कर्तव्यनिष्ठ नागरिकता: विकसित भारत की आधारशिला | The Voice TV

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“अगर मेहनत आदत बन जाए, तो कामयाबी मुकद्दर बन जाती है।”

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कर्तव्यनिष्ठ नागरिकता: विकसित भारत की आधारशिला

Date : 23-Nov-2025

भारत आज विश्व की सबसे तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्थाओं में अग्रणी स्थान पर है। केंद्र सरकार देश के आर्थिक परिदृश्य को और अधिक सशक्त बनाने के लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठा रही है, जिनका सीधा लाभ आम नागरिकों तक पहुँचना शुरू हो चुका है। वित्त वर्ष 2025-26 में केंद्र सरकार ने भारतीय नागरिकों पर करों का बोझ कम करने का सराहनीय और साहसिक निर्णय लिया है। आयकर की सीमा को बढ़ाकर 12 लाख रुपए वार्षिक कर देना इसका प्रमुख उदाहरण है। इसका अर्थ यह है कि वर्ष में 12 लाख रुपए तक आय अर्जित करने वाले नागरिकों को अब आयकर नहीं देना होगा। यह निर्णय न केवल नागरिकों के हाथों में अधिक धन उपलब्ध कराता है बल्कि उनकी क्रय शक्ति को भी सुदृढ़ करता है।

इसके साथ ही वस्तु एवं सेवा कर (GST) की दरों का युक्तिकरण करते हुए पूर्व में लागू चार स्लैबों 5%, 12%, 18% और 28% को घटाकर केवल दो प्रमुख स्लैब 5% और 18% में परिवर्तित किया गया है। इस परिवर्तन के कारण लगभग 90% से अधिक उत्पादों एवं सेवाओं पर कर का बोझ कम हुआ है। जिसका परिणाम बाजार में मांग के रूप में दिखाई दिया है। उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री में उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज की गई है। दीपावली एवं अन्य त्योहारी सीजन में 5.40 लाख करोड़ से अधिक के उत्पादों और लगभग 65,000 करोड़ रुपए की सेवाओं की रिकॉर्ड बिक्री इसका प्रमाण है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने भी आर्थिक गति को बढ़ाने हेतु रेपो दर में कमी की है। वर्ष 2025 में रेपो दर को 6.50% से घटाकर 5.50% कर दिया गया है, जिससे नागरिकों एवं उद्यमों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध हो रहे हैं। संभावना है कि दिसंबर 2025 में भी 25 आधार अंकों की अतिरिक्त कमी देखने को मिलेगी, जो आर्थिक गतिविधियों में और अधिक तेजी लाएगी।

इसी प्रकार, किसानों, बुजुर्गों और महिलाओं के बैंक खातों में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजनाओं के तहत सहायता राशि भेजी जा रही है। केंद्र एवं कई राज्य सरकारें इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। इन योजनाओं के परिणामस्वरूप नागरिकों के हाथों में अधिक धन पहुंच रहा है और वे बाजार में खपत बढ़ा रहे हैं। इसके साथ ही खुदरा मुद्रास्फीति की दर पर नियंत्रण स्थापित कर इसे 2% से भी नीचे ला दिया गया है, जबकि एक दशक पूर्व यह लगभग 10% के आसपास बनी रहती थी। इन सभी सकारात्मक आर्थिक सुधारों का सम्मिलित प्रभाव यह है कि भारत 10% वार्षिक विकास दर प्राप्त करने की दिशा में तेजी से अग्रसर है।

सरकार ने देश के गरीबों के पोषण स्तर को सुधारने हेतु 65 करोड़ नागरिकों को मुफ्त अनाज उपलब्ध कराया है। इससे अत्यंत निर्धन नागरिकों की संख्या में तीव्र गिरावट दर्ज हुई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक तथा अन्य वैश्विक संस्थाएँ भी भारत में तेजी से घटती गरीबी के आँकड़ों की सराहना कर रही हैं। सबसे विशेष बात यह है कि इतने व्यापक कल्याणकारी कार्यक्रमों और कर रियायतों के बावजूद केंद्र सरकार राजकोषीय घाटे को लगातार कम करने में सफल रही है। कोविड काल में यह लगभग 10% तक पहुँच गया था, किंतु अनुमान है कि वर्ष 2026 में यह घटकर 4.4% के स्तर पर आ जाएगा। यह उपलब्धि इस बात का प्रतीक है कि भारतीय नागरिक अब अपने कर दायित्वों का ईमानदारी से पालन कर रहे हैं और कर अनुपालन में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।

