टाटा समूह का वर्णन तो यहां केवल उदाहरण के रूप में किया जा रहा है। अन्यथा, भारत में ऐसे कई औद्योगिक घराने हैं जिन्होंने अपनी पूरी संपत्ति को ही ट्रस्ट के माध्यम से समाज के उत्थान एवं समाज की भलाई के लिए दान में दे दिया है। प्राचीन भारत में यह कार्य राजा महाराजाओं द्वारा किया जाता रहा हैं। हिंदू सनातन संस्कृति के विभिन्न शास्त्रों में यह वर्णन मिलता है कि ईश्वर ने जिसको सम्पन्न बनाया है, उसे समाज में गरीब वर्ग की भलाई के लिए कार्य करना चाहिए। यह सहायता गरीब वर्ग को सीधे ही उपलब्ध कराई जा सकती है अथवा ट्रस्ट की स्थापना कर भी गरीब वर्ग की मदद की जा सकती है। वर्तमान में तो निगमित सामाजिक दायित्व (सी एस आर - कोरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी) के सम्बंध में कानून की बना दिया गया है। जिन कम्पनियों की सम्पत्ति 500 करोड़ रुपए से अधिक है अथवा जिन कम्पनियों का वार्षिक व्यापार 1000 करोड़ रुपए से अधिक है अथवा जिन कम्पनियों का वार्षिक शुद्ध लाभ 5 करोड़ से अधिक है, उन्हें इस कानून के अंतर्गत अपने वार्षिक शुद्ध लाभ के दो प्रतिशत की राशि का उपयोग समाज की भलाई के लिए चलाई जा रही परियोजनाओं पर खर्च करना आवश्यक होता है। इन विभिन्न मदों पर खर्च की जाने वाली राशि का प्रतिवर्ष अंकेक्षण भी कराना होता है, ताकि यह जानकारी प्राप्त की जा सके राशि का सदुपयोग समाज की भलाई के लिए किया गया है एवं इस राशि का किसी भी प्रकार से दुरुपयोग नहीं हुआ है।
भारत में गरीब वर्ग/परिवारों को गरीबी रेखा से ऊपर लाने में समाज में सम्पन्न वर्ग द्वारा किए जाने वाले दान आदि की राशि से भी बहुत मदद मिलती है। निगमित सामाजिक दायित्व (सी एस आर) योजना के अंतर्गत चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का सीधा लाभ भी समाज के गरीब वर्ग को ही मिलता है। अतः विश्व में शायद भारत ही एक ऐसा देश है जहां सरकार एवं समाज मिलकर गरीब वर्ग की भलाई हेतु कार्य करते हुए दिखाई देते हैं। इसीलिए ही अब यह कहा जा रहा है कि हिंदू सनातन संस्कृति का विस्तार यदि वैश्विक स्तर पर होता है तो, इससे पूरे विश्व का ही कल्याण हो सकता है एवं बहुत सम्भव है कि वैश्विक स्तर पर गरीबी का नाश होकर चहुं ओर खुशहाली फैलती दिखाई दे।
लेखक:- प्रहलाद सबनानी