आमतौर पर जब हम किसी देश की सैन्य शक्ति की बात करते हैं, तो जहन में हथियारों की संख्या, सेना का आकार और रक्षा बजट जैसे शब्द आते हैं। परंतु वास्तविकता इससे कहीं गहरी है। किसी भी वायुसेना की विश्वसनीयता केवल इस पर नहीं टिकी कि उसके पास कितने फाइटर जेट हैं, बल्कि इस पर भी निर्भर करती है कि वे कितने सुरक्षित, टिकाऊ और भरोसेमंद हैं।
फाइटर जेट का क्रैश रिकॉर्ड उस देश की तकनीकी क्षमता, रखरखाव व्यवस्था, पायलट प्रशिक्षण और शोध-विकास के स्तर का महत्वपूर्ण संकेतक होता है। इसी परिप्रेक्ष्य से यदि हम अमेरिका के एफ-35, एफ-16, चीन के जे-10 और भारत के तेजस को देखें तो हमें न केवल तकनीकी तुलना मिलती है बल्कि यह भी स्पष्ट होता है कि भारत अपनी स्वदेशी क्षमता के साथ किस दिशा में आगे बढ़ रहा है।
अमेरिकी फाइटर जेट : एफ-35 और एफ-16अमेरिका की वायुसेना विश्व की सबसे बड़ी और तकनीकी रूप से उन्नत मानी जाती है। उसके दो प्रमुख फाइटर जेट हैं, जिसमें एफ-35 आधुनिक स्टेल्थ, मल्टीरोल फाइटर है। इसकी दर्जनों दुर्घटनाएँ बीते सालों में दर्ज हुई हैं। इनमें से कई मामलों में तकनीकी खामी, जैसे इंजन या हाइड्रोलिक सिस्टम में समस्या तो कई में पायलट की गलती सामने आई। यहाँ एक बात समझना जरूरी है। एफ-35 बड़े पैमाने पर बनाया और विविध परिस्थितियों में उड़ाया जा रहा है, इसलिए उसके क्रैश आँकड़े केवल “खराब विमान” नहीं बल्कि “उच्च उपयोग और जटिल तकनीक” का मिश्रित परिणाम हैं।
इसी तरह से एफ-16 1970 के दशक से सेवा में है। यह दर्जनों देशों में उपयोग होता है और हजारों यूनिट निर्मित हो चुकी हैं। स्वाभाविक है कि इतनी लंबी सेवा अवधि और भारी ऑपरेशनल उपयोग के कारण इसके सैकड़ों क्रैश रिकॉर्ड मिलते हैं। यह तथ्य अपने-आप में इसे असुरक्षित सिद्ध नहीं करता; बल्कि यह दिखाता है कि किसी भी प्लेटफॉर्म की दुर्घटनाओं को उसके पूरे ऑपरेशनल संदर्भ में देखना चाहिए।
चीन का जे-10 : कम क्रैश, पर कम पारदर्शिताचीन का जे-10 चौथी पीढ़ी का मल्टीरोल फाइटर जेट है। चीन इसे अपने दम पर विकसित विमान के रूप में प्रचारित करता है। जे-10 के कुछ क्रैश मामलों की जानकारी सामने आई है, जिनमें पायलटों की मृत्यु भी हुई। लेकिन एक बड़ा प्रश्न यहाँ पारदर्शिता का है। चीन में सैन्य मामलों पर सूचना नियंत्रण बहुत कड़ा है। सभी दुर्घटनाएँ सार्वजनिक नहीं की जातीं और न ही विस्तृत जांच रिपोर्ट सामने आती हैं। ऐसे में केवल “कम क्रैश की संख्या” देखकर यह निष्कर्ष निकालना कि जे-10, एफ-16 हमारे तेजस से अधिक सुरक्षित है, यह सही नहीं होगा।
भारत का तेजस : कम क्रैश, गहरा संदेशअब आते हैं भारत के स्वदेशी फाइटर जेट तेजस पर जो हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और डीआरडीओ जैसे भारतीय संस्थानों द्वारा विकसित चौथी पीढ़ी का हल्का लड़ाकू विमान है। तेजस की पहली उड़ान 1999 में हुई। उसके बाद से हजारों उड़ानें, कठोर परीक्षण, विभिन्न मौसमों में ऑपरेशन और वायुसेना में स्क्वाड्रन स्तर पर तैनाती हुई । इस पूरे सफर में तेजस के केवल दो क्रैश दर्ज हुए हैं। पहला 2024 में ट्रेनिंग के दौरान और दूसरा 2025 में विदेश में डेमो फ्लाइट के दौरान।