निःस्संदेह किसी भी देश की आर्थिक प्रगति केवल सरकार की नीतियों पर निर्भर नहीं होती, अपितु वहाँ के नागरिकों की जागरूकता और कर्तव्य पालन भी उसके विकास में निर्णायक योगदान देते हैं। जब समाज सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलता है, तब विकास की गति कई गुना बढ़ जाती है। आज आवश्यकता इस बात की है कि नागरिक अपने मौलिक कर्तव्यों को समझें और उनका पूर्ण रूप से पालन करें।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के अवसर पर ‘पंच परिवर्तन’ कार्यक्रम के माध्यम से समाज में सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किया जा रहा है। पंच परिवर्तन के पाँच आयाम हैं- नागरिक कर्तव्य, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, समरसता, स्वदेशी एवं स्व के भाव का जागरण। इन बिंदुओं के माध्यम से समाज में अनुशासन, एकता, राष्ट्रप्रेम, स्वावलंबन तथा पर्यावरण चेतना को मजबूत बनाने का प्रयास हो रहा है। नागरिक कर्तव्य इनमें अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि यह सीधा-सीधा देश की प्रगति से जुड़ा हुआ है।

नागरिक कर्तव्यों के अंतर्गत अपेक्षा की जाती है कि नागरिक देश के कानूनों का सम्मान करें और उनका पालन करें। यातायात एवं सार्वजनिक अनुशासन का पालन करें। करों का समय पर और सही राशि में भुगतान करें। राष्ट्रीय संपत्ति की रक्षा और संरक्षण सुनिश्चित करें। सार्वजनिक स्थानों की स्वच्छता बनाए रखें। हिंसा, लूटपाट और राष्ट्रीय संपदा को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों से दूर रहें।

अक्सर देखा गया है कि कुछ समूहों को भड़का कर किए जाने वाले हिंसक आंदोलनों में सरकारी संपत्ति को भारी नुकसान पहुँचता है। सरकारी संपत्ति वास्तव में करदाताओं के धन से निर्मित राष्ट्रीय संपदा होती है, इसलिए उसका संरक्षण प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। इस संदर्भ में समाज में जागरूकता उत्पन्न करना समय की मांग है।

लोकतंत्र उसी समय सफल एवं सुदृढ़ होता है जब नागरिक न केवल अपने अधिकारों के प्रति, बल्कि अपने कर्तव्यों के प्रति भी सजग रहें। जब एक नागरिक देश की उन्नति में योगदान देने की मंशा से कार्य करता है तो वह वास्तविक अर्थों में देशभक्ति निभाता है। देशभक्ति केवल नारे लगाने या अवसर विशेष पर देशप्रेम दिखाने तक सीमित नहीं होनी चाहिए बल्कि दैनिक जीवन में नियमों का पालन करना ही सच्ची देशभक्ति है।

भारतीय संविधान नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का स्पष्ट उल्लेख करता है, जिनमें प्रमुख हैं- संविधान, राष्ट्रीय ध्वज तथा राष्ट्रगान का आदर करना, स्वतंत्रता संग्राम से प्राप्त आदर्शों को अपनाना, देश की एकता, संप्रभुता एवं अखंडता की रक्षा करना, देश की रक्षा करना तथा आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रीय सेवा में तत्पर रहना, सभी नागरिकों के बीच भाईचारे, समरसता को बढ़ावा देना, देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण करना, प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरण और वन्य जीवों की रक्षा करना, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद और सुधारवादी सोच का विकास, सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा और हिंसा का पूर्ण त्याग, स्वदेशी उत्पादों के उपयोग और अपनी संस्कृति के मूल्यों का संरक्षण।

यदि भारत का हर नागरिक उपर्युक्त कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करे तो न केवल आर्थिक विकास दर 10% से आगे जा सकती है, बल्कि भारत पुनः विश्व गुरु के प्रतिष्ठित स्थान पर विराजमान हो सकता है। सरकार अपनी ओर से राष्ट्रहित में नीतियाँ बनाकर कर्तव्य निभा रही है। अब आवश्यकता इस बात की है कि हम भी एक सजग एवं जिम्मेदार नागरिक बनकर अपने कर्तव्यों का निष्पादन करें। आइए, संकल्प लें कि हम अपने व्यवहार, कार्यों और योगदानों के माध्यम से एक सशक्त, विकसित एवं समृद्ध भारत के निर्माण में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें। यही सच्चा राष्ट्रधर्म है और यही नागरिकत्व का उत्कृष्ट उदाहरण। 

-प्रहलाद सबनानी

 
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