चितरंजन दास ने एक वकील, राजनीतिज्ञ और पत्रकार के तौर पर भारत को अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त कराने में जो भूमिका निभाई, उसकी कोई बराबरी नहीं कर सकता है। यही कारण है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।
भारतीय स्वाधीनता संग्राम में चित्तरंजन दास एक ऐसा नाम है, जिससे शायद ही कोई अपरिचित हो। लोग प्यार से उन्हें ‘देशबंधु’ कहकर पुकारते थे। चित्तरंजन दास का जन्म कलकत्ता में 5 नवंबर 1870 को एक उच्च मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता भुवन मोहन दास, कलकत्ता हाई कोर्ट के एक जाने-माने वकील थे और माँ का नाम निस्तारिणी देवी था। एक महत्वपूर्ण राष्ट्रवादी नेता के साथ-साथ वो एक सफल विधि-शास्त्री भी थे। स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान उन्होंने ‘अलीपुर बम काण्ड’ (1908) के अभियुक्त अरविन्द घोष का बचाव किया था। कई और राष्ट्रवादियों और देशभक्तों की तरह इन्होने भी ‘असहयोग आंदोलन’ के अवसर पर अपनी वकालत छोड़ दी और अपनी सारी संपत्ति मेडिकल कॉलेज तथा महिलाओ के अस्पताल को भेंट कर दी । सन् 1890 में बी.ए. पास करने के बाद चितरंजन दास आइ.सी.एस्. होने के लिए इंग्लैंड गए और सन् 1892 में बैरिस्टर होकर स्वदेश लौटे।
वकालत में इनकी कुशलता का परिचय लोगों को सर्वप्रथम 'वंदेमातरम्' के संपादक श्री अरविंद घोष पर चलाए गए राजद्रोह के मुकदमे में मिला और मानसिकतला बाग षड्यंत्र के मुकदमे ने तो कलकत्ता हाईकोर्ट में इनकी धाक अच्छी तरह जमा दी। इतना ही नहीं, इस मुकदमे में उन्होंने जो निस्स्वार्थ भाव से अथक परिश्रम किया और तेजस्वितापूर्ण वकालत का परिचय दिया उसके कारण समस्त भारतवर्ष में 'राष्ट्रीय वकील' नाम से इनकी ख्याति फैल गई। इस प्रकार के मुकदमों में ये पारिश्रमिक नहीं लेते थे।
इन्होंने सन् 1906 में कांग्रेस में प्रवेश किया। सन् 1917 में ये बंगाल की प्रांतीय राजकीय परिषद् के अध्यक्ष हुए। इसी समय से वे राजनीति में धड़ल्ले से भाग लेने लगे। सन् 1917 के कलकत्ता कांग्रेस के अध्यक्ष का पद श्रीमती एनी बेसेंट को दिलाने में इनका प्रमुख हाथ था। इनकी उग्र नीति सहन न होने के कारण इसी साल श्री सुरेंद्रनाथ बनर्जी तथा उनके दल के अन्य लोग कांग्रेस छोड़कर चले गए और अलग से प्रागतिक परिषद् की स्थापना की। सन् 1918 ई. की कांग्रेस में श्रीमती एनी बेसेंट के विरोध के बावजूद प्रांतीय स्थानिक शासन का प्रस्ताव इन्होंने मंजूर करा लिया और रौलट कानून का जमकर विरोध किया।
इस कानून के तहत मजिस्ट्रेट को यह अधिकार दिया गया कि वे किसी भी संदेहयुक्त व्यक्ति को गिरफ्तार कर, उस पर मुकदमा चला सकते हैं। लेकिन गांधी जी ने इस कानून के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन चलाया और मुंबई में ‘सत्याग्रह सभा’ की नींव रखी। इस दौरान उन्हें 1921 में, दास जब जेल में थे, तो उसी वक्त उन्हें कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन का अध्यक्ष चुना गया। ऐसे में हकीम अजमल खाँ ने उनके प्रतिनिधि के रूप में जिम्मेदारी संभाली। लेकिन अब तक वह समझ गए थे, कि अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाने के लिए कुछ अलग प्रयास करने की भी जरूरत है और उन्हें इस पद को अस्वीकार कर दिया। इसके बाद, 1922 में चौरीचौरा कांड ने गांधीजी को अंदर से झकझोर दिया और उन्होंने आंदोलन की दिशा को भटकते देख, असहयोग आंदोलन को स्थगित करने का फैसला कर लिया। उनकी पत्नी बसंती देवी के साथ गिरफ्तार कर लिया। माना जाता है कि वह असहयोग आंदोलन में गिरफ्तार होने वाली पहली महिला थीं। आजादी के नायकों के लिए वह काफी आदरणीय थीं और सुभाष चंद्र बोस तो उन्हें अपनी माँ मानते थे। वह चित्तरंजन दास के साथ छह महीने के लिए जेल में रहीं।
