आदित्य-एल-1: सूर्य को जानने की जिज्ञासा | The Voice TV

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आदित्य-एल-1: सूर्य को जानने की जिज्ञासा

Date : 01-Sep-2023

 चंद्रयान-3 को चंद्रमा के दक्षिणी धु्रव पर सफलतापूर्वक उतारने के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने आदित्य-एल-1 को सूर्य की कक्षा में पहुंचाने के अभियान में जुट गया है। इस यान को 2 सितंबर को प्रक्षेपित किया जाएगा। यदि इस अभियान में भारत सफल हो जाता है तो वह सूर्य का अध्यन करने वाला चैथा देष हो जाएगा। इसके पहले अमेरिका, रूस और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी सूर्य पर षोध कर चुके हैं। इस अभियान का लक्ष्य सूर्य के प्रकाषमंडल (फोटोस्फेयर) और कोरोनामंडल (क्रोमोस्फेयर) के बीच की परत की गतिषीलता, तापमान, कोरोनल मास इजेक्षन (सीएमई) और अंतरिक्ष मौसम समेत कई दूसरे पहलुओं का वैज्ञानिक अध्यन करना है। आदित्य एल सात पेलोड विद्युत चुंबकीय और चुबंकीय क्षेत्र परखने वाले उपकरण अपने साथ लेकर जाएगा। ये उपकरण सूर्य के अध्यन के उद्देष्य को पूरा करेंगे। 

यह अभियान षत-प्रतिषत स्वदेषी है और इसके प्रक्षेपण में करीब चार माह लगेंगे। यह पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर एक विषेश स्थान लैंग्रेज बिंदु-1 पर पहुंचेगा। यहां पृथ्वी और सूर्य के गुरुत्वाकर्शण बल खत्म हो जाते हैं। अतएव यहां षोध के अध्यन के लिए आदित्य-एल को ज्यादा ऊर्जा की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसलिए इसे सूरज के विकिरण पराबैंगनी और एक्स किरणों तथा सूरज से निकलने वाली तीव्र ज्वलाओं का पृथ्वी के वायुमंडल पर क्या असर पड़ता है, यह जान लेना आसानी होगी। आदित्य जिन सात पेलोड को अपने साथ लेकर जाएगा उनमें से सात पेलोड सीधे सूर्य की गतिविधियों और कार्यप्रणाली पर नजर रखेंगे। तीन पेलोड सूर्य से निकलने वाली लपटों, उनमें अंतरर्निहित कणों, सौर्य विकरण का अध्यन करते हुए निश्कर्श व आंकड़े इसरो को भेजेंगे। एल-1 बिंदु पर अध्यन करने वाला यह विष्व का दूसरा अभियान है। इसके पहले 1995 में यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी ने सोलर तथा हीलियोस्पोरी आब्जर्वेटरी इसी लैंग्रेज बिंदु पर भेजा था। 

इसरो ने चांद के रहस्यों को जानने वाले अभियान का नाम चंद्रयान रखा हुआ है, लेकिन सूर्य के रहस्यों को ज्ञात करने वाले अभियान का नाम सूर्ययान नहीं रखा। इसे स्पश्ट करते हुए इसरो ने कहा है कि भारत का यह अभ्यिान सूर्य की सतह पर नहीं उतर रहा है। इस कारण इसके साथ सूर्य, सूरज या सौर्य षब्द नहीं जोड़ा गया। लेकिन आदित्य भी सूर्य का ही पर्यायवाची है। इसलिए इसे आदित्य एल-1 नाम दिया गया है। चूंकि यह सूरज की जिस कक्षा पर केंद्रित होकर अध्यन करेगा उसे लैंग्रेज बिंदु कहा जाता है, इसलिए इस अभियान का नाम आदित्य एल रखा गया है। पृथ्वी से इसी लैंग्रेज बिंदु की दूरी 15 लाख किलोमीटर है। आदित्य एक उपग्रह की तरह सूरज के चारों तरफ चक्कर लगाएगा। यह लगभग पांच वर्श तक सूरज से निकलने वाली किरणों का गहन अध्यन करेगा। इस अभियान पर कुल 378 करोड़ रुपए की लागत आई है। 

