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रातापानी: देश का आठवां बाघ अभयारण्य, वन्यजीव संरक्षण और पर्यटन को मिलेगा नया आयाम!
Date : 10-Dec-2024
इस अभ्यारण्य के लिये 1976 में पहली बार अधिसूचित किया गया था और 1983 में विस्तार हुआ। वर्ष 2008 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, भारत सरकार ने इसे बाघ रिजर्व घोषित किया। 2012 में वन विभाग ने इस अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व घोषित करने केलिए कार्ययोजना तैयार की और स्वीकृति के लिये मध्यप्रदेश राज्य सरकार को भेजा था। इस अभ्यारण्य में 2019 में वन्यजीवों की गणना की गई। तब 45 बाघ, 10 शावक और 75 से अधिक तेंदुए, मेमल्स की 30 प्रजातियां पाई जाती हैं । छोटे जीवों में गिलहरी, नेवला, गेरबिल, साही, खरगोश, सरीसृपों की प्रजातियों में छिपकलियाँ, गिरगिट, साँप आदि । साँपों की प्रजातियों में, कोबरा, अजगर, वाइपर, करैत आदि भी बड़ी संख्या में हैं। यहाँ पक्षियों की 150 से अधिक प्रजातियाँ हैं। इनमें कॉमन बैबलर, क्रिमसन-ब्रेस्टेड बारबेट, बुलबुल, बी-ईटर, बया, कोयल, किंगफिशर, चील, लार्क, बंगाल गिद्ध, सनबर्ड, सफेद वैगटेल, कौआ तीतर, जंगली कौआ, बगुला, मैना, जंगली मुर्गी, तोता, तीतर, हुपु, बटेर, कठफोड़वा, नीलकंठ, कबूतर, काला ड्रोंगो, फ्लाईकैचर, फूल चोंच और रॉक कबूतर आदि शामिल हैं । इस अभ्यारण्य के जल स्त्रोतों में मछलियों की 15 प्रजातियां तथा सरीसृप की लगभग 8 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनके अतिरिक्त बड़ी संख्या में लकड़बग्घे, सियार, जंगली कुत्ते और लोमड़ी भी पाईं गई थीं। शाकाहारी जीवों में नीलगाय, हिरण, सांभर, भौंकने वाले हिरण, चिंकारा, काला हिरण और बंदर भी बड़ी संख्या में हैं। अभयारण्य में सुस्त भालू भी हैं। मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी समझी जाने वाली नर्मदा नदी मगरमच्छों के लिये जानी जाती है । बरसात में इस अभ्यारण्य की अनेक जल धाराएँ नर्मदा से मिलती हैं। जिससे इस अभ्यारण्य के जलाशयों में मगरमच्छ भी देखे जाते हैं। मगरमच्छ के लिये रातापानी जलाशय एक स्थाई निवास है। यह क्षेत्र राज्य पक्षी पैराडाइज फ्लाईकैचर सहित 150 से अधिक पक्षियों की प्रजातियों का निवास भी है। बरसात के बाद विशेषकर बसंत ऋतु में विश्व के अनेक पक्षियों की पसंद का पर्यटन स्थल भी है यह अभ्यारण्य। इन पक्षियों को अभ्यारण्य के विभिन्न जलाशयों में देखा जा सकता है । इस अभ्यारण्य की एक और विशेषता है । इस अभ्यारण्य में अभी तक वाघों के आपसी संघर्ष की घटना सामने नहीं आई । जबकि मध्यप्रदेश के ही कान्हा और बांधवगढ़ वाघ अभ्यारण्यों से बाघों के आपसी संघर्ष के समाचार अक्सर आते हैं। लेकिन रातापानी अभ्यारण्य से ऐसा कोई समाचार कभी नहीं आये । प्राणी विशेषज्ञों के अनुसार एक बाघ को अपने भ्रमण केलिये 50 से 60 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की आवश्यकता होती है । वाघों की संख्या और अभ्यारण्य के क्षेत्रफल की दृष्टि से रातापानी अभ्यारण्य में वाघों को अपने भ्रमण केलिये पर्याप्त क्षेत्र मिल जाता है । यदि वाघ को उसकी इच्छा के अनुरूप क्षेत्रफल मिल जाय तो वह दूसरे वाघ के क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं करता । भ्रमण के लिये पर्याप्त इलाका मिल जाने से इस अभ्यारण्य के 45 वर्षों के इतिहास में वाघों के संघर्ष की एक भी घटना सामने नहीं आई ।
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