24 नवंबर 2025 को गुरु तेग बहादुर जी का 350वां शहीदी दिवस मनाया जा रहा है। उन्हें ‘हिंद की चादर’ के नाम से भी जाना जाता है। सिख धर्म के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी ने 1665 से 1675 तक सिख समुदाय का मार्गदर्शन किया। वह गुरु हरगोबिंद जी के सबसे छोटे पुत्र थे। शांत स्वभाव, गहरी आध्यात्मिक समझ, निडरता और काव्य प्रतिभा के कारण उनका व्यक्तित्व अत्यंत सम्मानित माना जाता है।
1675 में दिल्ली में गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म और मानवता की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। जब मुगल शासक औरंगज़ेब के तहत कश्मीरी पंडितों पर धार्मिक उत्पीड़न हुआ, तब गुरु जी ने उन्हें बचाने के लिए स्वयं को बलिदान किया। उनका यह बलिदान धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा का अद्वितीय उदाहरण है।
गुरु तेग बहादुर जी का जीवन हमें सिखाता है कि सत्य और न्याय के लिए खड़े होना कितना आवश्यक है, भले ही परिस्थिति कठिन क्यों न हो। उनका बलिदान साहस, त्याग और मानव सेवा की उच्चतम परंपरा का प्रतीक है।
इस दिन गुरुद्वारों में विशेष कीर्तन, अरदास और धार्मिक सभाओं का आयोजन होता है। लोग गुरु जी की शिक्षाओं को याद करते हैं और उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं। उनकी विरासत स्वतंत्रता, समानता और कमजोरों की रक्षा का संदेश देती है।
गुरु तेग बहादुर जी के उपदेश प्रेरक हैं। उन्होंने बताया कि साहस का अर्थ डर का न होना नहीं, बल्कि यह समझ है कि सत्य और कर्तव्य डर से बड़ा है। अहंकार पर नियंत्रण ही सच्ची मुक्ति की कुंजी है। हर जीव के प्रति दया और प्रेम का भाव रखना चाहिए। सुख-दुख और मान-अपमान में संतुलित रहना श्रेष्ठ जीवन का मार्ग है। सच्चा धर्म मानवता की सेवा करना और सभी के साथ समान व्यवहार करना सिखाता है। ईश्वर हमारे भीतर निवास करता है, जैसे फूल में सुगंध या दर्पण में प्रतिबिंब। भय मन की उपज है; जो अपने विचारों और मन को नियंत्रित कर लेता है, वही जीवन की जीत और हार पर नियंत्रण रख सकता है।
