दिन - गुरुवार ,10 अगस्त 2023
श्रंखला क्रमांक - 13
हमारे न्यूज़ पोर्टल द्वारा एक श्रृंखला प्रकाशित की जा रही है, जिसमे हम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वह सेनानी का स्मरण कर रहे है जिनके बलिदान और त्याग को वर्तमान समाज भूल सा गया है और आज उनका कही उल्लेख भी नहीं है|
इस शृंखला द्वारा हम समाज की स्मृति में यह बात का पुनः स्मरण करवाना चाहते है कि स्वतंत्रता संग्राम में समाज के बहुत बड़े वर्ग ने जाति धर्म से ऊपर उठ कर एक अखंड भारत के स्वतंत्रता के लिए प्राण न्योछावर किये थे | उन्होंने इस बात की कल्पना भी नहीं की थी कि स्वतंत्र - भारत एक खंडित स्वरुप में प्राप्त होगा |
इनके जीवन का जब स्मरण करे तो हमें यह बात ध्यान में आती है कि समाज और देश अखंड रहे है | आज भारत विरोधी वो सारी शक्तियां हैं जो विदेशी धन से पोषित होती है | वह देश और समाज को खंडित करने के कार्य कर रही है |
आज आजादी के 75 वर्ष बाद पुनः इन विकृत मानसिकता से परिपूर्ण शक्तियों को पहचानना होगा एवं इन्हे निर्मूल करना होगा, इन स्वतंत्रता सेनानियों को यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी |
आज की शृखंला में हम जिनका स्मरण करेंगे उन स्वतंत्र सेनानियों के नाम इस प्रकार से है-
1. विश्वनाथ भास्कर
2. राजा किशोर सिंह
3. खेमराज बजाज
4. गणपत लक्ष्मण
5. यति अनोपचंद
*संक्षिप्त विवरण*
विश्वनाथ भास्कर ने बॉम्बे में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया और 25 अक्टूबर 1930 को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर 1908 के आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 14 की धारा 17 (1) का आरोप लगाया गया। उन्हें 25 अक्टूबर 1930 को दोषी ठहराया गया और चार महीने की कठोर सजा सुनाई गई। कैद होना।
12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन का उद्घाटन किया गया। बंबई में, जुहू - विले - पार्ले, कांग्रेस हाउस, एस्प्लेनेड मैदान, गोवालिया टैंक, भाटिया बाग, केईएम अस्पताल में नमक डिपो पर छापा मारने वाले सत्याग्रहियों और पुलिस के बीच गंभीर झड़पें हुईं। , कुर्ला चर्चगेट, कोलीवाड़ा, माटुंगा, और वडाला, आदि।
सरकार ने 30 मई 1930 को धमकी निवारण अध्यादेश और गैरकानूनी उकसावे अध्यादेश दोनों को प्रख्यापित करके जवाब दिया। पत्राचार सेंसरशिप के तहत आ गया, कांग्रेस और उसके सहयोगी संगठनों को अवैध घोषित कर दिया गया, और उनके धन को जब्ती के अधीन कर दिया गया, और एक के रूप में परिणामस्वरूप, बड़ी संख्या में लोगों को बेरहमी से पीटा गया और पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
विश्वनाथ भास्कर फटके उन सत्याग्रहियों में से एक थे जिन्होंने बॉम्बे में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया था।
2.राजा किशोर सिंह
दमोह जिले के हिंडोरिया के राजा किशोर सिंह के आजादी की लड़ाई में कूदने के पीछे उनकी पत्नी द्वारा प्रेरित किए जाने की जानकारी इतिहास के पन्नांे मंे दर्ज है। ठाकुर किशोर सिंह ने अपनी सेना को संगठित कर जिला मुख्यालय पर स्थित ब्रितानी सेना पर आक्रमण कर दिया। ठाकुर किशोर की सेना दिनांक 10 जुलाई सन् 1857 को ब्रितानी सेना को परास्त करके दमोह पर अधिकार कर लिया। दमोह के डिप्टी कमिश्नर को भागकर नरसिंहपुर में शरण लेनी पडी़। एक छोटे से जागीदार के हाथांे पराजित होना ब्रितानी सेना के लिए बड़ी शर्मनाक घटना थी। इस पराजय का बदला लेने के लिए बहुत बड़ी सेना खड़ी की गई। दिनांक 25 जुलाई सन् 1857 को आक्रमण करने बित्रानी सेना दमोह पहुँची। ब्रितानी सेना ने ठाकुर किशोर सिंह ब्रितानियांे के हाथ नहीं लगा सके। वे जंगल मंे निकल गए। ठाकुर किशोर सिंह के सहयोगी और नरसिंहगढ़ के सरदार रधुनाथ राव ने ब्रितानी सेना के साथ युद्ध जारी रखा। इस दौरान वे गिरफ्तार कर लिए गए और ब्रितानियों ने उन्हें फाँसी के फंदे पर झुला दिया। प्रसिद्ध रंगकर्मी राजीव अयाची बताते है कि उन्होंने आजादी का इतिहास पढ़ा है, वे उस वार्ड के निवासी है जहाँ के क्रांतिकारी यशवंत ंिसंह को फाँसी की सजा दी गई थी, जिनकी प्रतिमा स्थल पर हर साल हम आजादी का पर्व मनाते हैं।
