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"स्व के लिए औरंगजेब को दक्षिण में दफन किया : वीरांगना ताराबाई भोंसले"
Date : 09-Dec-2024
ताराबाई के नेतृत्व में मराठों के सेनानायक एवं सेना दक्षिण के सभी मुगल इलाकों में फैल गई और मुगल प्रदेशों में सर्वत्र तहलका मचाया तथा मुगल सैनिक टुकड़ियों को परास्त कर दिया। अगस्त सन् 1700 में हनुमंतराव निंबालकर ने खटाव जिला मुगलों से छीन लिया और राणो जी घोरपड़े ने बागेबाड़ी और इन्दी के समृद्ध प्रदेश मुगलों से जीतकर अपने अधिकार में कर लिए। महाराष्ट्र में मुगल सैनिकों के दबाव को कम करने के लिए मराठों ने खानदेश व बरार में मालवा में उज्जैन, मंदसौर और सिरोंज तक तथा गुजरात में अहमदाबाद की सीमा तक हमले किए और धन हस्त गत किया। इसका कुप्रभाव मुगलों की सुरक्षात्मक कार्यवाही ऊपर पड़ा और सैनिक शक्ति क्षीर्ण हो गई। दुर्गों में नियुक्त मुगलों के सुरक्षा सैनिक दल भी दुर्बल और शक्तिहीन गए। फलतः मराठों ने परशुराम त्रयंबक के नेतृत्व में बसंतगढ़, पन्हाला, पवन गढ़ और सन् 1704 में अन्नाजी पंत की वीरता और दुस्साहस से सतारा दुर्ग मुगलों से जीत लिए। सचिव शंकर जी नारायण के कठिन प्रयासों से मराठों ने सिंहगढ़, राजगढ़, रोहिड़ा और अन्य कुछ दुर्ग भी हस्तगत कर लिए। सन् 1705 में मराठों ने जनवरी में लोहगढ़ और जून में राजमाची और जुलाई में कोण्डना दुर्ग भी मुगलों से जीतकर अपने अधिकार में ले लिया। अब ताराबाई ने पन्हाला में पुनः अपने राज्य का मुख्य कार्यालय स्थानांतरित कर दिया और वहीं से शासन करने लगीं। सन् 1707 में धन्नाजी जाधव ने पूना और चाकन को भी मुगलों से छीन लिया। सन् 1706 में औरंगजेब सेना सहित लौटकर अहमदनगर में अपने शिविर में था तब धनाजी जाधव, नेमोजी शिंदे, दादू मल्हार व रंभा निंबालकर के नेतृत्व में एक बहुत बड़ी सेना उसके डेरे से 6 किलोमीटर दूरी तक आ पहुंची और बड़ी घमासान खूनी लड़ाई के बाद वहां से हटी। इस प्रकार ताराबाई के नेतृत्व में उसके सेनापतियों ने 7 वर्ष की अवधि में साधन संपन्न शक्तिशाली मुगल साम्राज्य और उसकी सत्ता को लुंज पुंज ही नहीं किया अपितु शिवाजी के विध्वंस हुए राज्य की राख के ढेर में से एक नवीन राज्य निर्मित किया एवं एक नवीन महत्तर महाराष्ट्र को पुनर्जीवित किया। 7 वर्ष के इस स्वतंत्रता संग्राम में मराठों में साहसिक वीरता, उत्कृष्ट सहनशीलता, घोर निराशा में आशा की भावना, आत्मविश्वास, उच्च आदर्शों के प्रति निष्ठा श्रेष्ठ सैनिक नैतिक बल, आत्म बलिदान, राष्ट्रीय और देशप्रेम की उत्कृष्ट भावना जैंसे गुण विकसित किए और इससे वे इतने शक्तिशाली हो गए कि आगामी 3 पीढ़ियों में वे उत्तरी भारत में विजेता के रूप में पहुंच गए। वीरांगना ताराबाई ने औरंगजेब की मानसिक और शारीरिक अवस्था पर भयानक आघात किया और इस स्वतंत्रता संग्राम ने ऐसा भीषण विकराल रूप धारण किया कि दक्षिण में उसने तथाकथित बादशाह औरंगजेब और उसके साम्राज्य दोनों को ही क्षत-विक्षत कर समाप्त कर दिया। दक्षिण में ही तथाकथित बादशाह और साम्राज्य दोनों की मज़ार बन गई।
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