भारत सिर्फ भौगोलिक सीमाओं से बंधा राष्ट्र नहीं है, यह तो अनादि काल से मानवता के कल्याण का ध्वजवाहक रहा है। इस धरा की मिट्टी में जीवन के गहन सत्य, आध्यात्मिक ऊँचाई और समरस सामाजिक व्यवस्था के संस्कार संजोए हुए हैं। किंतु आज, जब विश्व पर भौतिकतावादी दृष्टिकोण का प्रभाव बढ़ रहा है, जब भारत को ही उसकी पहचान से दूर करने के प्रयास हो रहे हैं, तब आवश्यकता है कि हम अपनी राष्ट्रीय चेतना को पुनः पहचानें।
वस्तुत: भारत की सभ्यता, संस्कृति और आध्यात्मिक चेतना को समझने का सबसे मूलभूत प्रश्न है, “हम कौन हैं?” और “भारत की पहचान आखिर क्या है?” आज की राजनीति, पहचान और आख्यानों से भरे समय में इस प्रश्न का उत्तर देना जितना आवश्यक है, उतना ही जटिल भी लगता है। इसी जटिल प्रश्न को सरल, तार्किक और प्रामाणिक ढंग से समझाने का अत्यंत सफल प्रयास किया है डॉ. मनमोहन वैद्य ने अपनी पुस्तक ‘हम और यह विश्व’ में। इसे सुरुचि प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया है।
यह पुस्तक आधुनिक चुनौतियों के बीच भारत की वैचारिक और सांस्कृतिक समझ को आधार बनाकर व्यापक विमर्श करती है। यह भारतीय अध्यात्म की गहराई और व्यापकता को दर्शाती है। लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह रहे हैं, वे वर्तमान में संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य होने के साथ-साथ एक वैज्ञानिक विचारधारा वाले चिंतक भी हैं। अतः उनके विचार बौद्धिक तर्क का सशक्त संगम प्रस्तुत करते हैं। यह पुस्तक भारतीय अस्मिता को समझने, आत्मविश्वास जगाने और इस देश की विचारधारा को सही रूप में प्रस्तुत करने वाला एक अत्यंत प्रभावी संकलन है।
कहना होगा कि यह एक विचारग्रंथ होने के साथ ही उस विमर्श का आधार भी है जो भारत की पहचान को भारत की दृष्टि से समझते हुए उसके भविष्य का पथ निर्देशित करती है। पुस्तक में कुल 42 निबंध चार खंडों में विभाजित हैं, “संघ और समाज”, “भारत की आत्मा”, “असहिष्णुता का सच” और “प्रेरणा शाश्वत है”। इन प्रमुख खण्डों में विभाजित सभी निबंध समकालीन भारत की वैचारिक लड़ाई के प्रमुख प्रश्नों और उनके समाधान को पाठकों के समक्ष स्पष्ट रूप से रखते हैं। साथ ही प्रत्येक खंड भारतीय समाज और संस्कृति से जुड़े उन प्रश्नों के उत्तर उजागर करता है जिन पर आज गंभीर विमर्श और चिंतन की आवश्यकता है।
पहला खंड ‘संघ और समाज’ आरएसएस को लेकर फैलाई गई भ्रांतियों और मिथ्या प्रचार का तथ्यात्मक उत्तर देता है। स्वतंत्रता संग्राम में संघ की भूमिका, सामाजिक सद्भाव के लिए किए गए प्रयास और जाति-भेद समाप्त करने की दिशा में उठाए गए ठोस कार्यों का इस खंड में सम्यक वर्णन है। लेखक स्पष्ट करते हैं कि हिंदुत्व किसी संकीर्ण धर्म-संकल्पना का नाम नहीं है, यह तो भारतीय जीवनदृष्टि का समावेशी स्वरूप है, जहां भेद से अधिक एकता और विविधता में सामंजस्य का भाव है। इतिहास को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने वालों को यह खंड कड़ा और तर्कपूर्ण उत्तर देता है।
दूसरा खंड ‘भारत की आत्मा’ इस पुस्तक का दार्शनिक और वैचारिक शिखर है। लेखक बताते हैं कि भारत आर्थिक विकास को लक्ष्य नहीं मानता, वह तो जीवन को प्रकृति और समाज के संतुलन के साथ देखने की दृष्टि देता है। पश्चिमी मॉडल जहाँ व्यक्तिवाद और भौतिक उन्नति को ही सर्वोच्च मानता है, वहीं भारतीय संस्कृति में धर्म, नीति, कर्तव्य और समरसता पर आधारित एक समग्र जीवन-दृष्टि समाहित है। इसी कारण भारत ने विश्व को योग, आयुर्वेद, करुणा, शांति और अध्यात्म का मार्ग दिखाया। इस खंड में हिन्दुत्व की व्यापक अंतरदृष्टि, राम जन्मभूमि, सोमनाथ मंदिर, अनुच्छेद 370, जनजाति समाज की पहचान और भारतीय राष्ट्रीय चेतना की अवधारणा पर प्रस्तुत विश्लेषण अत्यंत प्रभावशाली एवं विचारोत्तेजक है।
