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रातापानी: देश का आठवां बाघ अभयारण्य, वन्यजीव संरक्षण और पर्यटन को मिलेगा नया आयाम!

Date : 10-Dec-2024
मध्यप्रदेश को विकसित प्राँतों में अग्रणी बनाने के संकल्प के साथ कार्य कर रही डा मोहन यादव के प्रयासों को एक और बड़ी सफलता मिली । अब मध्यप्रदेश के रातापानी वन्यजीव अभ्यारण्य को भी "राष्ट्रीय अभ्यारण्य" का दर्जा मिल गया है । यह मध्यप्रदेश आठवाँ अभ्यारण्य है । इसके साथ भारत में राष्ट्रीय अभ्यारण्यों की संख्या बढ़कर 57 हो गयी है । इससे जहाँ वन्यजीव संरक्षण बढ़ेगा वहीं पर्यटकों की संख्या भी बढ़ेगी ।
मध्यप्रदेश की वर्तमान सरकार "विरासत के साथ विकास" मंत्र के साथ काम कर रही है । अर्थात हम विकास तो करें लेकिन अपनी विरासतों को भी सहेजकर। इसी दिशा में भगवान श्रीकृष्ण पाथेय, उज्जैन महाकुंभ की तैयारी, पर्यटन एवं धार्मिक स्थलों के विकास के काम हाथ में लिये हैं। इसी क्रम में मुख्यमंत्री डा मोहन यादव ने प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी और केन्द्रीय सरकार के अन्य अघिकारियों से भेंट की और अब मध्यप्रदेश के इस रातापानी वन्यजीव अभ्यारण्य को "राष्ट्रीय वाघ अभ्यारण्य" के रूप में दर्जा मिला । तकनीकि कारणों से इसकी घोषणा में लगभग सत्रह वर्ष का विलंब हुआ । कुछ विलंब एक याचिका के कारण और कुछ प्रशासनिक तकनीकि से । लेकिन अब समस्त वाधाएँ दूर हो गई और यह मध्यप्रदेश के आठवाँ वाघ अभ्यारण्य बन गया है । मध्यप्रदेश की धरती आकर्षक शैल, शिखर, वन पर्वत और जीवों की विशिष्टता के लिये पहचानी जाती है । विन्ध्याचल, सतपुड़ा और अरावली पर्वत से घिरा यह भूभाग संसार के प्राचीनतम भूभागों में एक है । इसीलिये संसार के विभिन्न पशु पक्षियों के लिये यह धरती आकर्षित करती है । बसंत ऋतु में कितने ही विदेशी पक्षी यहाँ पर्यटन के लिये आते हैं। देश के हृदयप्रांत माने जाने वाले मध्यप्रदेश को "टाइगर स्टेट" का दर्जा तो पहले ही मिला हुआ था । अब राष्ट्रीय स्तर के वाघ अभ्यारण्य में एक और वृद्धि हो गई है । भारत सरकार द्वारा हाल ही दो दिसम्बर को रातापानी वन्यजीव अभ्यारण्य को "राष्ट्रीय वाघ अभ्यारण्य" घोषित करने की अधिसूचना जारी की और इसके साथ ही मध्यप्रदेश सरकार न इसकी अधिसूचना जारी कर दी ।
रातापानी राष्ट्रीय वाघ अभ्यारण्य मध्यप्रदेश के रायसेन और सीहोर जिलों के अंतर्गत भोपाल नागपुर राजमार्ग पर स्थित है । इसी के समीप दिल्ली को दक्षिण भारत से जोड़ने वाला व्यस्ततम रेल मार्ग गुजरता है । मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से इसकी दूरी मात्र 45 किलोमीटर है । यहाँ पहुँचने के लिये सबसे सरल मार्ग भोपाल से या नर्मदापुरम से है । जबकि जबलपुर, सागर या विदिशा से भी पहुँचा जा सकता है । प्राकृतिक दृष्टि से रातापानी अभ्यारण्य विंध्याचल पर्वत श्रृंखला के अंतर्गत विशाल वनक्षेत्र है । विन्ध्याचल पर्वत संसार के प्राचीनतम पर्वतों में से एक है । यह पर्वत तबभी था, जब हिमालय नहीं था । सृष्टि की इस प्राचीनतम पर्वत श्रृंखला के ऑचल में उभरे इस प्राकृतिक अभयारण्य की एक सीमा सदानीरा नर्मदा नदी के किनारों को बहुत लंबी दूरी तक छूती है और एक सीमा कोलार नदी के किनारों से संरक्षित है । प्राकृतिक झरनें, घुमावदार पहाड़ी नदियाँ, छोटी छोटी झीलें, उतार चढ़ाव से भरी प्राकृतिक घाटियाँ इस संपूर्ण परिक्षेत्र की विशेषता है । इसकी प्राकृतिक रचना कुछ ऐसी है जिससे जलचर, नभचर अथवा पृथ्वी पर विचरण करने वाले प्रत्येक प्राणी को न केवल आकर्षित करती है अपितु उनके जीवन वृद्धि और संचालन भी करती है । यह क्षेत्र वनस्पति और वृक्षों की विविधता केलिये भी प्रसिद्ध है । देशभर के विश्वविद्यालयों से वनस्पति विज्ञान के विद्यार्थी यहाँ शोध केलिये आते हैं। 
