Quote :

किसी भी व्यक्ति की वास्तविक स्थिति का ज्ञान उसके आचरण से होता हैं।

Travel & Culture

मैक्लोडगंज

Date : 23-Jan-2023

 मैक्लोडगंज का इतिहास

 

 

 

19वीं शताब्दी में बसा हुआ मैक्लोडगंज शहर वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक माना जाता है। वैसे तो मैक्लोडगंज, धर्मशाला का एक उपनगर है। लेकिन एक पर्यटक स्थल के रूप में यह खूबसूरत शहर अपनी एक अलग पहचान रखता है। हिमालय की धौलाधार पर्वतश्रृंखला में स्थित मैक्लोडगंज सभी तरह के पर्यटकों के लिए एक आदर्श पर्यटक स्थल माना जाता है। 

 

 

 

अगर आप अपनी दैनिक दिनचर्या से हटकर कर कुछ रोमांचक करना चाहते है तो मैक्लोडगंज के आसपास कुछ ऐसी जगह है जहाँ पर आप अपने रोमांच की भूख को शांत कर सकते है। इसके अलावा अगर आप अपनी भागदौड़ वाली जीवन शैली से दूर कुछ सुकून भरे पल बिताना चाहते है तो यहाँ पर बने हुए बौद्ध मठ आपको आंतरिक शांति प्रदान कर सकते है। 

 

एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल होने के साथ-साथ मैक्लोडगंज हिमाचल के गद्दी समुदाय और बौद्ध धर्म अनुयायियों के लिए एक धार्मिक तीर्थ स्थल भी है। पूरे साल बौद्ध धर्म मे विश्वास रखने वाले लोग मैक्लोडगंज में बने हुए बौद्ध मठों की यात्रा करते रहते है। इसके अलावा मैक्लोडगंज में तिब्बत से आये हुए 14वें दलाई लामा का निवास स्थान बना हुआ है इस वजह से भी बौद्ध धर्म अनुयायी इस शहर की यात्रा करना पसंद करते है। 

मैक्लोडगंज के स्थानीय निवासियों में आपको हिमाचल के गद्दी समुदाय और तिब्बत से आये हुए शरणार्थियों की संख्या ज्यादा देखने को मिल सकती है। स्थानीय निवासियों के अलावा मैक्लोडगंज में आपको कुछ ऐसे विदेशी नागरिक भी दिखाई दे सकते है जो कि आये तो यहाँ पर घूमने के लिए थे लेकिन इस जगह की खूबसूरती ने उन लोगों को वापस अपने देश लौटने नहीं दिया। 

वर्तमान में जितने भी विदेशी नागरिक मैक्लोडगंज में रहते है उन सभी लोगों ने यहाँ पर अपना जीवनयापन करने के लिए रेस्टोरेंट या फिर शॉप्स खोल ली है। कुल मिला कर धर्मशाला का इस उपनगर मैक्लोडगंज ने अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही सभी तरह के लोगों का दिल खोल कर स्वागत किया है। मैक्लोडगंज जितना प्राकृतिक रूप से विविध है उससे कहीं ज्यादा विविधता आपको यहाँ के स्थानीय निवासियों में देखने को मिलती है। 

यही सामाजिक विविधिता मैक्लोडगंज का एक खूबसूरत पर्यटक स्थल बनाती है, जहाँ पर आपको सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई दूसरे देशों की संस्कृति को महसूस करने का मौका मिलता है। बस आपको इस बात का ख्याल रखना है कि जब आप मैक्लोडगंज घूमने जाएं आप एक ट्रेवलर बन कर जाएं ना कि एक टूरिस्ट…

अघंजर महादेव 

मैक्लोडगंज से 12 किलोमीटर पहले एक गांव आता है खनियारा । खनियारा गांव में एक प्राचीन शिव मंदिर बना हुआ है जिसके लिए कहा जाता है की इस प्राचीन मंदिर का निर्माण महाभारत काल में पांडवों ने करवाया था। यह प्राचीन शिव मंदिर यहाँ पर अघंजर महादेव के नाम से जाना जाता है। मंदिर निर्माण से जुडी हुई पौराणिक कथा के अनुसार बराह पर्व के समय जब पांडवों का अज्ञातवास मिला हुआ था तब अर्जुन ने भगवान शिव से पशुपति अस्त्र प्राप्त करने के लिए यहाँ पर एक गुफा में गुप्तेश्वर महादेव की स्थापना की थी। 

उसके बाद जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था तब सभी पांडव अपने द्वारा किये गए पापों  से मुक्त होने के लिए हिमालय पर्वत की यात्रा पर निकल गये उस समय रास्ते में अर्जुन ने दोबारा गुप्तेश्वर महादेव के दर्शन किये और अपने भाइयों के साथ मिल कर  इस स्थान पर अघंजर महादेव मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर के निर्माण का पीछे  मुख्य कारण  यह माना जाता है की महाभारत के युद्ध के समय पांडवों ने अपने भाइयों, गुरुओं और पूर्वजों का वध किया था। 

