आतंक का तालिबानी चेहरा Date : 12-Dec-2024 कुछ दिनों पहले अफगानिस्तान के तालिबान आतंकी संगठन की सरकार ने वहां की रहने वाली महिलाओं और लड़कियों को सभी प्रकार के कामों को करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। जिसमें प्रमुख रूप से वहां के स्वास्थ्य विभाग में सेवा देने वाली सभी नर्सों और मिडवाइफ के साथ ही नर्सिंग की पढाई कर रही लड़कियों पर भी अपने अगले आदेश तक रोक लगा दी गयी है। अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार ने ही वर्ष 2022 से सभी प्रकार की महिला शिक्षा पर प्रतिबंध भी काम करने परलगा रखा है। और साथ ही महिलाओं को बिना हिजाब के कही भी आने जाने काम करने पर प्रतिबंध लगा रखा है। समय-समय पर वहा की महिलाओ को कट्टर इस्लामिक आतंक के तालिबानी चेहरें का सामना करना पड़ता ही है। लेकिन सभी स्थानीय सामाजिक संगठनों के साथ ही वैश्विक संस्थान भी ऐसे गंभीर विषयों पर बोलने से बचती नजर आती हैं। या हम यह कह सकते है कि वे बोलना ही नहीं चाहते हैं। ऐसा ही एक प्रतिबंध बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में भी देखने के लिए मिल रहा हैं। कुछ दिनों पहले बांग्लादेश के गोपालगंज में वहां के मजहबी स्थलों से लाउडस्पीकर पर फतवे के माध्यम से ऐलान किया गया है कि वहां के मुख्य बाजार में महिलाओं को किसी भी प्रकार के सामान की बिक्री न की जाए और साथ ही महिलाओं को बाजार आने-जाने पर पूर्णतया प्रतिबंध लगा दिया गया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि नमाज के समय पर सभी दुकान के बाहर पर्दा डालकर रखना होगा। नमाज के समय किसी भी प्रकार का व्यापार-व्यवहार नहीं होगा। जहा भी हमें कट्टर इस्लामिक शासन देखने के लिए मिलता है, वहां हमें महिलाओं पर ऐसे प्रतिबंध अवश्य ही दिखाई देते हैं। जिन भी इस्लमिक देशो में कट्टर इस्लामिक शरिया कानून लागू हैं, वह महिलाओ को लेकर स्थिति विकराल ही दिखाई देती हैं। जिसका एक प्रमुख उदाहरण हमें ईरान में देखने के लिए मिल रहा हैं। कट्टर इस्लामिक शरिया कानून के चलते ही वहा पर महिलाओ को स्वतंत्र निर्णय करने की अनुमति नहीं हैं। उन्हें अपने निजी फेसलो को भी लेने के लिए पहले अपने पुरुष अभिभावक से अनुमति लेनी होती हैं। ईरान में महिलाओ को अकेले कही भी बाहर आने-जाने की स्वतंत्रता नहीं हैं। शरिया कानून के आधार पर वहा लड़कियो की शादी की उम्र भी 13 ही है और यदि लड़की के अभिभावक चाहे तो वे 13 वर्ष की उम्र के पहले भी उसकी शादी कर सकते हैं। हिजाब ना पहनने के कारण ईरान की महिलाओ को गिरफ़्तारी और जेल जाने का डर हमेशा बना रहता हैं। सितम्बर 2022 में ईरान की एक सामाजिक कार्य करने वाली महिला जिसका नाम माशा अमिनी था, को गलत तरीके से हिजाब पहनने पर गिरफ्तार कर लिया गया था, बाद में जहा उसकी गिरफ़्तारी में ही मृत्यु हो गयी थी। ईरान में ही समय-समय पर हमें शरिया कानून के विरोध में प्रदर्शन देखने के लिए मिल रहे हैं। जहा भी कट्टर इस्लमिक मानसिकता घर करने लगती हैं। वहा सबसे बड़ी कीमत महिलाओ और लड़कियों को ही चुकानी पड़ती हैं। सऊदी अरब में वर्ष 2018 में पहली बार महिलाओ को कार ड्राइविंग की अनुमति मिली थी। जो की संपूर्ण विश्व के लिए वाश्चर्य का विषय बन गया था। ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, सऊदी अरब जैसे अनेको देश जहा पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कट्टर इस्लामिक मानसिकता को आधार बनाकर नियम बनाये जाते है। वहा की महिलाओ को नारकीय जीवन जीने के लिए विश्वास होना पड़ता है। लेखक - सनी राजपूत