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प्रचलित जनजातीय शिल्प है - टोकरी कला

Date : 21-Jan-2024

 

आदिवासी समुदाय के लोग जंगलों में निवास करते हैं| छत्तीसगढ़ राज्य के जंगलों में बांस का उत्पादन होता है, जिसका उपयोग हस्तशिल्प और टोकरी बनाने के लिए किया जाता है। इनकी आजीविका वनोपज पर निर्भर करती है|

टोकरी बनाना छत्तीसगढ़ में व्यापक रूप से प्रचलित जनजातीय शिल्प है | टोकरियों के विभिन्न प्रकार और आकार विभिन्न आवश्यकताओं  को पूरा करते हैं जैसे कि वन उपज और बीज ले जाना और आनाज का भंडारण | मंडला के बैगा विवाह की टोकरी सहित 50 विभिन्न प्रकार की टोकरियों बनाते हैं | छत्तीसगढ़ के बंसोड 200 से अधिक बांस की वस्तुएं बनाते हैं, जिनमें विभिन्न प्रकार की टोकरियाँ भी शामिल हैं | बस्तर में जनजातियाँ बिभिन्न प्रकार की सुंदर टोकरियां बनाती हैं | धुरवा, दण्डामी मारिया, भटूरा और मुरिया टोकरी बनाने में सबसे कुशल हैं | रायपुर की कमार जनजाति बांस से टोकरियाँ और मछली जाल, चटाई, चूहे जाल और पक्षी जाल जैसी अन्य वस्तुएं बनाने में कुशल है |

बांस जनजातियों के लिए एक महत्वपूर्ण सामग्री है और इसका उपयोग घरों के निर्माण के साथ-साथ धनुष और तीर, कृषि उपकरणों के हैंडल, जाल और विभिन्न प्रकार की टोकरियां बनाने के लिए किया जाता है |

प्रारंभ में, टोकरियाँ, पंखा और चटाईयां पत्तों से बनाई जाती हैं, लेकिन वे बहुत नाजुक होती थीं | बाद में, पत्तियों की जगह बांस का उपयोग किया जाने लगा जो कि अधिक मजबूत है | बांस की टोकरियाँ हल्की, उपयोगी, सस्ती, मजबूत और टिकाऊ होती हैं |

छत्तीसगढ़ की महिलाएं बांस की 200 से अधिक बस्तुएं बनाते हैं | उनके द्वारा बनाई गई साधारण अर्ध-वृत्ताकार टोकरी को दतिया कहा जाता है और इसका उपयोग वन उपज को बाजारों तक और बीजों को खेतों तक ले जाने के लिए किया जाता है | टोकरी बनाना पुरे परिवारों द्वारा दिया जाने वाला एक शिल्प है |

बांस की टोकरियाँ बनाने के लिए टंगिया/बड़ी कुल्हाड़ी, घोड़ा/फूटी बनाने का उपकरण, चुरी/छोटा चाक़ू और दरांती का उपयोग किया जाता है |  

 

 
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