दीनता, पलायन या समर्पण से लक्ष्य पूर्ति नहीं होती : एकाग्रता के साथ निर्णायक संघर्ष से होती है
Date : 11-Dec-2024
समय के साथ समस्या या चुनौतियों का स्वरूप और शैली तो बदलती है पर वे मनुष्य का पीछा नहीं छोड़ती। समस्या से पलायन या दीनता का प्रदर्शन करके समर्पण करना उनका समाधान नहीं है । पूरी एकाग्रता के साथ निर्णायक संघर्ष ही उनका समाधान है । भगवान श्रीकृष्ण ने यही संदेश दिया है अर्जुन को जो आज श्रीमद्भगवत गीता के रूप में आज भी हमारे कर्म कर्तव्य का मार्गदर्शन है ।
श्रीमद्भगवद्गीता भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन केबीच संवाद है । जो महाभारत युद्ध केलिये सजी सेनाओं के बीच हुआ था । यह महाभारत के भीष्मपर्व का एक अंश है। इसमें कुल सात सौ श्लोक हैं। इसमें 574 कृष्ण उवाच। भगवान श्रीकृष्ण उवाच का प्रत्येक श्लोक मानों ज्ञान का महासागर है । इसमें विचारों की गहराई भी है, निष्कर्ष की सतह भी है और भविष्य के जीवन का विस्तार भी । यह एक कालजयी संवाद है । ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका समाधान गीता में न हो । समय कोई भी हो, समस्या या चुनौती का स्वरूप कोई हो, उसके समाधान के सूत्र गीता में अवश्य मिलते हैं। जिस प्रकार प्रकृति में अंधकार और प्रकाश एक दूसरे के पूरक हैं। उसी प्रकार समस्या या चुनौती जीवन का अनिवार्य विधा है । समस्या पर सफलता ही जीवन की प्रगति है और समस्या से भागना जीवन की अवनति । इसलिये पहले समस्या को समझकर फिर पूरी एकाग्रता के साथ सामना करने करने से ही जीवन ही उनन्ति है। यही संदेश श्रीमद्भगवद्गीता में है । यह असाधारण ग्रंथ है, कालचक्र से परे हैं । लक्ष्य प्राप्ति और समस्या निदान केलिये इसमें वर्णित सूत्र प्रत्येक कालखंड में सामयिक हैं । सामान्य जीवन के कर्म-कर्तव्य से लेकर परिश्रम, पुरुषार्थ, प्रकृति के रहस्य, आत्मा का अस्तित्व, ब्रह्म के द्वैत और अद्वैत स्वरूप तक सभी जिज्ञासाओं का समाधान श्रीमद्भगवत गीता में है। व्यक्तित्व विकास, धर्म की रक्षा और राष्ट्र निर्माण के सूत्र समझने केलिये संसार के अधिकांश देशों ने गीता का अपनी भाषा में अनुवाद किया है। अंग्रेजी, जर्मन और फ्रेंच ही नहीं उर्दू और अरबी तक में गीता के अनुवाद हुये हैं । अमेरिका और ब्रिटेन के कुछ विश्वविद्यालयों मे गीता पाठ्यक्रम में शामिल है । भारत में भी गीता के जितने भाष्य तैयार हुये उतने किसी अन्य ग्रंथ के नहीं। ये भाष्य सभी विचार समूह के मनीषियों ने किये । उनमें आध्यात्मिक, साहित्यक, समाज सुधारक, राजनेता आदि सभी वर्ग समूह के सुधिजन हैं । पूज्य आदि शंकराचार्य जी के भाष्य में निर्गुण और अद्वैत के दर्शन होते हैं तो रामानुजाचार्य जी के भाष्य में सगुन भक्ति के । वहीं ज्ञान और कर्म को समझाने वाला ओशो का भाष्य है । राजनेताओं में गाँधी जी और लोकमान्य तिलक और बिनोबा जी भी हैं जिन्होंने गीता के ज्ञान को अपने ढंग प्रस्तुत किया है। विषमता और विभ्रम के बीच विचारों जो संकल्पशील एकाग्रता गीता से मिलती है वह अद्भुत है । इसकी झलक विषमता के बीच पूज्य आदिशंकराचार्य जी द्वारा सनातन धर्म की पताका को पुनर्प्रतिठित करने में, रामानुजाचार्य जी द्वारा दासत्व के घोर अंधकार के बीच भक्ति मार्ग द्वारा सनातन ज्योति जलाये रखने में गाँधीजी एवं लोकमान्य तिलक ने स्वाधीनता संग्राम में नयी दिशा प्रदान करने में और बिनोवा जी के भूदान आँदोलन की संकल्पशीलता में स्पष्ट झलकती है। व्यक्ति निर्माण कैसा हो, समाज का स्वरूप कैसा हो और समस्या आने पर व्यक्ति का संकल्प कैसा हो । इन सबके सूत्र श्रीमद्भगवत गीता में है ।
लेखक - रमेश शर्मा