इस विशाल रातापानी वाघ अभ्यारण्य का रिजर्व रकबा 763.81 वर्ग किलोमीटर एवं बफर रकबा 507.65 वर्ग किलोमीटर है। इस प्रकार इस रातापानी वाघ अभ्यारण्य का कुल रकबा 1271.46 वर्ग किलोमीटर होगा। इस परिक्षेत्र में झिरी बहेड़ा, जावरा मलखार, देलावाड़ी, सुरई ढाबा, पांझिर, कैरी चौका, दांतखो, साजौली एवं जैतपुर राजस्व ग्राम भी हैं। इन ग्रामों का कुल रकबा रकबा 26.947 वर्ग किलोमीटर है । इस राजस्व भूमि को भी अभ्यारण्य के बफर क्षेत्र में शामिल किया गया है। तीनों प्रकार के भूभाग के अंतर्गत लगभग 824 वर्ग किलोमीटर वनक्षेत्र माना जाता है जो वन्यजीवों को विचरण केलिये सुरक्षित माना जाता है । इस संपूर्ण परिक्षेत्र को वाघ अभ्यारण्य घोषित करने से इसके अंतर्गत इन राजस्व ग्रामों के अस्तित्व एवं ग्राम वासियों के अधिकार प्रभावित नहीं होंगे। यह रातापानी वन्यप्राणी अभ्यारण्य का वन क्षेत्र बायोज्योग्राफ़िक वर्गीकरण की दृष्टि से डेकन पेनंसुला जोन में सेंट्रल हाइलेण्ड और विंध्या बघेलखण्ड बायोटिक प्रोविंस की शुष्क पर्णपाती वनक्षेत्र श्रेणी में वर्गीकृत हैं। सामान्यतः यहाँ का मौसम समशीतोष्ट माना जाता है फिर भी वैज्ञानिक दृष्टि से इसकी गणना उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के रूप में होती है । हालाँकि सर्दियों की रात में कभी कभी इसके अंतर्गत कुछ स्थानों का तापमान शून्य डिग्री आसपास भी पहुँच जाता है । फिर भी इस परिक्षेत्र की प्राकृतिक विशेषता यह है कि तापमान का इतना गिरने के बाद भी प्राणियों के जीवन पर संकट नहीं होता । 
अपनी विभिन्न प्राकृतिक विशेषताओं के साथ यह क्षेत्र अपने भीतर अनेक ऐतिहासिक और प्रागैतिहासिक स्मृतियाँ भी संजोये हुये हैं । सुविख्यात पुरातत्वविद वाकणकर जी ने इसके भीतर ढाई लाख वर्ष पुरानी मानव सभ्यता के चिन्ह भी खोजे हैं। जबकि तीस हजार वर्ष पुरानी मानव सभ्यता के पाषाण चित्र भी देखे गये हैं। विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों के शोधकर्ता यहाँ आ चुके हैं।  ऐतिहासिक धरोहरों में मौर्यकाल, गुप्तकाल और परमार कालीन सभ्यता के चिन्ह भी हैं। अतीत की ये सब स्मृतियाँ और प्राकृतिक गुफाएँ भी पर्यटकों का मनमोह लेती हैं। इस अभ्यारण्य के समीप भीमबैठिका शैलाश्रय, बर्रूसोत और नर्मदा घाटों के ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल भी हैं। यह परिक्षेत्र बिनेका केरबना, दाहोद में बेतवा नदी उद्गम स्थल, कैरी महादेव, रणभैंसा चितोरी, इमलाना, देलाबाडी स्थित देलावन, गिन्नौरगढ किला, बडी आमखोह आदि से भी आकर्षक स्थल बना हैं। 
