उत्तराखंड की संस्कृति जितनी समृद्ध है, उतने ही मन को मोहने वाले यहां के लोकगीत-नृत्य भी हैं। यहां लोक की विरासत समुद्र की भांति है, जो अपने आप में विभिन्न रंग और रत्न समेटे हुए है। हालांकि, वक्त की चकाचौंध में अधिकांश लोकनृत्य कालातीत हो गए, बावजूद इसके उपलब्ध नृत्यों का अद्भुत सम्मोहन है। उत्तराखंडी लोकगीत-नृत्य महज मनोरंजन का ही जरिया नहीं हैं बल्कि वह लोकजीवन के अच्छे-बुरे अनुभवों से सीख लेने की प्रेरणा भी देते हैं।विभिन्न अनेकों लोकनृत्यों में से एक है :
चौंफला: चांचड़ी और झुमैलो आदिकाल से ही शरदकालीन त्योहारों का हिस्सा रहे हैं, लेकिन अब वासंती उल्लास का गीत चौंफला भी इनमें शामिल हो गया है। चौंफला का शाब्दिक अर्थ है, चारों ओर खिले हुए फूल। जिस नृत्य में फूल के घेरे की भांति वृत्त बनाकर नृत्य किया जाता है, उसे चौंफला कहते हैं। मान्यता है कि देवी पार्वती सखियों के साथ हिमालय के पुष्पाच्छादित मैदानों में नृत्य किया करती थीं। इसी से चौंफला की उत्पत्ति हुई। इस नृत्य में स्त्री-पुरुष वृत्ताकार में कदम मिला, एक-दूसरे के विपरीत खड़े होकर नृत्य करते है। जबकि, दर्शक तालियों से संगीत में संगत करते हैं।
