“आचार्य , सुशासन का लक्षण क्या है ?”_चीनी संत चांग –चुआंग से त्सु निंग ने पूछा |
“वत्स !जिस देश का शासक शक्तिसम्पन्न हो,वही सुशासन सम्भव है | “ _ चांग _चुआंग ने जवाब दिया |
“लेकिन शासन शक्तिसम्पन्न कैसे होगा ?”
“उसके लिए तीन बाते मुख्य है | एक , प्रजा को खाधान्न का आभाव महसूस न हो |
दो , आवश्यक शास्त्रोंस्त्रो की कमी न खटके | तीन , प्रजा शासन और शासक पर अटूट विश्वास रखे | ऐसा शासन हिलाए नही हिलेगा , डुलाये नही डुलेगा |”
“अच्छा , मगर इन तीनो में से किसी एक को छोड़ना ही पड़े , तो किसे छोड़ा जाये ?”
“शास्त्रों का त्याग किया जा सकता है |”
“शेष दो में भी यदि किसी को छोड़ना पड़े तो ?”
“ तब खाधान्न को त्यागा जा सकता है |”
“ खाधान्न को ? वह क्यों ?”
“ इसलिए की मनुष्य की मृत्यु सर्वथा निश्चित है | उससे आदमी पार नही जा सकता | खाधान्न के अभाव में कुछ लोग मर भी जाये , तो उससे कुछ बनने या बिगड़ने का नही है | पर प्रजा का भरोसा टूट जाये , तो शासन स्थिर नही रह सकता | वह डावांडोल होकर विनाश के गर्त में गिर जायेगा |”
“ तो फिर शासन का लक्ष्य क्या हो ?”
“ शासन का लक्ष्य प्रजा के हित को छोड़ और कुछ हो ही नही सकता | प्रजा को सुखी देखना ही शासन का लक्ष्य होना चाहिए | शासक को सदैव स्मरण रखना चाहिए कि शासन जन हित के लिए है , न कि शासन करने के लिए |”