देहरादून, 6 नवंबर । उच्च हिमालय क्षेत्र की अत्यधिक सबसे कठिन नंदा राज जात यात्रा के लिए उत्तराखंड सरकार ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यात्रा मार्ग सुधारीकरण के लिए 47 करोड़ 75 लाख रुपये की धनराशि जारी कर दी है। यह यात्रा 12 साल में एक बार होती है और वर्ष 2026 में यात्रा होनी है। मुख्य सचिव आनंद बर्द्धन ने जिलाधिकारी चमोली को यात्रा की व्यवस्था को लेकर एक कार्य योजना पर कार्य करने के भी निर्देश दिए हैं।
उच्च हिमालय क्षेत्र में 5 हजार मीटर से अधिक की ऊंचाई पर अगस्त-सितंबर माह में होने वाली इस यात्रा में यात्री ग्लेशियर, घने जंगल, बुग्याल, ताल, कुंडों की 280 किमी की कठिन यात्रा करते हैं। यात्रा में करीब 22 से 25 दिन का समय लगता है। गढ़वाल व कुमाऊं आराध्य देवी नंदा भगवान शिव तक पहुंचाने की यह यात्रा अत्यंत कठिन तो है, लेकिन यात्रा के सुखद अनुभव जीवनभर की स्मृतियों में शामिल हो जाते हैं। इस बार यात्रा 2026 में होनी है और सरकार के साथ ही स्थानीय प्रशासन और ग्रामीण भी तैयारियों में जुट गए हैं।
गढ़वाल हिमालय की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी नंदा देवी राज जात यात्रा उत्तराखंड में हर 12 साल में एक बार आयोजित की जाने वाली एक पवित्र तीर्थयात्रा है। पार्वती के अवतार, देवी नंदा देवी को समर्पित, यह यात्रा जिसे "लोक जात" भी कहा जाता है। नंदा राज जात यात्रा भगवान शिव की अर्द्धांगिनी पार्वती को उसके ससुराल पहुंचाने से जुड़ी है। इस यात्रा का अग्रेसर एक चार सींग (चौसिंग्या) का खाडू (भेड़) होता है। खाडू के पीछे-पीछे पूरी यात्रा चलती है। लोक मान्यता है कि इस क्षेत्र में यात्रा में शामिल होने वाले चौसिंग्या खाडू का जन्म होता है और माना जाता है कि चार सींग के खाडू का जन्म भी मां नंदा की कृपा से ही होता है। उसे देवी स्वयं चुनती है।
यात्रा का आरंभ होने का इतिहास
गढ़वाल व कुमाऊ में नंदा देवी की ईष्टदेव के रूप में पूजा होती है। दोनों क्षेत्रों में हर गांव व हर परिवार में देवी के मंदिर भी स्थापित हैं और उन्हें श्रद्धा व विश्वास के साथ पूजा जाता है। ढोल-दमाऊ, ढौर थाली, हुड़के की थाप पर देव नृत्य भी पारंपरिक जागरों पर विभिन्न अवसरों पर आयोजित किया जाता है। इन सब में लोक जात्रा को विशेष स्थान दिया गया है। नंदा राज जात यात्रा न सिर्फ एक पैदल यात्रा है बल्कि भक्ति, श्रद्धा, उपासना की एक यात्रा है, जिसमें मां पार्वती को शिव स्थान तक उसके घर पहुंचाना होता है। इतिहास के पन्नों पर नजर दौड़ाए तो चमोली जिले में 12 सालों में होने वाली इस यात्रा की शुरूआत 7वीं सातवीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा शालिपाल ने एक गांव से की थी। 9वीं शताब्दी में राजा कनकपाल के शासन में यात्रा ने बड़ा आकार लिया। इसके बाद कंसुआ के कुंवरों के शाही वंश और नौटी गांव के नौटियालों ने यात्रा को जारी रखा। इसके साथ ही बराह थोगी के नौटिया ब्राहमण के साथ बारह गांव के थोकदारों ने यात्रा को आगे बढ़ायां उसके बाद नेगी व रावत वंश के लोग भी यात्रा में शामिल हुए और वर्तमान में इस यात्रा में देश से ही नहीं विदेशों से भी लोग पहुंचते हैं और नंदा के प्रति अपनी असीम श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
कुमाऊं में नंदा देवी
कुमांऊ में कई राजाओं का उल्लेख मिलता है। बौद्ध और गुरुगौरख नाथ संप्रंदाय के प्रार्दुभाव का यहां अभिलेखों में उल्लेख मिलता है। कुमांऊ में नंदा-सुनंदा की पूजा को उत्सव के रूप में मनाया जाता है और कुमांऊ नंदा देवी यात्रा से जुड़ा हुआ है। चंद राजवंश से पहले भी कुमाऊं में नंदा देवी के पूजा उत्सव होते थे। शुरूआत में नंदा की सिर्फ एक मूर्ति थी लेकिन राजा बहादुर चंद के समय नंदा और सुनंदा दो मूर्तियां को उत्सव में शामिल किया जाना लगा और वर्तमान में नंदा-सुनंदा की मूर्तियां की पूजा होती है। नंदा देवी उत्सव कुमांऊ के अल्मोड़ा, नैनीताल, डांगोली, रानीखेत, किच्छा आदि क्षेत्रों में मनाया जाता है।
अब तक नंदा जात यात्रा
नंदा राज जात समिति के रिकार्ड के अनुसार यह यात्रा वर्ष 1843, 1863, 1886, 1905, 1925, 1951, 1968, 1987 और 2000 में आयोजित की गई। 2013 में भी यात्रा की तैयारी थी, लेकिन तब केदारनाथ आपदा के चलते यात्रा नहीं हो पाई। अब 2026 में एक बार फिर यात्रा की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं।
नंदा देवी यात्रा के पड़ाव
यह यात्रा चमोली जिले के नौटी गांव से शुरू होकर होमकुंड तक होती है। नौगांव से कोटी गांव, बेदनी बुग्याल, रूपकुंड, होमकुंड तक की यह यात्रा है। 280 किमी की यह हिमालयी यात्रा अत्यंत दुर्लभ यात्रा है।