लगभग ढाई दशक की विकास यात्रा, हजारों फ़्लाइट-घंटों और इतने सीमित क्रैश। यह अपने-आप में तेजस की विश्वसनीयता, डिज़ाइन गुणवत्ता और भारतीय वैज्ञानिकों की दक्षता का मजबूत प्रमाण है। इसका मतलब यह नहीं कि तेजस में कोई कमी नहीं; हर आधुनिक सिस्टम में सुधार की गुंजाइश रहती है। लेकिन समग्र तस्वीर यह बताती है कि भारत एक सक्षम एयरोस्पेस राष्ट्र के रूप में खड़ा हो रहा है।
क्रैश आँकड़ों को गहराई से समझें
दरअसल, किसी भी विमान को समझने के लिए बेहतर तरीका है कि “क्रैश-रेट प्रति 1,00,000 फ्लाइट-ऑवर” देखा जाए। जो विमान लाखों फ्लाइट-घंटे पूरे कर चुका हो, उसका कुल दुर्घटना आंकड़ा स्वाभाविक रूप से अधिक होगा। एफ-16 कई दशक से सैकड़ों स्क्वाड्रन में उड़ रहा है। एफ-35 नई पीढ़ी का है, पर उच्च संख्या और जटिल मिशन वाले बेड़े का हिस्सा है। जे-10 अपेक्षाकृत सीमित संख्या और कम पारदर्शी आंकड़ों के साथ दिखता है। तेजस अभी सीमित स्क्वाड्रन में, मुख्यतः भारतीय वायुक्षेत्र में और अत्यधिक निगरानी के साथ उड़ रहा है। इस संदर्भ में तेजस की दो दुर्घटनाएँ उसके अनुशासित उपयोग और मजबूत डिजाइन की ओर संकेत करती हैं, न कि केवल “कम उड़ान” का परिणाम हैं। यह संतुलित और तथ्य आधारित गर्व का विषय है।
भारतीय प्रतिभा से ईर्ष्या रखने वालों के प्रति हमारा दृष्टिकोणतेजस लड़ाकू विमान की सफलता न केवल भारत की तकनीकी क्षमता का प्रमाण है, बल्कि यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में उठाया गया एक ऐतिहासिक कदम भी है। इस उपलब्धि ने जहाँ करोड़ों भारतीयों में गर्व और विश्वास जगाया है, वहीं कुछ वर्गों को इससे असहजता भी हुई है। यह असहजता कई कारणों से उत्पन्न होती है। कुछ लोग विदेशी विमानों के पिछलग्गु हैं, कुछ वैचारिक रूप से भारत की उपलब्धियों को कमतर दिखाने की आदत में बँधे हैं और कुछ पर वैश्विक रक्षा बाजार की प्रतिस्पर्धी लॉबी का प्रभाव होता है। ऐसी आलोचनाओं को देख कर हमें दो प्रकार के दृष्टिकोण अपनाने चाहिए।
1. सावधानी
तेजस को लेकर सोशल मीडिया पर कई बार फर्जी आँकड़े, पुराने चित्र, गलत तुलना या संदर्भहीन आंकड़े साझा किए जाते हैं। यह दुष्प्रचार जानबूझकर भ्रम पैदा करने के लिए किया जाता है। इसलिए हर दावे को तथ्यों, तकनीकी मानकों और विश्वसनीय स्रोतों के आधार पर परखना आवश्यक है। राष्ट्रीय उपलब्धियों के मामले में भावनाओं से अधिक विवेक का उपयोग करना बुद्धिमानी है।
2. सहानुभूति
कुछ लोग मानसिक रूप से इस सोच में फँसे होते हैं कि “भारत कुछ अच्छा कर ही नहीं सकता।” यह मनोवृति वर्षों की बौद्धिक गुलामी, उपनिवेशवादी प्रभाव और वैश्विक शक्तियों द्वारा बनाए गए नरेटिव का परिणाम है। ऐसे लोगों को शत्रु मानकर नहीं, बल्कि भ्रमित भारतीय समझकर संवाद करना अधिक उपयोगी होता है। तर्क, तथ्य और धैर्य - इन तीनों से उनकी गलतफहमियाँ दूर की जा सकती हैं।