इस अभ्यारण्य के लिये 1976 में पहली बार अधिसूचित किया गया था और 1983 में विस्तार हुआ। वर्ष 2008 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, भारत सरकार ने इसे बाघ रिजर्व घोषित किया। 2012 में वन विभाग ने इस अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व घोषित करने केलिए कार्ययोजना तैयार की और स्वीकृति के लिये मध्यप्रदेश राज्य सरकार को भेजा था। इस अभ्यारण्य में 2019 में वन्यजीवों की गणना की गई। तब 45 बाघ, 10 शावक और 75 से अधिक तेंदुए, मेमल्स की 30 प्रजातियां पाई जाती हैं । छोटे जीवों में गिलहरी, नेवला, गेरबिल, साही, खरगोश, सरीसृपों की प्रजातियों में छिपकलियाँ, गिरगिट, साँप आदि । साँपों की प्रजातियों में, कोबरा, अजगर, वाइपर, करैत आदि भी बड़ी संख्या में हैं। यहाँ पक्षियों की 150 से अधिक प्रजातियाँ हैं। इनमें कॉमन बैबलर, क्रिमसन-ब्रेस्टेड बारबेट, बुलबुल, बी-ईटर, बया, कोयल, किंगफिशर, चील, लार्क, बंगाल गिद्ध, सनबर्ड, सफेद वैगटेल, कौआ तीतर, जंगली कौआ, बगुला, मैना, जंगली मुर्गी, तोता, तीतर, हुपु, बटेर, कठफोड़वा, नीलकंठ, कबूतर, काला ड्रोंगो, फ्लाईकैचर, फूल चोंच और रॉक कबूतर आदि शामिल हैं । इस अभ्यारण्य के जल स्त्रोतों में मछलियों की 15 प्रजातियां तथा सरीसृप की लगभग 8 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनके अतिरिक्त बड़ी संख्या में लकड़बग्घे, सियार, जंगली कुत्ते और लोमड़ी भी पाईं गई थीं। शाकाहारी जीवों में नीलगाय, हिरण, सांभर, भौंकने वाले हिरण, चिंकारा, काला हिरण और बंदर भी बड़ी संख्या में हैं। अभयारण्य में सुस्त भालू भी हैं। मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी समझी जाने वाली नर्मदा नदी मगरमच्छों के लिये जानी जाती है । बरसात में इस अभ्यारण्य की अनेक जल धाराएँ नर्मदा से मिलती हैं। जिससे इस अभ्यारण्य के जलाशयों में मगरमच्छ भी देखे जाते हैं। मगरमच्छ के लिये रातापानी जलाशय एक स्थाई निवास है। यह क्षेत्र राज्य पक्षी पैराडाइज फ्लाईकैचर सहित 150 से अधिक पक्षियों की प्रजातियों का निवास भी है। बरसात के बाद विशेषकर बसंत ऋतु में विश्व के अनेक पक्षियों की पसंद का पर्यटन स्थल भी है यह अभ्यारण्य। इन पक्षियों को अभ्यारण्य के विभिन्न जलाशयों में देखा जा सकता है । इस अभ्यारण्य की एक और विशेषता है । इस अभ्यारण्य में अभी तक वाघों के आपसी संघर्ष की घटना सामने नहीं आई । जबकि मध्यप्रदेश के ही कान्हा और बांधवगढ़ वाघ अभ्यारण्यों से बाघों के आपसी संघर्ष के समाचार अक्सर आते हैं। लेकिन रातापानी अभ्यारण्य से ऐसा कोई समाचार कभी नहीं आये । प्राणी विशेषज्ञों के अनुसार एक बाघ को अपने भ्रमण केलिये 50 से 60 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की आवश्यकता होती है । वाघों की संख्या और अभ्यारण्य के क्षेत्रफल की दृष्टि से रातापानी अभ्यारण्य में वाघों को अपने भ्रमण केलिये पर्याप्त क्षेत्र मिल जाता है । यदि वाघ को उसकी इच्छा के अनुरूप क्षेत्रफल मिल जाय तो वह दूसरे वाघ के क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं करता । भ्रमण के लिये पर्याप्त इलाका मिल जाने से इस अभ्यारण्य के 45 वर्षों के इतिहास में वाघों के संघर्ष की एक भी घटना सामने नहीं आई ।
