विभिन्न और अनोखी लोक संस्कृति से परिपूर्ण है छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति | इन्हीं लोक संस्कृति से जुड़ा तीजा पोला का शुरुआत रात में करु भात खाने की रस्म से होता है | यह व्रत शुक्रवार को चतुर्थी तिथि तक जारी रहेगा। इस दौरान महिलाएं निर्जला व्रत रखेंगी। इस बीच गुरुवार की रात घरों में महिलाएं इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से शिव-पार्वती की पूजा करेंगी। इसके बाद रातभर भजन-कीर्तन करते हुए सभी रात्रि जागरण करेंगी।
क्या होता है करू भात
छत्तीसगढ़ी में कड़वा मतलब ‘करू‘ होता है और पके हुए चावल को ‘भात‘ कहा जाता है. इस व्रत पूजा से एक दिन पहले शाम के समय भोजन में करेला की सब्जी भात का भोग लगाएंगी | इस दिन छत्तीसगढ़ के हर घर में करेले की सब्जी खासतौर पर बनाई जाती है |
इस वजह से निभाते है करू भात का रिवाज
महिलाएं बताती हैं कि तीज व्रत के एक दिन पहले करेला इसलिए खाया जाता है, क्योंकि करेला खाने से कम प्यास लगती है। हरितालिका तीज का उपवास महिलाएं निर्जल होकर करती है | इस दिन करेला खाने का दूसरा कारण ये भी है कि मन की शुद्धता के लिए करेले की कड़वाहट जरूरी है, जिससे मन शांत हो जाता है। इसी मान्यता से आज महिलाएं करू भात खाकर 24 घंटे का निर्जला व्रत करेंगी।
पोषक तत्वों से भरपूर होता है करेला
करेले का नूट्रिशनल वैल्यू: करेले में प्रचूर मात्रा में विटामिन A, B और C पाए जाते हैं। इसके अलावा कैरोटीन, बीटाकैरोटीन, लूटीन, आइरन, जिंक, पोटैशियम, मैग्नीशियम और मैगनीज जैसे फ्लावोन्वाइड भी पाए जाते हैं।
स्वस्थ रहने के लिये खट्टे, मीठे, कसैले, तीखे रस की जरूरत होती है उसी तरह कड़वे रस की जरूरत भी शरीर को होती है। स्वस्थ शरीर के लिये रस की उचित मात्रा की जरूरत होती है। इसमें से किसी भी रस के अभाव होने पर शरीर में विकार उत्पन्न हो जाते हैं। करेला वात विकार, पाण्डु, प्रमेह एवं कृमिनाशक होता है। बड़े करेले के सेवन से प्रमेह, पीलिया और आफरा में लाभ मिलता है। छोटा करेला बड़े करेले की तुलना में ज्यादा गुणकारी होता है। करेला शीतल, भेदक, हलका, कड़वा व वातकारक होता है और ज्वर, पित्त, कफ रूधिर विकार, पाण्डुरोग, प्रमेह और कृमि रोग का नाश भी करता है। करेली के गुण भी करेले के समान है। करेले का साग उत्तम पथ्य है। यह आमवात, वातरक्त, यकृत, प्लाहा, वृध्दि एवं जीर्ण त्वचा रोग में लाभदायक होता है। इसमें विटामिन ‘ए’ अधिक मात्रा में होता है। इसमें लोहा, फास्फोरस तथा कम मात्रा में विटामिन सी भी पाया जाता है |
ये है प्राचीन मान्यता
हिन्दू मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने सर्वप्रथम यह व्रत रखा था और भगवान शिव को प्राप्त किया था। प्राचीन मान्यता है कि आज के दिन माता पार्वती ने शिव को प्राप्त करने के लिए तीजा के दिन निर्जला और निराहार रहकर घनघोर तप किया था। भगवान शंकर पार्वती से प्रसन्न हो जाते हैं और उन्हें अपने जीवन में पत्नी के रूप में स्थान देते हैं। कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर की कामना के लिए उपवास रखती हैं। उड़ीसा में यह गौरी व्रत के नाम से जाना जाता है।