रक्षा बाजार और वैश्विक प्रतियोगिता की हकीकतदुनिया का रक्षा क्षेत्र केवल तकनीक का नहीं, बड़े बिज़नेस और राजनीति का भी खेल है। हथियार बनाने वाली कंपनियों के लिए यह अरबों-खरबों डॉलर का बाज़ार है। हर देश चाहता है कि उसकी कंपनी के विमान, मिसाइल, रडार दुनिया भर में बिकें। कई बार मीडिया में रिपोर्ट, वीडियो, विश्लेषण के नाम पर इस बाज़ार की अदृश्य लॉबी अपनी बात चलाती है। ऐसे माहौल में यदि भारत का तेजस एक किफायती, भरोसेमंद और स्वदेशी विकल्प के रूप में उभरता है तो यह कुछ शक्तियों की आर्थिक और राजनीतिक योजना के खिलाफ भी जाता है। इसलिए तेजस के बारे में दुष्प्रचार, उसके क्रैश को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना या उसे हीन साबित करने की कोशिशें, यह सब केवल तकनीकी चर्चा नहीं, बल्कि बाज़ार और भू-राजनीति का हिस्सा भी हैं।
आज भारत को इस खेल को समझ कर अपने डेटा को साफ-सुथरे तरीके से दुनिया के सामने रखना होगा, अपने विमानों, मिसाइलों और रक्षा उत्पादों के ट्रैक रिकॉर्ड को व्यवस्थित रूप से प्रचारित करना होगा, तभी वह एक विश्वसनीय रक्षा निर्यातक और रणनीतिक साझेदार बन सकेगा।
विकसित, अखण्ड और वैभवशाली भारत की तैयारीतेजस की चर्चा केवल एक विमान की नहीं, एक बड़े राष्ट्रीय दर्शन की है। भारत आज जिस रास्ते पर चल रहा है, उसमें- चंद्रयान जैसी चंद्र अभियानों की सफलता, गगनयान की मानव अंतरिक्ष उड़ान की तैयारी, सैकड़ों उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण, PSLV, GSLV, SSLV जैसे भरोसेमंद रॉकेट, मिसाइल तकनीक (अग्नि, पृथ्वी, ब्रह्मोस आदि), और अब तेजस जैसे स्वदेशी विमानों की श्रृंखला- ये सब मिलकर भारत को एक आत्मविश्वासी, तकनीकी रूप से सक्षम और वैश्विक स्तर पर सम्मानित राष्ट्र बना रहे हैं। यदि भारत को विकसित भारत, अखण्ड भारत (मानसिक-सांस्कृतिक रूप में), वैभवशाली भारत और वैश्विक महाशक्ति एवं मार्गदर्शक (विज्ञान-आधारित गुरुत्वकेंद्र) बनना है, तो रक्षा, अंतरिक्ष, डिजिटल तकनीक और शिक्षा - इन चारों स्तंभों पर एक साथ काम करना होगा।
निष्कर्ष यह है कि अमेरिका और चीन का पैमाना अनुभव और जोखिम स्तर अलग है; पर यह भी उतना ही बड़ा सच है कि भारत ने तेजस के माध्यम से एक बहुत ऊँचा मानक स्थापित किया है। दो-तीन दुर्घटनाएँ किसी भी जटिल फाइटर जेट के जीवन चक्र का हिस्सा होती हैं, पर तेजस का समग्र रिकॉर्ड, उसकी तकनीकी परिपक्वता और स्वदेशी आधार इसे गर्व करने लायक बनाते हैं। भारत को अब भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से ऊपर उठकर, तथ्यों, आँकड़ों और संतुलित विश्लेषण के आधार पर अपनी सफलता को समझना और दुनिया को समझाना होगा। तेजस आज केवल आकाश का रक्षक नहीं है; वह यह घोषणा भी है कि भारत की वैज्ञानिक मेधा और राष्ट्रीय संकल्प मिलकर विश्व मंच पर नई ऊँचाइयाँ छूने के लिए तैयार हैं।
-कैलाश चंद्र