सूरज की सतह पर प्रचंड रूप से गर्म तापमान होता है। इस तापमान की पृश्ठभूमि में सूरज की सतह पर उपलब्ध प्लाजमा का विस्फोट है। इस विस्फोट की वजह से लाखों टन प्लाजमा अंतरिक्ष में फैल जाता है। इसे सीएनई कहते है। इसे पूरे ब्रह्माण में फैलाने का काम प्रकाष की गति करती है। कभी-कभी यह प्लाजमा धरती के ओर भी आ जाता है। परंतु धरती के तीव्र चुबंकीय क्षेत्र के प्रभाव की वजह से यह धरती की कक्षा तक पहुंचने से पहले ही नश्ट हो जाता है। फिर भी धरती की तरफ आने के समय ही पृथ्वी की कक्षा में परिक्रमा कर रहे उपग्रहों को यह सीएमई हानि पहुंचाने का काम कर देती है। कई बार सीएमई धरती की परत को भेदकर धरती के वायुमंडल में भी प्रवेष कर जाती है। इसलिए आदित्य एल को सूर्य के निकट भेजकर पृथ्वी के वायुमंडल में जो तत्व नुकसान पहुंचाने का काम करते हैं, उनको जानकर उन्हें नियंत्रित करना भी है। इसलिए ऐसा भी माना जा रहा है कि आदित्य अंतरिक्ष में विचरण कर रहे उपग्रहों के की सुरक्षा के लिए वरदान भी साबित हो सकता है। 

दरअसल किसी भी ग्रह के पास पहुंचे बिना, उसके संपूर्ण रहस्यों को जानना असंभव है। इसलिए दुनिया के वैज्ञानिक सूर्य के निकट पहुंचकर उसके रहस्यों को उजागार करने के प्रयास में लगे हैं। भारत के आदित्य एल अभियान के पहले  अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के पार्कर यान ने एक रिकाॅर्ड अपने नाम कर लिया है। वह सूर्य से 4.27 करोड़ किलोमीटर की दूरी से गुजरा। किसी यान के लिए यह सूर्य से अब तक की निकटतम दूरी है। इससे पहले सूर्य के इतने नजदीक अप्रैल 1976 में जर्मन-अमेरिकी यान हेलियम-2 पहुंचा था। जाॅन्स हाॅपकिंस एप्लाइड भौतिकी के वैज्ञानिक ने सौरयान को प्रक्षेपित करने के बाद 78 दिन के भीतर यह सफलता प्राप्त करके एक किर्तिमान स्थापित किया है। यही नहीं इस यान ने और आगे बढ़ते हुए 5 नवंबर 2018 को 34-सौर क्षेत्र में भी पहुंचने में सफलता प्राप्त कर ली थी। 34 सौर या सूर्य-समीपक किसी भी ग्रह की कक्षा के उस बिंदू का कहा जाता है, जहां वह सूर्य के सबसे समीप होता है। यही नहीं, अब यह ऐसे स्थान पर पहुंच गया है, जहां उसे तापमान और तीव्र विकिरण का सामना करना पड़ रहा है। अब वैज्ञानिक षताब्दियों से पहेली बने इस तारे के रहस्यों की नई-नई गांठे खोलेंगे। इस अभियान में सूर्य से इसकी निकटतम दूरी 61.63 लाख किमी है। सूर्य से जुड़े जीवन संबंधी जिन रहस्यों को आज वैज्ञानिक जानने की कोष्षि कर रहे हैं, उन रहस्यों में से अधिकांष का खुलासा हमारे ऋशि-मुनी हजारों साल पहले संस्कृत साहित्य में कर चुके हैं। जीव-जगत के लिए सूर्य की अनिवार्य उपादेयता को पहचानने के बाद ही सूर्य के प्रति निश्ठा जताने की दृश्टि से सूर्योपासना की षुरूआत हुई। 

