डॉ. मनसुख मांडविया
कई दशकों तक भारत कमजोर आर्थिक विकास, गहरे भ्रष्टाचार और रोजगार सृजन व श्रमिक कल्याण के प्रति प्रतिबद्धता के अभाव से जूझता रहा। राजनीतिक उद्देश्यों से होने वाले घेराव और बंदी ने बार-बार औद्योगिक गतिविधियों को बाधित किया, निवेश को रोका और व्यवस्था में विश्वास को कम किया। यह दुख की बात है कि पिछली सरकारों ने श्रमिक कल्याण को केवल नारों तक सीमित कर दिया और श्रमिकों के वास्तविक मुद्दों को गंभीरता से लेने में विफल रहीं। इस जड़ता को तोड़ने के लिए देश के नेतृत्व में एक बड़ा बदलाव जरूरी था। लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘श्रमेव जयते’ का आह्वान किया और कहा कि भारत की विकास यात्रा के केंद्र में श्रम की गरिमा यानी मजदूरों का सम्मान होना चाहिए। यह केवल एक नारा नहीं था, बल्कि एक नई राष्ट्रीय सोच की शुरुआत थी, जिसमें नीतियां बनाते समय श्रमिकों को केंद्र में रखा गया।
ऐसे बदलाव की जरूरत बहुत समय से महसूस की जा रही थी। भारत के ज्यादातर श्रम कानून 1920 से 1950 के बीच बने थे और उनमें औपनिवेशिक सोच की झलक रहती थी। दूसरी ओर, दुनिया में काम करने का तरीका पूरी तरह बदल चुका था। गिग और प्लेटफार्म में अर्थव्यवस्था का बढ़ना, डिजिटल कामकाज, लचीली कार्य संरचनाएं और नए प्रकार के उद्यम तेजी से उभर रहे थे। लेकिन भारत के पुराने श्रम कानून समय के साथ नहीं बदले, और आधुनिक कार्यबल या प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहे थे। एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पंच प्रण के माध्यम से यह संदेश दिया कि हमें औपनिवेशिक मानसिकता छोड़कर भविष्य की जरूरतों के अनुसार आगे बढ़ना चाहिए। पुराने कानून इसलिए नहीं बने रहे क्योंकि वे अच्छे थे, बल्कि इसलिए क्योंकि पिछली सरकारों में उन्हें बदलने का राजनीतिक साहस, इच्छा शक्ति और दूरदृष्टि की कमी थी। बदलती परिस्थितियों और देश की जरूरतों के अनुसार उन्हें आधुनिक बनाने की हिम्मत किसी ने नहीं दिखाई।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत का वैश्विक कद अभूतपूर्व ऊंचाइयों पर पहुंच गया है। दुनिया मानती है कि भारत अब भविष्य को आकार देने में केवल भाग नहीं ले रहा है, बल्कि उसे परिभाषित करने में भी मदद कर रहा है। लेकिन इस ऐतिहासिक क्षण का सही अर्थों में लाभ उठाने और संभावनाओं को दीर्घकालिक समृद्धि में बदलने के लिए, भारत औपनिवेशिक काल के उस श्रम ढांचे से बंधा नहीं रह सकता जो सशक्तिकरण के बजाय नियंत्रण के लिए बनाया गया था।
इसलिए, बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन, औपचारिकता का विस्तार और सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक बदलाव आवश्यक था। इस राष्ट्रीय आवश्यकता को समझते हुए मोदी सरकार ने स्वतंत्र भारत के सबसे महत्वपूर्ण सुधारों में से एक को लागू किया। पहले के 29 बिखरे हुए श्रम कानूनों को मिलाकर चार सरल और स्पष्ट श्रम संहिताएं बनाई गईं- वेतन संहिता, औद्योगिक संबंध संहिता, सामाजिक सुरक्षा संहिता और व व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा संहिता।
21 नवंबर 2025 को ये श्रम संहिताएं लागू हो गईं। ये संहिताएं मिलकर एक आधुनिक श्रम ढांचा स्थापित करती हैं जो श्रमिक-समर्थक और विकास-समर्थक दोनों है, और यह दिखाता है कि भारत अब तेजी से बदलती वैश्विक अर्थव्यवस्था की मांगों को पूरा करने के लिए तैयार है। संसद द्वारा 2019 और 2020 में श्रम संहिताओं को पारित किया गया था। कई राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों, श्रमिक संघों और उद्योग निकायों ने उनके प्रगतिशील इरादे का स्वागत किया है। उनकी खूबियों को पहचानते हुए सभी राजनीतिक दलों के राज्यों ने संहिताओं के अनुसार से अपने श्रम कानूनों में बदलाव किए। उदाहरण के लिए, जिन राज्यों ने महिलाओं को उनकी सहमति और पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ रात में काम करने की अनुमति दी है, वहां कुल महिला रोजगार में 13 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
सभी क्षेत्रों के स्टेकहोल्डर्स ने एक पुरानी हो चुकी श्रम प्रणाली से आगे बढ़ने की आवश्यकता को पहचाना है। उनके योगदान ने एक संतुलित ढांचा तैयार करने में मदद की है जो श्रमिकों की सुरक्षा करता है और साथ ही अर्थव्यवस्था को विकसित होने में भी सक्षम बनाता है। श्रमिकों और इंडस्ट्री लीडर्स के साथ मेरी बातचीत में जो बात हमेशा सामने आई है वह कार्यस्थल पर स्पष्टता, निष्पक्षता और सम्मान की आवश्यकता पर बल देती है। इसी मार्गदर्शक सिद्धांत ने हमारे सुधारों को आकार दिया है, जिसने एक जटिल और बिखरे हुए सिस्टम को एक ऐसे सिस्टम से बदल दिया है जो सरल, पारदर्शी और हर श्रमिक की सुरक्षा करने वाला है।
