योगिनी एकादशी निर्जला एकादशी के बाद औऱ देवशयनी एकादशी के पहले आती है।अगर इसकी तिथि की बात करें तो उत्तर भारतीय पंचांग के मुताबिक यह आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष और दक्षिण भारतीय पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष में आती है। इस प्रकार वर्ष मे कम से कम 24 एकादशी हो सकती हैं, परन्तु अधिक मास की स्थति मे यह संख्या 26 भी हो सकती है। इस व्रत का विधि-विधान से पालन करने से सभी तरह की शारीरिक परेशानियां दूर हो जाती हैं।
एकादशी शुभ मुहूर्त-
पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि 13 जून को सुबह 09 बजकर 28 मिनट पर शुरू होगी और 14 जून सुबह 08 बजकर 28 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। अतः 14 दिन को योगिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। साधक प्रातः काल में स्नान-ध्यान करने के पश्चात व्रत संकल्प लेकर विधि विधान से जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा उपासना करें।
पूजा विधि-
उन्होंने आगे कहा कि इस दिन व्रत करने और पूजा-पाठ आदि करने से भगवान विष्णु की कृपा सदैव उन पर बनी रहती है, जिससे वह हर दुख-दर्द, परेशानियों से दूर रहते हैं. इस व्रत को रखने के लिए व्यक्ति सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और व्रत करने का संकल्प लेकर भगवान विष्णु की पूजा, अर्चना, ध्यान, भजन आदि करें. ऐसा करने से व्यक्ति पर भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी की भी कृपा बनी रहती है.
योगिनी एकादशी व्रत का महत्व-
योगिनी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए बेहद शुभफलदायी माना जाता है। मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से आपके जीवन में आनंद और सुख समृद्धि बढ़ती है। इस व्रत को करने पर 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन करवाने के समतुल्य फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत करने वाले के लिए मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग सुगम होता है। इस व्रत को करने वाला व्यक्ति धरती पर सभी प्रकार के सुख भोगता है। परलोक में भी उसका स्थान बेहतर होता है।
योगिनी एकादशी व्रत की कथा
योगिनी एकादशी व्रत की ये कथा काफी प्रचलित है। आग्रह पर स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने कथा का वाचन किया था। भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि हे राजन्! सुनो मैं तुमसे पुराणों में वर्णित योगिनी एकादशी की कथा कहता हूं।
एक बार की बात है जब स्वर्ग लोक में कुबेर नाम का एक राजा रहता था, वो शिव भक्त था। प्रतिदिन नियमित रूप से शिव आराधना करता था। उसका हेम नाम का एक माली था, जो हर दिन पूजा के लिए फूल लाता था। माली की विशालाक्षी नाम की बहुत सुंदर पत्नी थी, जिसके सौंदर्य पर माली आसक्त रहता था। एक दिन प्रातः काल हेम माली मानसरोवर से फूल तोड़ लाया परंतु घर पर अपनी रूपवती स्त्री से मोहित हो गया और दोपहर तक राजा के यहां नहीं पहुंचा। राजा कुबेर को पूजा के लिए विलंब हो गया। विलंब का कारण जानकर कुबेर बहुत क्रोधित हुआ और उसने माली को श्राप दे दिया। कुबेर ने कहा कि तुमने ईश्वर भक्ति से ज्यादा कामासक्ति को प्राथमिकता दी है, तुम्हारा स्वर्ग से पतन होगा और तुम धरती पर स्त्री वियोग और कुष्ठ रोग का कष्ट भोगोगे।
कुबेर के श्राप के फलित होते ही माली हेम धरती पर आ गिरा, उसे कुष्ठ रोग हो गया और उसकी स्त्री भी चली गयी। हेम वर्षों तक पृथ्वी पर अनेकों कष्ट सहता रहा। एक दिन उसे मार्कण्डेय ऋषि के दर्शन हुए। उसने अपनी सारी व्यथा उन्हें सुनाई और अपने प्रायश्चित का मार्ग पूछा। मार्कण्डेय ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी के व्रत के महात्म के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु को समर्पित ये योगिनी एकादशी का व्रत तुम्हारे समस्त पापों को समाप्त कर देगा और तुम पुनः भगवत् कृपा से स्वर्ग लोक को प्राप्त करोगे। हेम, माली ने पूरी श्रद्धा के साथ योगिनी एकादशी का व्रत रखा। भगवान विष्णु ने उसके समस्त पापों को क्षमा करके उसे पुनः स्वर्ग लोक में स्थान प्रदान किया।