मंदिर श्रृंखला:- सोमनाथ मंदिर
Date : 11-Nov-2024
गुजरात के पश्चिमी तट पर स्थित सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल के पास प्रभास पाटन में स्थित सोमनाथ मंदिर को शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में पहला स्थान प्राप्त है, और इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी किया गया है। यह गुजरात का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल और पर्यटन स्थल है। अतीत में कई बार विध्वंस के बाद, वर्तमान मंदिर को हिंदू वास्तुकला की चौलुक्य शैली में फिर से बनाया गया, और इसका पुनर्निर्माण मई 1951 में वल्लभभाई पटेल द्वारा पूरा किया गया। सोमनाथ का स्थान त्रिवेणी संगम (तीन नदियाँ - कपिला, हिरण और सरस्वती का संगम) होने के कारण प्राचीन काल से ही एक प्रमुख तीर्थ स्थल रहा है।
मान्यता है कि सोमचंद्र (चन्द्र देव) भगवान ने एक श्राप के कारण अपनी चमक खो दी थी, और इसे वापस पाने के लिए उन्होंने इस स्थल पर सरस्वती नदी में स्नान किया था। इसका परिणाम चंद्रमा का बढ़ना और घटना है, इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह समुद्र तट के इस स्थान पर ज्वार के बढ़ने और घटने का संकेत है। शहर का नाम प्रभास , जिसका अर्थ चमक है, साथ ही वैकल्पिक नाम सोमेश्वर और सोमनाथ ("चंद्रमा का स्वामी" या "चंद्रमा देवता") इस परंपरा से उत्पन्न हुए हैं| मान्यता है कि पहले सोमनाथ में शिवलिंग हवा में स्थित था |
सोमेश्वर नाथ की कहानी
दक्ष ने उन्हें 'क्षयरोग से ग्रस्त हो जाने का श्राप दिया था | इस श्राप के कारण चंद्रदेव तत्काल क्षयग्रस्त हो गए | उनके क्षयग्रस्त होते ही पृथ्वी पर सुधा-शीतलता का उनका सारा काम रूक गया | चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई | दुखी चंद्रमा अपनी व्यथा लेकर ब्रह्माजी के पास गए ब्रह्माजी ने चंद्रमा को भगवान शिव की आराधना करने को कहा..चंद्रदेव ने भगवान् शिव की आराधना की उन्होंने घोर तपस्या करते हुए मृत्युंजय मंत्र का जप किया | इस मंत्र से प्रसन्न होकर मृत्युंजय-भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वर प्रदान किया | उन्होंने कहा- 'चंद्रदेव! तुम शोक न करो | मेरे वरदान से तुम्हारा श्राप -मोचन तो होगा ही, साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी | यह कहते हुए भगवान शिव ने प्रसन्न होकर चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण किया तब से उन्हें सोमेश्वर नाथ भी कहा जाने लगा |
भगवान बोले कृष्णपक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी, किंतु पुनः शुक्ल पक्ष में उसी क्रम से तुम्हारी एक-एक कला बढ़ जाया करेगी | इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा' इस तरह शंकर भगवान के आशीर्वाद से चंद्रदेव श्राप मुक्त हुए |