राष्ट्रीय गणित दिवस विश्व के महान् गणितज्ञ श्रीयुत श्रीनिवास रामानुजन अय्यंगर की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।श्रीनिवास रामानुजन अय्यंगर महान् वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन में एक समानता थी,कि दोनों ने केवल किताबी शिक्षा को अपने ज्ञान का मूल आधार नहीं बनाया था।
विश्व के महान् गणितज्ञ श्रीयुत श्रीनिवास रामानुजन अय्यंगर की उपलब्धियाँ क्रमशः लैंडॉ-रामानुजन् स्थिरांक, रामानुजन्-सोल्डनर स्थिरांक, रामानुजन् थीटा फलन, रॉजर्स-रामानुजन् तत्समक, रामानुजन् अभाज्य, कृत्रिम थीटा फलन, रामानुजन् योग"आदि हैं।
दुनिया में कभी-कभी ऐसी विलक्षण प्रतिभाएं जन्म लेती हैं जिनके बारे में जानकार सभी आश्चर्य चकित रह जाते हैं। महान् गणितज्ञ श्रीनिवास अय्यंगर रामानुजन एक ऐसी ही भारतीय प्रतिभा का नाम है जिन पर न केवल भारत को परन्तु पूरे विश्व को गर्व है। महज 33 वर्ष की उम्र में शायद ही किसी वैज्ञानिक और गणितज्ञ ने इतना कुछ किया हो जितना रामानुजन ने किया। यह आश्चर्य की ही बात है कि किसी भी तरह की औपचारिक शिक्षा न लेने के बावजूद उन्होंने उच्च गणित के क्षेत्र में ऐसी विलक्षण खोजें कीं, जिससे इस क्षेत्र में उनका नाम हमेशा के लिए अमर हो गया। ये न केवल भारत बल्कि समूचे विश्व का दुर्भाग्य था कि गणित का ये साधक मात्र तैंतीस वर्ष की आयु में तपेदिक के कारण परलोक सिधार गया।

रामानुजन बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। आपको ये जानकार हैरानी होगी कि इन्होंने स्वयं गणित सीखा और अपने जीवनकाल में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। उनके द्वारा दिए गए अधिकांश प्रमेय गणितज्ञों द्वारा सही सिद्ध किये जा चुके हैं। उन्होंने अपने प्रतिभा के बल पर बहुत से गणित के क्षेत्र में बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले जिनपर आज भी शोध हो रहा है। हाल ही में रामानुजन के गणित सूत्रों को क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया गया। इनके कार्य से प्रभावित गणित के क्षेत्रों में हो रहे काम के लिये और इस महान गणितज्ञ को सम्मानित करने के लिए रामानुजन जर्नल की स्थापना भी की गई है। श्रीनिवास रामानुजन के अन्वेषण संपूर्ण विश्व के लिए मार्गदर्शी है उनमें से कतिपय अद्भुत और अद्वितीय हैं।
" रामानुजन संख्या के जादूगर थे "
संख्या 1729 को रामानुजन संख्या या हार्डी-रामानुजन संख्या कहा जाता है धनात्मक संख्याए है जिनके दो संख्याओं के घनों के युग्मो के योग के बराबर लिखा जा सकता है। इस प्रकार का गुण रखने वाली बहुत ही कम अन्य संख्याएँ हैं।
रामानुजन् एक प्रकार से संख्याओं के जादूगर थे। संख्याओं के साथ उनका गहरा संबंध था। हम कह सकते हैं कि वे संख्याओं के साथ खेलते थे। श्रीनिवास रामानुजन जब इंग्लैंड में थे तो अक्सर बीमार रहते थे। ऐसे ही एक दिन जब रामानुजन अस्पताल में थे तो हार्डी उनसे मिलने आए। हार्डी उस दिन बहुत उदास लग रहे थे। रामनुजन ने उनसे पूछा, ‘‘आप इतने परेशान क्यों लग रहे हैं, आज तो मैं अपेक्षाकृत पहले से बेहतर हूँ।’’
हार्डी ने उत्तर दिया, तुम तो संख्याओं के जादूगर हो, परन्तु आज मैं जिस टैक्सी में आया हूँ मुझे उसका नम्बर बहुत ही नीरस लगा। ‘‘क्या नंबर था?’’ रामानुजन ने पूछा। हार्डी ने कहा, ‘‘उसका नंबर था 1729। तुरंत रामानुजन ने उत्तर दिया, शायद 1729 से अधिक रोचक संख्या तो कोई हो ही नहीं सकती। ऐसी कुछ ही संख्याएँ हैं जिन्हें दो घनों के योग के रूप में दो अलग-अलग ढंग से लिखा जा सकता है और 1729 उनमें सबसे छोटी संख्या है।’’ तब से यह संख्या रामानुजन संख्या के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
वास्तव में ही यह संख्या एक अत्यंत विशिष्ट संख्या है। इसकी विशिष्टता के कुछ पहलुओं को आगे स्पष्ट किया गया हैः
(१) दो घनों के योग के रूप में दो अलग-अलग ढंगों से व्यक्त की जा सकने वाली सबसे छोटी संख्या
[1]
1729 = 1728 + 1 = 123 + 13
1729 = 1000 + 729 = 103 + 93
तथापि, यदि हम ऋणात्मक पूर्णाकों पर भी विचार करें तो यह शर्त पूरी करने वाली सबसे छोटी संख्या 91 होगीः