3.खेमराज बजाज
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री खेमराज बजाज जी बताते थे कि सन् 1942 ई. में जब मैं सोलह साल का था तभी आंदेालन में सक्रिय हो गया था। हमने पहले गढ़कोटा फिर रहली के खजाने पर तिरंगा फहराया। फिरंगियों का जमकर विरोध किया गया उसी में हमारे साथियों को जेल जाना पड़ा। कइयांे ने सामूहिक असहयोग किया। जिससे जो बन पड़ता था उसने उस अंदाज में अपना विरोध दर्ज किया। दरअसल स्न 1931 ई. में महात्मा गांधी जी का गाँव की सीमा (अनंतपुरा) से आना हुआ था। यहाँ उनकी सभा भी हुई थी। मैं तो तब 6 साल का था लेकिन पिताजी उनके सतत् सम्पर्क में थे। वही बताते थे कि गांधी जी का संदेश है कि जैसे बन पड़े वैसा विरोध करो। सिर्फ ंिहंसा का रास्ता नहीं अपनाना। हम लोगों पर इसका खासा प्रभाव पड़ा था।
अंग्रेजों की सेना गाँवों में घुसकर लोगों को डरा-धमका रही थी। भारत छोड़ो आंदोलन भी पूरे जोर-शोर पर था। इसी बीच अंग्रेज हमारे गाँव भी आए। ग्रामीणों ने उनका खुलकर विरोध किया। राशन पानी की सप्लाई भी नहीं की। 6 दिन तक अंग्रेज हमारे गाँव नहीं घुस सके थे। हमने अंग्रेजों के हर आदेश का विरोध किया। किसी ने कानून भंग किया तो किसी ने असहयोग जताया। कुछ लोगों ने व्यक्तिगत सत्याग्रह भी किया। बलेह गाँव के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की संख्या को लेकर अभी मतभेद है।
4.गणपत लक्ष्मण
गणपत लक्ष्मण ने बॉम्बे में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया और 19 अक्टूबर 1930 को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर 1908 के आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 14 की धारा 17 (1) के तहत आरोप लगाया गया। उन्हें 5 नवंबर 1930 को दोषी ठहराया गया और छह महीने की कठोर सजा सुनाई गई। कैद होना।
12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन का उद्घाटन किया गया। बंबई में, जुहू - विले - पार्ले, कांग्रेस हाउस, एस्प्लेनेड मैदान, गोवालिया टैंक, भाटिया बाग, केईएम अस्पताल में नमक डिपो पर छापा मारने वाले सत्याग्रहियों और पुलिस के बीच गंभीर झड़पें हुईं। , कुर्ला चर्चगेट, कोलीवाड़ा, माटुंगा, और वडाला, आदि।
सरकार ने 30 मई 1930 को धमकी रोकथाम अध्यादेश और गैरकानूनी उकसावे अध्यादेश दोनों को प्रख्यापित करके जवाब दिया। पत्राचार सेंसरशिप के तहत आ गया, कांग्रेस और उसके सहयोगी संगठनों को अवैध घोषित कर दिया गया, और उनके धन को जब्त कर लिया गया, और परिणामस्वरूप, बड़ी संख्या में लोगों को बेरहमी से पीटा गया और पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
गणपत लक्ष्मण उन सत्याग्रहियों में से एक थे जिन्होंने बॉम्बे में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया था।
5.यति अनोपचंद
यति अनोपचंद वह नाम है जिन्होंने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से स्वतन्त्रता सेनानियों का सहयोग देने का काम किया। आपने समय-समय पर देश सेवा में लगे सेनानियों को अपने उपासरों में जगह दी। उनके लिए भोजन की व्यवस्था भी की। इतना ही नहीं आवश्यकतानुसार यथा सम्भव आर्थिक सहयोग भी देने में भी पीछे नहीं रहे थे। आपको राजनीति का बहुत ज्ञान था। आपने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और जेल भी गए। आपने हजारों रूपये अपने पास से ही खर्च कर दिए। आप सेनानियों के परिवार के लिए रूपयों के अलावा कपड़े, राशन और तेल आदि की व्यवस्था करते थे। आपने जिस तरह से देश सेवा की वही एक सच्चे साधु की निशानी है।