सूर्य का अध्यन इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि इसी साल वैज्ञानिकों ने जानकारी दी थी कि बैल के सींग के आकार में सूर्य का एक टुकड़ा टूटकर अंतरिक्ष में विलीन हो गया है। इस खगोलीय घटना को ‘नेषनल एरोनाॅटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेषन‘ (नासा) ने अपने कैमरे में कैद भी कर लिया था। यह काम नासा के जेम्स वेब दूरबीन ने किया था। इससे पहले इस दूरबीन से ब्रह्मांड में चलायमान निहारिकाओं की अद्भुत तस्वीरें ली गई थीं। अंतरिक्ष मौसम के भविश्यवक्ता डाॅ तमिता स्काॅब ने अपने ट्विटर हैंडल पर इन तस्वीरों का वीडियो भी साझा किया है। वीडियो में सूर्य का एक बड़ा हिस्सा टूटकर अलग होते दिख रहा है। सूर्य के उत्तरी धुव्र पर यह घटना घटी थी। 

हमारे ब्रह्मांड में बहुत कुछ ऐसा होता रहता है, जो रहस्यों से भरा हुआ है। सूर्य में अग्नि का ज्वार निरंतर उठता रहता है। यही आग संसार को रोषनी देती है। सौर ऊर्जा के सभी उपकरण इसी आग को संग्रह करके चलाए जा रहे हैं। हालांकि सूर्य से अग्नि के हिस्से का टूटकर बिखरना कोई नई बात नहीं है। लेकिन यदि सूर्य का वास्तव में एक हिस्सा टूटकर गिरा है तो इसका गंभीर अध्ययन आवष्यक है। यह अभी स्पश्ट नहीं है कि सूर्य का कोई टुकड़ा पहली बार टूटा है ? संभव है, पहले भी टूटा हो ? लेकिन जेम्स वेब जैसी षक्तिषाली दूरबीन नहीं होने के कारण उसके चित्र नहीं लिए जा सके हों ? यदि सूर्य का कोई भाग टूटा है, तो क्या इसका यह अर्थ निकाला जाए कि सूर्य का आकार अनजाने कारणों से घट रहा है ? या सूर्य के गोले के इर्द-गिर्द अग्नि के जो विस्फोट होते रहते हैं, वे सूर्य का आकार बनाए रखने का काम करते हैं। दरअसल इन अनुत्तरित प्रष्नों को लेकर भौतिक विज्ञानियों ने विकास और पृथ्वी पर इसके प्रभाव पर चिंता जताई है। 

कुछ भारतीय वैज्ञानिक सूर्य के टूटने की घटना को नई बात नहीं मान रहे हैं। सूर्य की प्रकृति में ऐसा होता रहता है, लेकिन इस बार टूटने की प्रक्रिया की तीव्रता अधिक थी। ऐसे भी अनुमान लगाए जा रहे हैं कि सूर्य का टूटा हुआ टुकड़ा फिर से अपनी जगह स्थापित हो जाए। क्योंकि सूर्य के प्रभाव के क्षेत्र में सूर्य का गुरुत्वाकर्शण बल काम करता है। अतएव यह आषंका ही निराधार है कि सूर्य का अंष टूटा है। यह न तो सूर्य के द्रव्यमान को प्रभावित करेगा और न ही पृथ्वी पर इसका कोई असर होगा।

बावजूद इस घटना से पृथ्वी का दूर-संचार क्षेत्र प्रभावित होने की षंका जताई जा रही है। परंतु अभी इसके कोई संकेत देखने में नहीं आए है। सूर्य गैस से बना हुआ एक गोला है। नतीजतन इसकी सतह पर निरंतर परमाणु प्रतिक्रिया होती रहती है।

ये प्रतिक्रियाएं यदि सूर्य के धु्रवों के निकट होती रहती हैं तो इस घटना का कोई प्रभाव धरती पर नहीं पड़ेगा। चूंकि सूर्य के करीब पहुंचना आसान नहीं है, इसलिए इसे अभी तक वैज्ञानिक बहुत ज्यादा जान ही नहीं पाए हैं। इस नाते आदित्य एल सूर्य के कुछ नए रहस्य जरूर उजागर करेगा। जैसे कि चंद्रयान-1 ने पहली बार चंद्रमा के दक्षिणी धु्रव पर पानी होने के प्रमाण दिए थे।

 
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