रानी लक्ष्मीबाई, जिन्हें बचपन में ‘मणिकर्णिका’ और प्यार से ‘मनु’ कहा जाता था, भारत की स्वतंत्रता संग्राम की महान वीरांगना थीं। उनका जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी में हुआ। उनके पिता मोरोपंत ताम्बे पेशवा की सेना में सेनानायक थे और माता का नाम भागीरथी बाई था।
सन् 1850 में मणिकर्णिका का विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव से हुआ। उनके पुत्र रत्न का जन्म 1851 में हुआ, लेकिन चार माह बाद उसका निधन हो गया। राजा के निधन के बाद अंग्रेजों ने दत्तक पुत्र दामोदर राव को स्वीकार नहीं किया और झांसी पर अपना अधिकार कर लिया। इस पर रानी लक्ष्मीबाई ने दृढ़ता से कहा, “मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।” उन्होंने पेंशन अस्वीकार कर अपने राज्य की सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष आरंभ किया।
रानी लक्ष्मीबाई ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने नवाब, मुगल सम्राट और अन्य स्थानीय राजाओं के साथ संपर्क स्थापित कर क्रांति को संगठित किया। 23 मार्च 1858 को झांसी के ऐतिहासिक युद्ध में रानी ने सात दिन तक वीरता से अंग्रेजों का मुकाबला किया। अपनी छोटी-सी सेना और नेतृत्व कौशल के दम पर उन्होंने झांसी की रक्षा की और अपने पुत्र दामोदर राव को सुरक्षित रखा।
अंततः रानी ने कालपी और ग्वालियर में भी युद्ध किया। 18 जून 1858 को ग्वालियर के अंतिम युद्ध में घायल होकर रानी लक्ष्मीबाई ने वीरगति प्राप्त की।
रानी लक्ष्मीबाई न केवल साहस और नेतृत्व की प्रतीक थीं, बल्कि उन्होंने भारतीय महिलाओं के लिए एक प्रेरणास्त्रोत भी प्रस्तुत किया। उनकी वीरता और समर्पण ने स्वतंत्रता संग्राम में अमिट योगदान दिया और उनका नाम इतिहास में सशक्त महिला नायकों में हमेशा याद किया जाएगा।