रातापानी अभ्यारण्य को राष्ट्रीय वाघ अभ्यारण्य का दर्जा मिलने के बाद वन विभाग यहां सफारी पाइंट 2 से बढ़ाकर 5 करने जा रहा है। अभी रातापानी में झिरी बहेड़ा और गिन्नौरी गेट से टाइगर सफारी होती है। लेकिन अब जल्द ही नर्मदापुरम रोड पर बरखेड़ा गेट, रेहटी मार्ग पर करमई गेट और जबलपुर रोड पर स्थित घोड़ापछाड़ गेट से भी टाइगर सफारी शुरू करने की तैयारी है। रातापानी टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में मौजूद विश्व विरासत स्थल भीमबैठका में पर्यटन गतिविधियां पहले की तरह ही जारी रहेंगी। इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे । रातापानी राष्ट्रीय वाघ अभ्यारण्य में अब सुरक्षा श्रमिकों और टूरिस्ट गाइड की संख्या भी बढ़ेगी । वर्तमान आकलन के अनुसार 120 फॉरेस्ट बीट के अनुसार 120 सुरक्षा श्रमिक और लगभग इतने ही गश्ती चौकीदारों की नियुक्ति होगी। इससे लगभग 250 स्थानीय ग्रामीणों की सुरक्षा श्रमिक और गश्ती चौकीदार के रूप में और 200 टूरिस्ट गाइड की आवश्यकता होगी।
मध्यप्रदेश के रातापानी वन्यजीव अभ्यारण्य को राष्ट्रीय वाघ अभ्यारण्य का दर्जा देने केलिये मुख्यमंत्री डा मोहन यादव ने प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी के प्रति आभार व्यक्त किया है । डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि रातापानी सैंक्चुअरी टाइगर रिजर्व बफर एरिया घोषित होने से मध्यप्रदेश अब वास्तविक रूप में टाइगर स्टेट बन गया है। यह मध्यप्रदेश केलिये बड़ी सौगात है। केन्द्र सरकार के अनुमोदन के बाद रातापानी, मध्यप्रदेश का 8वां टाइगर रिजर्व क्षेत्र घोषित हो गया है। इसके लिये डॉ. मोहन यादव ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का विशेष आभार माना है और कहा है कि प्रधानमंत्री जी ने मध्यप्रदेश के हितों और विशेषकर वन्य जीवों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए सदैव प्राथमिकता दी है, जिसके परिणामस्वरूप श्योपुर के कूनो में चीते और अब रातापानी को टाइगर बफर क्षेत्र का अनुमोदन मिला है ।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि रातापानी सैंक्चुअरी टाइगर रिजर्व बफर जोन की विशेष बात यह है कि यह देश का एकमात्र ऐसा टाइगर रिजर्व है जो प्रदेश की राजधानी भोपाल समीप है। इससे यह माना जा सकता है कि राजधानी इस अभयारण्य का हिस्सा है। इस अभयारण्य परिक्षेत्र में रायसेन, भोपाल और सीहोर जिले का क्षेत्र भी आएगा। यहां लगभग 90 से ज्यादा बाघ और अन्य वन्य जीव भी हैं। उन्होंने कहा कि रातापानी को टाइगर रिजर्व घोषित करने से पर्यटन को प्रोत्साहन मिलेगा। टाइगर रिजर्व का संपूर्ण कोर क्षेत्र रातापानी अभयारण्य की सीमा के भीतर है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि ग्रामीणों के वर्तमान अधिकार में कोई परिवर्तन नहीं होगा बल्कि स्थानीय ग्रामीणों को पर्यटन से रोजगार के नये अवसर मिलेंगे और उन्हें आर्थिक रूप से लाभ भी मिलेगा। मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा टाइगर भी हैं और टाइगर पार्क भी हैं।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि रातापानी टाइगर रिजर्व घोषित होने से राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण, केंद्र सरकार एवं राज्य द्वारा आवंटित बजट से वन्य-प्राणियों का और बेहतर ढंग से प्रबंधन किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि इससे रातापानी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी तथा राजधानी भोपाल की पहचान टाईगर कैपिटल के रूप में होगी।
 
 
 
 
 
 
 
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