मंदिर श्रृंखला:- वल्लभाचार्य महाप्रभु
Date : 04-Nov-2024
महाप्रभु वल्लभाचार्य जी पुष्टि संप्रदाय के प्रवर्तक माने जाते हैं। चम्पारण उनका प्राकट्य धाम होने के कारण पुष्टि संप्रदाय के लोग इस स्थल को सर्वश्रेप्ठ पवित्र भूमि मानते हैं। वल्लभाचार्य महाप्रभु , जिन्हें वल्लभ, महाप्रभु, महाप्रभुजी और विष्णुस्वामी या वल्लभ आचार्य के नाम से भी जाना जाता है, भगवान कृष्ण के अवतार हैं, एक हिंदू भारतीय संत और दार्शनिक भी हैं | उन्होंने ब्रज (व्रज) में वैष्णव धर्म के कृष्ण -केंद्रित पुष्टिमार्ग संप्रदाय की स्थापना की और शुद्धाद्वैत दर्शन का प्रतिपादन किया। वल्लभ ने कम उम्र से ही हिंदू दर्शन का अध्ययन किया, फिर 20 से अधिक वर्षों तक पूरे भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की।
जब श्री वल्लभाचार्य ने उस स्थान की खुदाई शुरू की जिसमें उन्हें भगवान कृष्ण की एक मूर्ति प्राप्त हुई, मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने उन्हें श्रीनाथजी के रूप में दर्शन दिए और उन्हें अपने गले से लगाया| उस दिन से, श्री वल्लभाचार्य के अनुयायी बड़ी भक्ति के साथ बाला या भगवान कृष्ण की किशोर छवि की पूजा करते हैं |
वल्लभाचार्य के जन्म की कहानी
एक बार यज्ञनारायण भट्ट यज्ञ कर रहे थे तभी वहाँ विष्णु मुनि जी का आगमन हुआ यज्ञनारायण द्वारा मुक्ति का मार्ग पूछने पर मुनि ने उन्हें गोपाल नाम मंत्र दिया यज्ञनारायण भट्ट ने अपने जीवनकाल में 32 सोमयज्ञ पुरे किये, एक बार यज्ञनारायण वृद्धावस्था में यज्ञ कर रहे थे| तभी उन्होंने यज्ञ कुंड में श्रीफल की आहुति दी उसी समय यज्ञ में से साक्षत भगवन विष्णु प्रकट हुए उन्होंने यज्ञनारायण से कहा कि जब तुम्हारे कुल में 100 सोमयज्ञ पुरे हो जायेंगे तब मै तुम्हारे कुल में स्वयं वैष्णव रूप में जन्म लुंगा|
एक रात स्वप्न में भगवन विष्णु ने भट्ट को कहा कि मैने तुम्हारे पुत्र के रूप में चंपारण के जंगलों में जन्म लिया है मुझे ले जाओ, जब लक्ष्मण भट्ट और इल्लामागारू उस स्थान पर पहुचे तो उन्होंने देखा कि उन्होंने जिस पुत्र को मृत समझकर छोड़ दिया था वह तो जीवित है| इस प्रकार “1479 “ कि चैत्र मास कृष्ण पक्ष कि एकादशी की रात्रि को जन्मे इस बालक का नाम वल्लभ “ रखा गया, इस दिन को श्री वल्लभ जयंती के रूप में मनाया जाता है आगे चलकर श्री वल्लभ वैष्णव समुदाय के महान ज्ञाता और मार्गदर्शक बने| महाप्रभु वल्लभाचार्य जी कि जन्म स्थली होने से चंपारण वैष्णव समुदाय के लोंगों के लिए प्रमुख आस्था का केंद्र है| यहाँ प्रभु वल्लभाचार्य जी की 2 बैठकी है| यहाँ भगवन त्रिमूर्ति शिव का अवतरण हुआ| लोंगों का आवागमन न होने से भगवन शिव ने एक गाय को अपन निमित्त बनाया यह गाय रोज अपन दूध त्रिमूर्ति शिव को पिलाकर चली जाती थी| जब ग्वाला दूध लेता था तब दूध नहीं आता था इस बात से ग्वाले को संदेह हुआ और उसने एक दिन गाय का पीछा किया तो देखा कि गाय अपना दूध शिवलिग को पिला रही है, उसने यह बात राजा को बताई और इस तरह यह बात पुरे विश्व में फ़ैल गयी | इसे त्रिमूर्ति शिव बोलने का एक कारण यह है कि शिवलिंग तीन रूपों का प्रतिनिधित्व करता है उपरी हिस्सा गणपति का मध्य भाग शिव का और निचला भाग माँ पारवती का | एक और ध्यान आकर्षित करने वाली बात ये है कि पुरे चंपारण और निकटवर्ती गाँवो में होलिका दहन नहीं मनाया जाता क्योकि यहाँ पेड़ों की कटाई करना पाप माना जाता है | इसका सबसे उदाहरण इस मंदिर के बनावट से ले सकते हैं यहाँ मंदिर परिसर में बीच बीच में पेड़ है |
यहाँ से लगभग 11 कि.मी. दूर टीला एनिकट है यह एनीकट महानदी पर बना है इसकी लम्बाई लगभग 1300 मी. कि है इस एनिकट में कुल 116गेट है| यहाँ 81 फीट ऊँचा हनुमान जी कि मूर्ति है |