उन्होंने मीडिया: भारतीय दृष्टि में संपूर्ण मीडिया जगत को एक दिशा-सूत्र दिया है कि हम भारत को किस नजरिए से देखें; उसे भारतीय दृष्टि से या पश्चिमी नजरिए, आखिर इसके मायने क्या हैं! डॉ. वैद्य यह स्पष्ट करते हैं कि भारत अपने मौलिक विचारों से चलता आया है, किसी बाहरी सत्ता या विचार के निर्देश पर उसे नहीं चलाया जा सकता, जैसे प्रत्येक व्यक्ति का ‘स्व’ है वैसे ही भारत का अपना एक विराट ‘स्व’ है जोकि भारत की संस्कृति, सभ्यता और परंपराओं से प्रकट होता है, इसी कारण से ही भारत सदियों से भारत बना हुआ है।
तीसरा खंड ‘असहिष्णुता का सच’ उन दुष्प्रचारों का भंडाफोड़ करता है जिनके माध्यम से भारत को विश्व के सामने असहिष्णु देश के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की जाती रही है। लेखक बताते हैं कि भारत जैसा सहिष्णु, विचारों की स्वतंत्रता देने वाला और विविधता का उत्सव मनाने वाला दूसरा कोई देश नहीं। यहां सदियों से विभिन्न मत, विचार और आस्था के लोग बिना संघर्ष के साथ-साथ जीते आए हैं। इस खंड में यह तथ्य भी मजबूती से रखा गया है कि तथाकथित उदारवादी वर्ग वास्तव में वैचारिक तानाशाही का परिचायक बन चुका है, जहां राष्ट्रचेतना को कट्टरता और भारतीयता को पिछड़ापन कहकर बदनाम किया जाता है। लिबरल्स की नयी अस्पृश्यता, वामपंथियों के संघ विरोध का कल्पना विलाप, संघ और मुस्लिम ब्रदरहुड: कल्पना ही अकल्पनीय है जैसे लेख इस दिशा में देखे जा सकते हैं। इसके साथ ही “हिंदू पाकिस्तान असंभव” जैसे लेख भारतीय राष्ट्रवाद की सकारात्मक संरचना को दर्शाते हैं, जहाँ आध्यात्मिकता, कर्तव्य और समानता का भाव सर्वोपरि है।
चौथा खंड ‘प्रेरणा शाश्वत है’ उन महापुरुषों के जीवन और व्यक्तित्व का परिचय कराता है जिनके त्याग और राष्ट्रभाव ने भारत की चेतना को बचाए रखा। डॉ. हेडगेवार, दत्तोपंत ठेंगड़ी, श्रीरंगा हरि जैसे व्यक्तित्व न सिर्फ संघ के संगठनात्मक आदर्श हैं बल्कि भारतीय राष्ट्रीय चेतना के ये सभी ध्वजवाहक एवं आध्यात्मिक स्तंभ भी हैं। इन प्रेरक व्यक्तित्वों की जीवनगाथाएँ संदेश देती हैं कि संगठित समाज ही किसी भी राष्ट्र को शिखर तक पहुँचाता है। भारत का इतिहास बताता है कि यहाँ सत्ता या सैन्य शक्ति नहीं सदैव से समाज की आध्यात्मिक ऊर्जा ही परिवर्तन का आधार बनी है। यह खंड पाठक के मन में देश, समाज और संस्कृति के प्रति समर्पण की भावना को और अधिक सुदृढ़ बनाता है।
कुल मिलाकर पुस्तक अध्ययन के बाद आपको यही कहना होगा कि डॉ. मनमोहन वैद्य का लेखन तथ्यपरक, निष्पक्ष परंतु भावनात्मक रूप से अत्यंत शक्तिशाली भावों की गहराइयों में लेकर जाता है, जहां आप बार-बार ठहरते हैं, अपने से ही संवाद करते हैं, भारत को नए स्वरूप में जानते हैं और भारत भूमि पर अपना जन्म पाकर स्वयं को धन्य पाते हैं। भाषा सहज है, शैली ओजपूर्ण और तर्क अडिगता से पुस्तक में रखे गए हैं। वे न किसी के प्रति द्वेष उत्पन्न करते हैं, न प्रतिशोध को बढ़ावा देते हैं; वे केवल सत्य और राष्ट्रहित पर आधारित विचारों को दृढ़ता से रखते हैं। यही इस पुस्तक की सबसे बड़ी ताकत है। उक्त पुस्तक भारत के होने और यहां स्वयं के अस्तित्व को लेकर आत्मविश्वास का संदेश देती है। इस पुस्तक का केंद्रीय संदेश यही है कि भारत को भारत की दृष्टि से देखो, तभी भारत को समझ पाओगे।
यह पुस्तक उन सभी को अवश्य पढ़ना चाहिए जो भारत की मौलिक पहचान को समझना चाहते हैं। इतिहास और संस्कृति पर हो रहे दुष्प्रचार का उत्तर चाहते हैं। राष्ट्र के प्रति गौरव और कर्तव्यबोध को पुनर्जीवित करना चाहते हैं। विश्व में भारत की भूमिका को जानने के इच्छुक हैं और भविष्य में उसे एक नेतृत्व की भूमिका में देखना चाहते हैं। अत: ‘हम और यह विश्व’ एक विचार-यात्रा है जो पाठक को अपने राष्ट्र से गहरे जुड़ाव का अनुभव कराती है। यह पुस्तक भारतीयता का शंखनाद करती है और आधुनिक भारत के पुनर्जागरण का मार्ग भी दिखाती है। यह जागरण का आह्वान है; भारत को जानो, भारत को स्वयं में अनुभूत करो और भारत को विश्वगुरु बनाओ, यही इस पुस्तक का कुल सार तत्व है!
-डॉ. मयंक चतुर्वेदी
