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बालासाहेब देवरस: संघ जीवन के समर्पित साधक और दूरदर्शी संगठनकर्ता

Date : 25-Nov-2025

 



मधुकर दत्तात्रेय देवरस, जिन्हें पूरे देश में बालासाहेब देवरस के नाम से जाना जाता है, का जन्म 11 दिसंबर 1915 को नागपुर, महाराष्ट्र में दत्तात्रेय कृष्णराव देवरस और पार्वतीबाई के घर हुआ। उनके भाई भाऊराव देवरस भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के वरिष्ठ प्रचारक थे।

शिक्षा की शुरुआत न्यू इंग्लिश हाई स्कूल से हुई, जहाँ से उन्होंने 1931 में मध्य प्रांत बरार शिक्षा मंडल की मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होंने मोरिस कॉलेज (वर्तमान नागपुर महाविद्यालय) से स्नातक तथा नागपुर विश्वविद्यालय के विधि महाविद्यालय से एल.एल.बी. की उपाधि प्राप्त की।

आरएसएस की स्थापना के समय से ही वे इससे जुड़े रहे। डॉ. हेडगेवार से प्रभावित होकर उन्होंने अपना जीवन संघकार्य के लिए समर्पित कर दिया और प्रचारक बन गए। उनका पहला प्रचारक कार्यकाल विभाजन-पूर्व बंगाल में रहा।

सन 1946 में उन्हें आरएसएस का सहसरकार्यवाह बनाया गया। आगे चलकर 1965 में वे सरकार्यवाह बने। गुरुजी (श्री माधवराव गोलवलकर) के निधन के बाद 5 जून 1973 को बालासाहेब देवरस संघ के तीसरे सरसंघचालक बने।

उनका परिवार मूलतः आंध्र प्रदेश से था, लेकिन नागपुर में बस गया था। परिवार में तीन भाई–बहन थे — एक भाई और दो बहनें।

अस्पृश्यता के विरुद्ध अभियान

बालासाहेब के नेतृत्व में आरएसएस ने अस्पृश्यता के खिलाफ व्यापक आंदोलन शुरू किया। उनका 1974 का प्रसिद्ध कथन—
“यदि अस्पृश्यता गलत नहीं है, तो दुनिया में कुछ भी गलत नहीं है।”
ने स्वयंसेवकों और समाज में नई चेतना जगाई और इस सामाजिक बुराई के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रयास शुरू हुए।

आपातकाल के दौरान नेतृत्व

1975 में आपातकाल लागू होने पर आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। कई स्वयंसेवक और नेता जेल में डाले गए, परंतु बालासाहेब के नेतृत्व में संगठन ने इस कठोर कदम का सशक्त विरोध किया।

जेल में रहते हुए उनका संपर्क कई मुस्लिम संगठनों, विशेषकर जमात-ए-इस्लामी के नेताओं से हुआ। संवाद और व्यवहार से उन्होंने मुस्लिम समाज में आरएसएस को लेकर बनी आशंकाओं को काफी हद तक बदला। दोनों समुदायों के बीच संवाद का नया मार्ग खुला।

संगठनात्मक शैली और योगदान

बालासाहेब की कार्यशैली अत्यंत सरल, संवाद-प्रधान और मार्गदर्शक थी। वे स्वयंसेवकों के बीच बैठकर उनकी शंकाओं और विचारों पर विस्तार से चर्चा करते थे।
उनकी यही शैली संगठनात्मक मजबूती, बौद्धिक संवाद और हिंदू जागरण की धाराओं को दिशा देने में अत्यंत प्रभावी सिद्ध हुई।

उत्तराधिकार और अंतिम समय

1994 में स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने सरसंघचालक पद छोड़ दिया और प्रोफेसर राजेंद्र सिंह को उत्तराधिकारी घोषित किया — यह संघ इतिहास में पहली बार हुआ कि सरसंघचालक ने स्वयं जीवित रहते उत्तराधिकारी का चयन किया।

स्वास्थ्य में निरंतर गिरावट के बाद, 17 जून 1996 को बालासाहेब देवरस का निधन हो गया।

वे एक सच्चे संगठनकर्ता, विचारक और समाज परिवर्तन के साधक के रूप में हमेशा याद किए जाते रहेंगे।

 
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