"बैगा जनजाति की परंपरा का अमिट हस्ताक्षर : जोधइया बाई" Date : 23-Dec-2024 जोधइया बाई का जन्म मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले के एक छोटे से गाँव लोरहा में हुआ था। वे बैगा जनजाति से संबंधित थीं, जो भारत के जनजाति समुदायों में से एक है। उनका परिवार साधारण था और पूरी तरह से जंगल पर निर्भर रहता था। बैगा जनजाति का जीवन प्रकृति के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है, और यही जुड़ाव जोधइया बाई के व्यक्तित्व और कला में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। उनके परिवार ने उनका पारंपरिक रुप से लालन पालन किया , जिसमें कृषि, जंगल से खाद्य संग्रह और लोक परंपराओं का महत्वपूर्ण स्थान था। बैगा जनजाति मध्य भारत के जंगलों में निवास करती है और उनकी संस्कृति प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व पर आधारित है।प्रकृति की पूजा करने और जंगल को अपने जीवन का अभिन्न अंग मानने के कारण इन्हें "जंगल का पुजारी" भी कहा जाता है। जोधइया बाई का संपूर्ण जीवन संघर्षपूर्ण रहा । 14 वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ, उनके दो पुत्र और एक पुत्री है। वह जंगल से जलावन लकड़ियाँ, जंगली मेवों और खाद का संग्रह कर उसे बेच कर अपने परिवार का लालन पालन करती थी लेकिन पति के निधन के पश्चात् जोधइया बाई के मन में चित्रकारी का विचार आया। 67 वर्ष की आयु में वह कला की ओर अग्रसर हुई। उन्होंने कुछ नया सीखने का प्रयास किया। उन दिनों दिवंगत कलाकार "आशीष स्वामी" चित्रकारी सिखाते थे। जोधइया बाई ने उन्हीं से चित्रकारी सीखी। जोधइया बाई ने पहले भूमि पर , आँगन पर रंगोली बनाना सीखा, फिर सब्जियों पर चित्रकारी की और अंत में लकड़ियों पर अपनी कला को उभारा । जोधइया बाई ने अपनी कला में अपनी परंपराओं को आत्मसात किया और उसे नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया। उनके चित्र धार्मिक अनुष्ठानों, त्योहारों और वैवाहिक समारोहों में बनाए जाते थे। इनकी चित्रकला में ज्यामितीय आकार, प्राकृतिक दृश्य, सांस्कृतिक और पारंपरिक प्रतीकों का समावेश होता था जो उनके जीवन का मूल आधार था। जब उन्हें कागज पर चित्रकारी करने को कहा गया तो जोधइया बाई ने हाथों से बने कागज़ पर और कैनवास पर चित्रकारी करनी प्रारंभ किया। 2008 में, 69 वर्ष की आयु में चित्रकार के रूप में अपनी उत्कृष्ट कला को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहचान दिलाई। उनकी कला को पहली बार तब पहचान मिली, जब स्थानीय स्तर पर उनके बनाए चित्रों को देखा गया और उनकी प्रतिभा को समझा गया। इसके पश्चात् कला संगठनों और प्रदर्शनियों में उनकी भागीदारी शुरू हुई जिसने उन्हें व्यापक पहचान दिलाई। जोधइया बाई के चित्रों की प्रदर्शनी मध्यप्रदेश के साथ साथ देश के कई शहरों में लगी। वर्ष 2019 में इटली में उनके चित्रों की प्रदर्शनी लगी। वर्ष 2022 में उनके कार्य की सराहना करते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी ने जोधइया बाई को "नारी शक्ति" सम्मान और 2023 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी ने "पद्मश्री" पुरस्कार से सम्मानित किया था। यह कहा जा सकता है कि जोधइया बाई ने अपेक्षाकृत देर से कला के क्षेत्र में प्रवेश किया किन्तु उनकी कला में जनजाति समुदाय की पारंपरिक शैली और गहराई ने उन्हें शीघ्र ही प्रसिद्ध कर दिया। प्रसिद्ध बैगा चित्रकार पद्मश्री जोधइया बाई ने 86 वर्ष की आयु में 16 दिसंबर 2024 को अपने मध्य प्रदेश के उमरिया जिले के पैतृक गाँव लोधा में अंतिम सांस लीं । भोपाल के जनजातीय संग्रहालय में उनके नाम से एक स्थायी प्रदर्शनी भी स्थापित है। उनकी कला उनके व्यक्तिगत अनुभवों का प्रतीक थी जो उनके जनजाति सांस्कृतिक धरोहर का प्रतिनिधित्व करती थी। जोधइया बाई की कला में बैगा समुदाय के धार्मिक अनुष्ठानों, संस्कृत त्यौहार और जीवन शैली का जीवंत चित्रण प्रमुखता से देखने को मिलता है । उनके चित्रों के माध्यम से बैगा समाज की पवित्रता, पर्यावरण के प्रति सम्मान और परंपरागत ज्ञान की झलक देखी जा सकती है। कला के क्षेत्र में उनका योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा। लेखिका - डॉ नुपूर निखिल देशकर