लखनऊ, 26 दिसम्बर (हि.स.)। ट्रिपल-नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर की सर्वाधिक व्यापकता के कारण दुनिया भर में भारत को इसके केंद्र के रूप में जाना जाता है। सीमित चिकित्सीय उपचार के कारण टीएनबीसी, स्तन कैंसर के सभी उप प्रकारों में सबसे घातक है। इस प्रकार के कैंसर में मेटास्टेसिस (कैंसर का फैलना) जल्दी प्रारम्भ हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पांच साल की जीवित रहने की दर (उत्तरजीविता दर) कम हो जाती है।
सीएसआईआर-सीडीआरआई, लखनऊ के डॉ. दीपक दत्ता एवं उनकी रिसर्च टीम ने हाल ही में एक शोध किया है, जो ब्रेस्ट कैंसर के लिए बहुत ही लाभदायक सिद्ध हो सकता है। काफी समय से माना गया है कि ईजीएच-2 की दमनात्मक (सप्रेसिव मेकेनिज़्म) कार्यविधि टीएनबीसी के प्रसार को निर्धारित करती है परंतु यह अनुसंधान बताता है कि दमनतमक क्रियाविधि के विपरीत ईजीएच-2 हिस्टोन ट्राइमेथाइलेशन द्वारा जीन अपरेगुलेशन करने में भी समर्थ है। उनकी टीम के प्रीक्लिनिकल शोध निष्कर्ष, टीएनबीसी को ईज़ीएच-2 अवरोधकों द्वारा लक्षित करने के लिए एक तार्किक दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।
वार्षिक घटनाओं को ध्यान में रखते हुए, स्तन कैंसर अब भारतीय महिलाओं में पहले स्थान पर है। यह कई उपप्रकारों के साथ एक बहुत ही विषम बीमारी है। तीन अलग-अलग हार्मोन-विकास कारक रिसेप्टर्स (अर्थात, एस्ट्रोजन रिसेप्टर या ईआर, प्रोजेस्टेरोन रिसेप्टर या पीआर (पीआर) और ह्यूमन एपिडर्मल ग्रोथ फैक्टर) की उपस्थिति प्रमुख रूप से स्तन कैंसर उसके उपप्रकार एवं उसके उपचार के तौर-तरीकों को निर्धारित करती है। वैसे अधिकांश मामलों में एंटी-हार्मोन/एचईआर-2 उपचार कारगर है, परंतु एक उपप्रकार ऐसा है, जिसमें तीनों रिसेप्टर्स के ओवरएक्प्रेशन का अभाव पाया जाता है, जिसे ट्रिपल नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर अथवा टीएनबीसी के रूप में जाना जाता है। टीएनबीसी सभी स्तन कैंसर उपप्रकारों में सबसे घातक है क्योंकि इसमें पारंपरिक लक्षित उपचार काम नहीं करते हैं। इसके अलावा, दुर्भाग्य से, भारत को इसकी उच्च व्यापकता के कारण दुनिया की टीएनबीसी राजधानी के रूप में जाना जाता है।
मेटास्टेसिस (अंतः संक्रमण) या ट्यूमर का अन्य अंगों (जैसे यकृत एवं प्लीहा) में फैल जाना 90 फीसदी रोगी मृत्यु दर और रुग्णता के लिए जिम्मेदार है। टीएनबीसी अन्य स्तन कैंसर उपप्रकारों की तुलना में अधिक मेटास्टेसाइज या तेजी से फैलता है, जिसके परिणाम स्वरूप निदान के बाद पांच साल जीवित रहने की दर कम हो जाती है।
डॉ दत्ता के अनुसार, हम टीएनबीसी मेटास्टेसिस (अंतःसंक्रमण) के आणविक विवरण के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। इस अध्ययन के माध्यम से, हम उन आणविक प्रक्रियाओं की पहचान करने का प्रयास कर रहे हैं जो टीएनबीसी के प्रसार-फैलाव के लिए जिम्मेदार हैं। हमारे अध्ययनों से पता चलता है कि ईजीएच-2 की अतिसक्रियता स्तन से यकृत एवं प्लीहा (पेरिटोनियल मेटास्टेसिस) में फैलने में महत्वपूर्ण है। क्रियाविधि अनुरूप अध्ययन करने पर पाया कि वर्तमान में प्रचलित दमनात्मक (सप्रेसिव) क्रियाविधि के बजाए, ईजीएच-2 का कार्यात्मक सक्रियण विशिष्ट जीन की अभिव्यक्ति को बढ़ावा दे सकता है।