पुत्रदा एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यह व्रत संतान सुख प्राप्ति और मोक्ष के लिए रखा जाता है। इसे करने से न केवल बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है, बल्कि संतान की लंबी आयु और समृद्धि का भी आशीर्वाद मिलता है।
पुत्रदा एकादशी की पौराणिक कथा
पौष पुत्रदा एकादशी की पौराणिक कथा अनुसार एक नगरी में सुकेतुमान नाम का राजा रहा करता था, जिसकी पत्नी का नाम शैव्या था। राजा-रानी की कोई संतान नहीं थी जिसे लेकर वे हमेशा दुखी रहते थे। उन्हें इस बात की हमेशा चिंता सताती थी कि उनके बाद उनका राजपाट कौन संभालेगा, उनका अंतिम संस्कार, श्राद्ध, पिंडदान आदि कौन करेगा? बस यही सब सोच-सोच कर राजा बीमार होने लगे थे। एक दिन राजा जंगल भ्रमण के लिए निकले और वहां जाकर प्रकृति की सुंदरता को देखने लगे। वहां उन्होंने देखा कि कैसे हिरण, मोर और अन्य पशु पक्षी भी अपनी पत्नी व बच्चों के साथ जीवन का आनंद ले रहे हैं।
ये सब देखकर राजा का मन और विचलित होने लगा। वह सोचने लगे कि इतने पुण्यकर्मों को करने के बाद भी मैं निःसंतान हूं।
तभी राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा। थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया।
राजा को देखकर मुनियों ने कहा - हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो।
राजा ने पूछा - महाराज आप कौन हैं, और किसलिए यहाँ आए हैं। कृपा करके बताइए।
मुनि कहने लगे कि हे राजन! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं। यह सुनकर राजा कहने लगा कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए।
मुनि बोले - हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा। मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया। कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ।
व्रत विधि
- दशमी के दिन:
- एक समय सात्विक भोजन करें।
- संयम और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- एक समय सात्विक भोजन करें।
- एकादशी के दिन:
- प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
- भगवान विष्णु का ध्यान करें और शंख में जल भरकर उनका अभिषेक करें।
- भगवान को चंदन, फूल, इत्र, पीले वस्त्र, और मौसमी फलों का भोग लगाएं।
- खीर का भोग लगाकर पुत्रदा एकादशी की कथा सुनें।
- श्री हरि विष्णु की आरती करें।
- प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
- निर्जला व्रत:
- यदि संभव हो, तो निर्जला व्रत रखें।
- अन्यथा, संध्या के समय दीपदान के बाद फलाहार कर सकते हैं।
- यदि संभव हो, तो निर्जला व्रत रखें।
- द्वादशी के दिन:
- व्रत का पारण किसी जरुरतमंद व्यक्ति को भोजन कराकर करें।
- व्रत का पारण किसी जरुरतमंद व्यक्ति को भोजन कराकर करें।
पुत्रदा एकादशी का पुण्य फल
इस व्रत से संतान सुख, पापों का नाश, और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत संतानहीन दंपतियों के लिए विशेष फलदायी माना गया है।
तिथि:
- आरंभ: 09 जनवरी, दोपहर 12:22 बजे
- समाप्ति: 10 जनवरी, सुबह 10:19 बजे
- व्रत का पालन 10 जनवरी को किया जाएगा।
इस व्रत को पूरी श्रद्धा और नियम से करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति व समृद्धि आती है।