ही उन्होंने एक महिलाओं की सेना भी बनाई | महिला सेना का नाम बहादुर महिला उदायल के नाम पर उदायल नारी सेना रखा |
जिस दौरान रानी वेलु नचियार सेना-संगठन में जुटी थी, पेरियामुथुन भी उनकी सेना में शामिल हो गये | रानी वेलु नचियार ने उन्हें गुप्तचर का काम दिया |इसी बीच कुयिली और रानी का परिचय हुआ |दरअसल कुयिली | एक महान सैनिक थी और वे रानी वेलु की वफादार होने के साथ ही सच्ची देशभक्त भी थी।
अंग्रेज़ों से रानी वेलु की लड़ाई लगभग 7 सालों तक चली। पर उन्होंने हार नहीं मानी, 1780 में रानी वेलु के नेतृत्व में अंग्रेजों से भयंकर युद्ध हुआ। तभी रानी वेलु को ख़बर लगी कि अंग्रेज़ी सेना युद्ध के लिए गोला-बारुद का सहारा लेने वाले है। रानी वेलु ने अपने जासूसों से यह पता करवाया, कि अंग्रेजों ने गोला-बारूद रखे हुए है । अंग्रेजों के गोला-बारूदों और अंग्रेजी हथियारों की जानकारी होने पर रानी वेलु के सामने बड़ी समस्या उत्त्पन हो गई , क्योंकि वे पारंपरिक हथियारों से युद्ध लड़ रहे थे। वे किसी भी कीमत में लंबे समय से चल रहे इस संघर्ष को हारना नहीं चाहती थीं। उन्होंने अंग्रेजों की रणनीति को असफल करने के लिए कुयिली महिला सेना की मदद ली।
कुयिली ने अंग्रेज़ों से युद्ध करते वक्त ख़ुद पर घी डाला और आग लगाकर अंग्रेज़ों के गोला-बारूद और हथियार घर में कूद पड़ीं। इस तरह कमांडर कुयिली ने दुनिया के पहले आत्मघाती हमले को अंजाम दिया और रानी वेलु नचियार के नेतृत्व में अंग्रेजों की हार हुई।
इसके बाद रानी वेलु ने शिवगंगा को वापस हासिल किया, उन्होंने अपने कुशल नेतृत्व से 1789 ई. तक शिवगंगा पर शासन किया।
इतिहास में अमर रानी वेलु नचियार एक सच्ची देशभक्त तो थी ही, साथ ही उन्होंने अपने कौशल के दम पर अंग्रेजी सेना को हराया भी। यही वजह है कि उनके जीवनकाल तक किसी ने शिवगंगा पर दोबारा आक्रमण नहीं किया। उनके 7 सालों का संघर्ष उनके साहस और दृढ़निश्चय के परिचायक हैं। उनकी नेतृत्व क्षमता और देशप्रेम की मिसाल इतिहास के सुनहरे अक्षरों मे दर्ज है। भारत सरकार ने 2008 में रानी के सम्मान में डाक टिकट जारी किया।