श्रम संहिताएं अपने मूलभाव और अक्षरशः रूप में नियोक्ताओं की अपेक्षाओं को संतुलित करते हुए श्रमिकों के हितों को प्राथमिकता देती हैं। वे निवारक स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा देती हैं और सामाजिक सुरक्षा का विस्तार करती हैं। ये संहिताएं ऑडियो-विजुअल श्रमिकों और गिग तथा प्लेटफॉर्म श्रमिकों को औपचारिक मान्यता प्रदान करती हैं। ये अखिल भारतीय ईएसआईसी कवरेज को सक्षम बनाती हैं, 40 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी श्रमिकों के लिए वार्षिक स्वास्थ्य जांच अनिवार्य करती हैं, जिनमें पहले बाहर रखे गए बागान श्रमिक भी शामिल हैं। साथ ही ये राज्यों में असमानताओं को कम करने के लिए सभी श्रमिकों के लिए वैधानिक न्यूनतम वेतन की गारंटी देती हैं। अनिवार्य नियुक्ति पत्र, पक्की पे स्लिप और सवेतन वार्षिक अवकाश जैसे प्रावधान हर श्रमिक को अधिक स्थिरता, सम्मान और सुरक्षा प्रदान करते हैं।
कॉन्ट्रैक्ट आधारित रोजगार के एक प्रगतिशील विकल्प के रूप में, संहिताओं में फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट (एफटीई) यानी निश्चित अवधि के रोजगार की शुरुआत की गई है। एफटीई के तहत, एक निश्चित अवधि के लिए नियोजित श्रमिकों को स्थायी कर्मचारियों के समान ही वेतन, लाभ और काम करने की स्थितियां प्राप्त होती हैं, जिनमें सवेतन अवकाश, काम के तय घंटे, चिकित्सा सुविधाएं, सामाजिक सुरक्षा और अन्य वैधानिक सुरक्षाएं शामिल हैं। विशेष रूप से, एफटीई कर्मचारी केवल एक वर्ष की निरंतर सेवा के बाद ही ग्रेच्युटी के लिए पात्र हो जाते हैं। संहिताएं आधुनिक कार्यस्थलों की वास्तविकताओं को भी स्वीकार करती हैं। यदि कोई कर्मचारी स्वेच्छा से मानक घंटों से अधिक काम करना चुनता है, तो उसे ओवरटाइम के लिए नॉर्मल सैलरी रेट से दोगुना पैसा मिलना चाहिए, जिससे हर परिस्थिति में निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके।
नारी शक्ति इन सुधारों का एक केंद्रीय स्तंभ है। प्रधानमंत्री मोदी के महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास के दृष्टिकोण से निर्देशित, ये संहिताएं महिलाओं के लिए विभिन्न क्षेत्रों में शामिल होने के नए रास्ते खोलती हैं—जिनमें अंडरग्राउंड खदानों, भारी मशीनरी और नाइट शिफ्ट में काम करना शामिल हैं—बशर्ते इस पर उनकी सहमति हो और मजबूत सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू हों। इसके साथ ही, संहिताएं सिंगल रजिस्ट्रेशन, सिंगल लाइसेंस और सिंगल रिटर्न फाइलिंग की शुरुआत करके नियोक्ताओं पर कम्प्लायंस के बोझ को काफी कम करती हैं। यह सरलीकरण उद्योगों को पूरे भारत में अपनी यूनिट्स का विस्तार करने और स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करेगा, जिससे स्थानीय रोजगार को बढ़ावा मिलेगा।
भारत की सामाजिक सुरक्षा 2015 में 19 प्रतिशत से बढ़कर 2025 में 64.3 प्रतिशत होने की विश्व में प्रशंसा हुई है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने भारत की प्रयासों को माना है, जबकि अंतरराष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा संघ ने सामाजिक सुरक्षा में बेहतरीन काम के लिए भारत को पुरस्कार प्रदान किया है। इन संगठनों ने भी नई श्रम संहिता को आधुनिक, प्रगतिशील और श्रमिकों के अनुकूल बताया है। इन दूरगामी लाभों के बावजूद, यह स्पष्ट है कि ज्यादातर आलोचना सुधारों की समझ से नहीं, बल्कि उन मजबूत राजनीतिक हितों से होती है जो बदलाव नहीं चाहते हैं। जो लोग असर के लिए पुराने और अस्पष्ट व्यवस्था पर भरोसा करते थे, वे अब एक पारदर्शी, कुशल और श्रमिक-केंद्रित ढांचे से सहज नहीं हैं। इन संहिताओं से आए अच्छे बदलाव को मानने के बजाय, उन्होंने भ्रामक जानकारी फैलाना चुना है।
यह श्रम संहिता भारत के आत्मनिर्भर और विकसित भारत बनने की राह में एक बड़ा बदलाव लाने वाला पड़ाव हैं। ये श्रमिक की गरिमा बनाए रखते हैं, औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करते हैं और एक ऐसा मॉडल बनाते हैं जहां श्रमिकों के अधिकार और सम्मान की रक्षा होती है तथा श्रमिकों को आत्मनिर्भरता बनाते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन और सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास के प्रति प्रतिबद्धता से निर्देशित ये श्रम सुधार एक आधुनिक, लचीली और समावेशी अर्थव्यवस्था की मजबूत नींव रखते हैं जो श्रमिकों और उद्यमों दोनों को भारत के विकास के केंद्र में रखते हैं। श्रमेव जयते!
(लेखक, केंद्र सरकार में मंत्री हैं। यह आलेख पीआईबी के ब्लाग से लिया गया है।)