आंदोलन को अवैध घोषित करते हुए गांधी जी को छह साल के लिए गिरफ्तार कर लिया। गांधी जी के गिरफ्तार होने के बाद, सभी स्वाधीनता सेनानियों में निराशा फैल गई और कांग्रेस में बिखराव नजर आने लगा।चित्तरंजन दास का मानना था कि यदि अंग्रेजों को कमजोर करना है, तो भारतीयों को जनता द्वारा निर्वाचित होकर सरकार में शामिल होना होगा। ताकि वे दमनकारी नीतियों का बहिष्कार कर सकें और सरकार पर दवाब बढ़े।
चित्तरंजन दास बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह जितने अच्छे नेता और वकील थे, उतने ही अच्छे लेखक भी। उन्होंने मासिक पत्रिका “नारायण” का लंबे समय तक संचालन किया और धार्मिक पुनर्जागरण को बढ़ावा दिया। जो उस समय आजादी के लिए काफी जरूरी था। वह अंग्रेजी पत्र ‘वंदे मातरम’ के संस्थापक मंडल में रहने के साथ ही, उन्होंने बंगाल स्वराज दल के मुखपत्र ‘फॉरवर्ड’की भी शुरुआत की। नेताजी सुभाष चंद्र बोस उनके अखबार के संपादक थे। आगे चलकर यह अखबार ‘लिबर्टी के नाम से मशहूर हुआ।
पत्रकारिता के अलावा उन्होंने सागरसंगीत, अंतर्यामी, किशोर किशोरी जैसे कई काव्यग्रंथों की भी रचना की और उनका एक और ग्रंथ ‘इंडिया फॉर इंडियन खासा लोकप्रिय हुआ। उन्होंने अरबिंदो घोष के साथ मिलकर अपनी रचना सागरसंगीत का ‘सॉन्ग्स ऑफ द सी ‘नाम से अंग्रेजी में अनुवाद भी किया।
श्री दास के नेतृत्व में स्वराज्य पार्टी ने देश में इतना अधिक प्रभाव बढ़ा लिया कि तत्कालीन भारतमंत्री लार्ड बर्केनहैड के लिए भारत में संवैधानिक सुधारों के लिए चित्तरंजन दास से कोई न कोई समझौता करना ज़रूरी हो गया लेकिन दुर्भाग्यवश अधिक परिश्रम करने और जेल जीवन की कठिनाइयों को न सह सकने के कारण श्री चित्तरंजन दास बीमार पड़ गए और 16 जून, 1925 को उनका निधन हो गया।
मृत्यु से कुछ समय पहले देशबंधु ने अपना घर और उसके साथ की जमीन को महिलाओं के उत्थान के लिए राष्ट्र के नाम कर दिया। अब इस प्रांगण में चित्तरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान स्थित है। दार्जिलिंग स्थित उनका निवास अब एक मात्री-शिशु संरक्षण केंद्र के रूप में राज्य सरकार द्वारा संचालित किया जाता है। दक्षिण दिल्ली स्थित ‘चित्तरंजन पार्क’ क्षेत्र में बहुत सारे बंगालियों का निवास है जो बंटवारे के बाद भारत आये थे।
उनके नाम पर अनेक संस्थानों का नाम रखा गया। इनमे प्रमुख हैं चित्तरंजन अवेन्यू, चित्तरंजन कॉलेज, चित्तरंजन हाई स्कूल, चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स, चित्तरंजन नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट, चित्तरंजन पार्क, देशबंधु कॉलेज फॉर गर्ल्स और देशबंधु महाविद्यालय।
देशबन्धु चितरंजन दास के निधन पर विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने लिखा-
एनेछिले साथे करे मृत्युहीन प्रान।
मरने ताहाय तुमी करे गेले दान॥
चित्तरंजन दास के जीवन से जुडी क्रमगत घटनायें
इंग्लैंड के पार्लियामेंट में चित्तरंजन दास ने भारतीय प्रतिनिधी के लिये आयोजित चुनाव के लिये दादाभाई नौरोजी का प्रचार किया जिसमें दादाभाई जीत गयें।
· 1894 में चित्तरंजन दास ने कोलकाता उच्च न्यायालय में वकीली की।
· 1905 में चित्तरंजन दास स्वदेशी मंडल की स्थापना की।
· 1909 में अलीपुर बॉम्बे मामले में अरविंद घोष की ओर से वे न्यायालय में लड़े इसलिये अरविंद घोष निर्दोष छूट पायें।
· 1914 में ‘नारायण नाम से’ बंगाली भाषा का साप्ताहिक उन्होंने शुरु किया।
· 1917 में बंगाल प्रांतीय राजकीय परिषद के अध्यक्ष थे।
· 1921 और 1922 में अहमदाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कॉग्रेस के अध्यक्ष रहे।
· चित्तरंजन दास ने मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय के साथ स्वराज्य पक्ष की स्थापना की।
· ‘फॉरवर्ड’ दैनिक में वो लेख लिखने लगे, उन्होने ही इसका प्रकाशन किया।
· दास ने शिक्षा के लिए बंग्लादेश में ‘राष्ट्रीय विद्यालय ‘ की शुरुआत की।
· 1924 में वे कलकत्ता महापालिका कें अध्यक्ष हुये।