(पाकिस्तान ही नहीं वरन् आधी दुनिया की शक्तियों ने घुटने टेके थे - सेम की सलाह पर पाकिस्तान के पराजित 8 उच्च सेनानायक युद्धबंदी के रुप में 8 माह जबलपुर में बंद रहे)
मार्च 1971 के आते-आते पूर्वी पाकिस्तान में पश्चिमी पाकिस्तान की ओर से 30 लाख लोगों को मार दिया गया और 2 करोड़ शरणार्थियों के आगमन की स्थिति बन गई, और वे भारत में प्रवेश करने लगे। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 25 अप्रैल 1971 को आपात बैठक बुलाई। अंततः तत्काल आक्रमण का निर्णय लिया गया परंतु जनरल सेम मानेकशॉ ने असहमति व्यक्त की। इस बात को लेकर यद्यपि श्रीमती इंदिरा गांधी और सेम में मतभेद हुए परंतु जब सेम ने वस्तु स्थिति स्पष्ट की तो श्रीमती गांधी सहमत हुईं।
सेम ने कहा कि "मानसून आते ही
नदियों में बाढ़ जैंसे स्थिति बनेगी वायुसेना भी ठीक तरह से सहायता नहीं कर सकेगी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चीन, ऐंसे मौके पर पाकिस्तान का सहयोग निश्चित करेगा और हम हार जायेंगे"। इसलिए दिसंबर में हमला किया जाये उत्तर - पूर्व में बर्फ जम जायेगी और चीन का सहयोग नहीं मिलेगा।
पाकिस्तान की गुप्तचर व्यवस्था ये जानने में असफल रहीं कि भारत ने पश्चिमी और पूर्वी मोर्चों पर पूरी तैयारी कर ली है। 4 दिसंबर को सेम ने पाकिस्तान पर आक्रमण की तैयारी कर ली। पाकिस्तान ने उतावलेपन 3 दिसंबर को अमृतसर एयर बेस समेत अन्य एयर बेस को निशाना बनाते हुए आक्रमण कर दिया और सन् 1971 का बांग्लादेश लिबरेशन वाॅर प्रारंभ हो गया। पाकिस्तान ने इस एयर अटैक को आपरेशन "चंगेज खान" नाम दिया। भारत ने जवाब आपरेशन कैक्टस - लिली और सर्चलाइट के अंतर्गत दिया, पाकिस्तान के 7 एयर बेस उड़ाये और कराची बेस को ध्वस्त कर आपरेशन चंगेज खान की कमर तोड़ दी। पाकिस्तान ने अमेरिका से 10 वर्ष के लिए उधार ली पनडुब्बी पी. एन. एस. गाजी को भारत के जहाजी बेड़े आई. एन. एस. विक्रांत को नष्ट करने के लिए लिए भेजा। तब आई. एन. एस. राजपूत को विक्रांत का स्वरुप देकर आगे बढ़ाया गया। आखिरकार राजपूत ने गाजी को खोज लिया और काल की तरह टूटा पनडुब्बी स्वाहा हो गयी।आपरेशन ट्राइडेंट और आपरेशन पायथन के अंतर्गत एडमिरल कुरुविल्ला और वाइस एडमिरल कोहली के नेतृत्व में नेवी ने कहर बरपाया, 10 पाकिस्तानी युद्धपोत दफन कर कराची बेस के चिथड़े उड़ा दिए।
पाकिस्तान की आधी जल सेना तबाह हो गयी।
थल सेना ने पश्चिमी मोर्चे पर भयंकर कहर बरपाया। लोंगोंवाल का प्रसिद्ध युद्ध हुआ। सेना ने पाकिस्तान में 5795 वर्ग मील कब्जा कर लिया (आजाद कश्मीर, सिंध और पंजाब) बाद में उनको वापस किया। यह तत्कालीन सरकार ने गलत किया क्योंकि यह सही समय था कश्मीर समस्या को हल करने का।
अब चलते हैं पूर्वी पाकिस्तान जहाँ पूर्वी कमान के ले. ज. जगजीत सिंह अरोड़ा ने मोर्चा संभाला था। आपरेशन जैकपाट के साथ ब्लिट्जक्रीग वाॅर स्ट्रेटजी (द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी ने इसका प्रयोग किया था) का प्रयोग किया गया। पाकिस्तानी सेना त्राहि माम करने लगी, और 16 दिसंबर 1971 को द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत विश्व का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण पाकिस्तानी ले.ज. नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ किया।लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के साथ 7 बड़े सेनानायक युद्धबंदी के रुप में जबलपुर लाए गए जिनके भाग्य का निर्णय बाद में हुआ। जबलपुर का यह युद्ध बंदी शिविर नंबर 100, तत्समय ए. ओ. सी. स्कूल, विजयंत ब्लाक था, सन् 1971 में पाकिस्तान की शर्मनाक पराजय और हमारी सेना के साहस और शौर्य का अप्रतिम प्रतीक है।
पराजित पाकिस्तानी सेनानायकों में, लेफ्टिनेंट जनरल ए. ए. के. नियाजी, मेजर जनरल मोहम्मद हुसैन अंसारी, मेजर जनरल नजर हुसैन शाह, मेजर जनरल राव फरमान अली, मेजर जनरल मोहम्मद जमशेद, मेजर जनरल काजी अब्दुल मजीद खान, रिअर एडमिरल मोहम्मद शरीफ और एयर कमांडर इनामुल हक खान को जबलपुर में 8 माह तक युद्धबंदी के रुप में रखा गया था। शिमला समझौते के बाद ही इनकी मुक्ति हुई।
अब कूटनीतिक पद "गन बोट डिप्लोमेसी" की चर्चा करना बहुत आवश्यक है। अमेरिका ने सुरक्षा परिषद में भारत के विरुद्ध प्रश्न उठाया पर रुस ने कामयाब नहीं होने दिया। फलतः कुंठित होकर भारत को भयाक्रांत करने के लिए अमेरिका ने अपना 7वाँ जहाजी बेड़ा और इंग्लैंड ने ईगल भेजा परंतु रुसी कमांडर ब्लादिमीर ने 10 वीं आपरेटिव नेवल ग्रुप के साथ परमाणु पनडुब्बियों से घेर लिया और धमकाया की वापस लौट जाओ नहीं तो डुबा देंगे। अमेरिका और इंग्लैंड अपनी फजीहत कराकर अपना कृष्ण मुख लेकर वापस लौट गये, और इस तरह आधी दुनिया की शक्तियों की पराजय के उपरांत भारत 6वीं विश्व शक्ति के रूप में सामने आया।
लेखक:- डॉ. आनंद सिंह राणा