91 = 64 + 27 = 43 + 33
91 = 216 – 125 = 216 + (–125) = 63 + (–5)3
संयोगवश 91 संख्या 1729 का एक गुणनखंड भी है।
"पाई का सबसे सरल किन्तु रहस्यमयी अनूठा सूत्र दिया"
π का इतिहास हज़ारों साल पुराना है और पूरे इतिहास में इसके कई अलग-अलग नाम हैं। पाई का मान भारत के महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने निकाला था। π का इस्तेमाल अनंत तरीको से क्षेत्रों, आयतनों, आयतनों/स्थानों और यहाँ तक कि लंबाई की गणना करने के लिए किया जाता है। यह गणित के बाहर के क्षेत्रों जैसे खगोल विज्ञान और ब्रह्मांड विज्ञान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका इस्तेमाल आकाशगंगाओं के बीच की दूरी मापने के लिए किया जाता है। यह भौतिकी में भी दिखाई देता है क्योंकि यह विद्युत चुम्बकीय तरंगों और कई अन्य महत्वपूर्ण अवधारणाओं से संबंधित है।पाई के लिए रामानुजन का अद्भुत एवं अद्वितीय सूत्र है : 9801/gau(1103√8)=π
यह सूत्र π का मान ज्ञात करने के लिए पूर्णतः सत्य है , लेकिन रहस्य यह है कि उन्होंने अपने सूत्र में 9801 और 1103 जैसी संख्याएं कैसे निकालीं। गणितज्ञ आज भी इस सूत्र का उपयोग π का मान ज्ञात करने के लिए अधिकतर करते हैं।
"मॉक थीटा बना ब्लैक होल के फंक्शन के अध्ययन का सूत्र "
सन 1920 में रामानुजन की तबीयत काफी खराब हो चुकी थी। वे भारत वापस आ गए थे। मृत्युशैय्या पर पड़े इस गणितज्ञ ने एक पत्र हार्डी को भेजा। इस पत्र में 17 नए फंक्शन लिखे हुए थे। साथ ही ये संकेत दिया गया था कि ये सभी फंक्शन थीटा (साइन थीटा, कॉस थीटा जैसे) से जुड़े हुए हैं। इसमें से एक फंक्शन मॉक थीटा का था। रामानुजन ने ये कहीं नहीं लिखा था कि ये फंक्शन कहां से आया, कैसे सिद्ध हुआ, इसका कहां और क्या इस्तेमाल है? और इसकी क्या ज़रूरत है? लंबे समय तक ये मॉक थीटा एक पहेली बना रहा। इन पर दुनिया भर के विद्वान अपना सर खपाते रहे. 1987 में गणितज्ञ फ्रीमैन डायसन ने लिखा, ये मॉक थीटा कुछ बहुत बड़े रहस्य की तरफ इशारा करता है मगर इसे समझा जाना बाकी है।

फ्रीमैन जिस बहुत बड़े रहस्य की बात कर रहे थे, उसे जानने के लिए वापस 1916 में जाना पड़ेगा। 1916 में अल्बर्ट आईंस्टीन ने एक छोटा सा सूत्र दिया., E=mc2 का, ये छोटा सा सिद्धांत विज्ञान में भगवान का दर्जा रखता है।इसी सिद्धांत के ऊपर एक खोज हुई जिसे ब्लैकहोल कहा जाता है.। इसे जब 2002 में समझा गया तो पता चला कि रामानुजन का 1920में खोजा गया मॉक थीटा ब्लैकहोल के फंक्शन को समझने के लिए ज़रूरी है।आज भी मॉक थीटा का उपयोग ब्लैक होल की प्रकृति को समझने में होता है।1920 में रामानुजन के पास कोई कंप्यूटर नहीं था।गणना करने के टूल नहीं थे, अंतरिक्ष में जाना और उसकी गणना करना तो कल्पना ही था।इसलिए उनकी यह खोज उन्हें आध्यात्मिक शक्ति से जोड़ती है।
"अनंत तक सभी प्राकृतिक संख्याओं के योग का हल दिया "---------------
गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन ने अनंत तक सभी प्राकृतिक संख्याओं के योग का हल दिया था। उनके अनुसार अनंत तक सभी प्राकृतिक संख्याओं का योग -1/12 होता है।
रामानुजन योग, अपसारी अनंत श्रृंखलाओं को मान निर्दिष्ट करने के लिए अन्वेषित एक तकनीक है।
भौतिकी में, क्वांटम क्षेत्र सिद्धांत में गणनाओं में उत्पन्न होने वाली अपसारी श्रेणियों को परिमित मान प्रदान करने के लिए रामानुजन योग का उपयोग किया जाता है।
रामानुजन के गणितीय योगदानों में अनंत श्रेणियां भी शामिल हैं। उनके दार्शनिक दृष्टिकोण में, अपसारी श्रृंखला का अंतहीन विकास ईश्वर की अनंत प्रकृति का प्रतिबिंब था। रामानुजन के लिए डाइवर्जेंट सीरीज़ रिसर्च, केवल गणितीय प्रयास से कहीं ज़्यादा था, बल्कि यह ब्रह्मांड के रहस्यों के लिए उनकी आध्यात्मिक अन्वेषण का विस्तार भी था। इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि उन्हें अनंत का बोध हो गया था। महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के सम्मान में हर वर्ष 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जाता है।
लेखक - डॉ.आनंद सिंह राणा