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श्री एकनाथ रानडे: जीवन और समर्पण की मिसाल

Date : 19-Nov-2025
श्री एकनाथ रानाडे का जन्म 19 नवंबर 1914 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले के टिमटाला में हुआ था। वे अपने आठ भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। रानाडे परिवार मूलतः महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र के रत्नागिरी जिले के राजापुर तालुका के विल्हे गाँव का निवासी था। उनके पिता, श्री रामकृष्णराव विनायक रानाडे, ग्रेट इंडियन पेनिनसुलर रेलवे में कार्यरत थे और उनका विवाह रमाबाई से हुआ था।

श्री एकनाथ रानाडे, जिन्हें बचपन में “नाथ” कहा जाता था, को 1921 में उनके बड़े भाई बाबूराव के पास नागपुर भेजा गया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा फड़नवीसपुरा स्थित सरकारी प्राथमिक विद्यालय में हुई। बाद में, जब उनके पिता का स्वास्थ्य खराब हुआ, तो पूरा परिवार नागपुर में आकर बड़े भाई के साथ रहने लगा।

उनके बहनोई, श्री अन्नाजी सोहोनी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े हुए थे। अन्नाजी सोहोनी के मार्गदर्शन में, नाथ ने 1926 में संघ की शाखा में भाग लेना शुरू किया। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।

एकनाथजी ने 1932 में न्यू इंग्लिश हाई स्कूल, महल से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। इस दौरान उनका मन संघ प्रचारक बनने की ओर था, लेकिन डॉ. हेडगेवार ने उन्हें स्नातक की पढ़ाई पूरी करने की सलाह दी। उन्होंने ईसाई मिशनरियों के दुष्प्रचार का मुकाबला करने के लिए उपनिषदों का अध्ययन शुरू किया और इसी क्रम में स्वामी विवेकानंद के जीवन और कार्यों के प्रति उनकी रुचि उत्पन्न हुई।

1938 में, एकनाथजी संघ में पूर्णकालिक प्रचारक बने। उनका पहला कार्यभार महाकौशल प्रांत में था। बाद में, उन्होंने सागर विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री 1945 में प्रथम श्रेणी में पूरी की। उनके संगठनात्मक कौशल और अद्भुत स्मरण शक्ति के कारण उनका कार्यकाल हमेशा यादगार रहा।

1950 में उन्हें पूर्वांचल प्रांत प्रचारक के रूप में नियुक्त किया गया। कलकत्ता में उन्होंने विभाजन के शरणार्थियों के लिए आवास और सहायता प्रदान करने हेतु वास्तु सहायता समिति का गठन किया। 1953 में उन्हें अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख की अतिरिक्त जिम्मेदारी मिली और 1956 में महासचिव का पद सौंपा गया। 1962 में वे अखिल भारतीय बौद्ध प्रमुख बने।

1963 में गुरुजी गोलवलकर ने उनसे विवेकानंद शिला स्मारक की स्थापना का कार्य सौंपा। इसके बाद उन्होंने जीवनभर इसके विकास और प्रचार में अपना योगदान दिया। उन्होंने पूर्वोत्तर में सात आवासीय विद्यालय खोले और कन्याकुमारी में विवेकानंद केंद्र का मुख्यालय स्थापित किया। इसके अलावा, युवा भारती और केंद्र भारती जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशन कार्यों में भी सक्रिय रहे।

श्री एकनाथ रानाडे एक अत्यंत मेहनती और समयनिष्ठ व्यक्ति थे। 1963 से 1982 तक, उन्होंने 25,000 से अधिक पत्र लिखे। निरंतर कार्य और समर्पण के कारण 1980 में उनकी सेहत बिगड़ गई, जिससे उन्हें आंशिक दृष्टि और स्मृति हानि हुई।

अंततः 22 अगस्त 1982 को चेन्नई में उन्हें हृदयाघात हुआ। उनका पार्थिव शरीर कन्याकुमारी लाया गया और 23 अगस्त को सूर्यास्त के समय, ॐ अंकित भगवा ध्वज के साथ विवेकानंद शिला स्मारक पर उनका अंतिम संस्कार किया गया।

श्री एकनाथ रानाडे का जीवन सेवा, अनुशासन और समर्पण की मिसाल रहा। उनका योगदान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और स्वामी विवेकानंद केंद्र के लिए सदैव याद किया जाएगा।
 
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