इस कारण सभी भाई अपने आप को पाप का भागी मानते थे, और अपने इन्ही पापों से मुक्ति पाने के लिए पांडवों ने इस स्थान पर अघंजर महादेव मंदिर का निर्माण करवाया। अघंजर महादेव मंदिर में महाराजा रणजीत सिंह से जुड़े हुए इतिहास का उल्लेख भी मंदिर परिसर में बने हुए शिलालेख पर किया गया है। मंदिर परिसर में एक तीन सौ साल पुराने शिलालेख पर महाराजा रणजीत सिंह की इस मंदिर से जुडी हुई यात्रा का वर्णन किया गया है, शिलालेख के अनुसार महाराजा रणजीत सिंह एक बार शिकार करते हुए भटक गए और गलती से इस प्राचीन अघंजर महादेव मंदिर के पास पहुँच गए। 

अघंजर महादेव मंदिर के पुजारी से महाराजा रणजीत सिंह इतने ज्यादा प्रभावित हुए की उसके बाद उन्होंने कई बार इस प्राचीन शिव मंदिर की यात्रा की थी। अघंजर महादेव मंदिर में एक अखंड धुना है जो की लगातार जलता रहता है। अघंजर महादेव मंदिर की यात्रा के समय श्रद्धालु गुफा में बने हुए गुप्तेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन जरूर करते है। इस प्राचीन मंदिर की प्रसिद्धि का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है की बहुत सारे विदेशी यात्री भी अघंजर महादेव मंदिर की नियमित रूप से यात्रा करते है 

कालचक्र मंदिर

मैक्लोडगंज के मुख्य शहर से मात्र 2.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कालचक्र मंदिर का निर्माण 1992 में करवाया गया था। बौद्ध धर्म और तिब्बती समुदाय से जुड़ा हुआ कालचक्र मंदिर श्रद्धालुओं और पर्यटकों में बेहद प्रसिद्ध है। यह मंदिर समय की अवधारणा पर आधारित है इसलिए इसे कालचक्र मंदिर कहा जाता है। 

मंदिर के भीतरी भाग में बने हुए 722 भित्ति चित्र बौद्ध धर्म से जुड़े हुए देवताओं और केंद्रीय कालचक्र छवि को दर्शाते हैं। कालचक्र मंदिर की दीवारों और स्तम्भों पर तिब्बत की प्राचीन थंगका शैली से चित्रों को उकेरा गया है। भित्ति चित्रों के अलावा मंदिर में शाक्यमुनि बुद्ध की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। कालचक्र मंदिर परिसर में पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए एक पुस्तकालय और एक कैफ़े भी बना हुआ है।

तिब्बती कैलेंडर के तीसरे महीने के 15वें दिन इस मंदिर में वार्षिकोत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमे भाग लेने के लिए बड़ी संख्या में बौद्ध और तिब्बती समुदाय से जुड़े हुए लोग कालचक्र मंदिर आते है। प्राचीन तिब्बत शैली से तैयार किये गए कालचक्र मंदिर के आंतरिक सजावट किसी भी व्यक्ति को मंत्रमुग्ध करने में सक्षम है।

कालचक्र मंदिर मैक्लोडगंज में स्थित थेक्चेन चोलिंग मंदिर परिसर के भीतरी भाग में बना हुआ है। पर्यटकों में कालचक्र मंदिर आश्चर्यजनक भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है। 

नेचुंग मठ

 मैक्लोडगंज में स्थित नेचुंग मठ बौद्ध और तिब्बती लोगों के लिए धार्मिक आस्था का बड़ा केंद्र माना जाता है। मुख्य शहर से मात्र 3.4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह नेचुंग मठ बौद्ध और तिब्बती समुदाय के लोगों के लिए ऐतिहासिक महत्व भी रखता है। नेचुंग मठ अन्य बौद्ध मठों से एकदम अलग है, इस मठ में पूर्व-बौद्ध संस्कार, नेचुंग कब्जे और भूत भगाने वाली क्रियाएँ ज्यादा की जाती है। 

इस वजह से इस मठ का माहौल थोड़ा डरावना भी लगता है। इन सभी क्रियाओँ के अलावा मठ के आंतरिक भाग में जितनी भी कलाकृतियां और भित्ति चित्र बनाई गए है वह भी अन्य बौद्ध मठों से बिल्कुल अलग बनाये गए है। मठ में भीतरी भाग में चमकदार अजीब आकृतियाँ बनाई गई है। चमकीली आकृतियों के अलावा मठ में नागों और मानवों की पेंटिंग, सिर और पैर की पेंटिंग और पतले कपड़ों की माला के साथ क्रोधी देवताओं की कलाकृतियां भी बनाई गई है। 

मठ के मुख्य हॉल के स्तम्भों पर बौद्ध धर्म के पौराणिक जानवरों की आकृतियाँ भी उकेरी गई है जैसे कुंडली लगाए हुए साँप और ड्रैगन। नेचुंग मठ 1959 तक तिब्बत की ओरेकल सीट थी, इसके अलावा यह भी माना जाता है कि नेचुंग परम पावन दलाई लामा और तिब्बत के रक्षक देवता है। इस वजह से बौद्ध और तिब्बत के इतिहास में नेचुंग को बहुत ज्यादा महत्व दिया गया है। 

18वीं शताब्दी में नेचुंग ने तिब्बती सरकार के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शक के तौर पर काम किया था। बौद्ध और तिब्बती सम्प्रदाय के लोग नेचुंग को कुटेन भी कहते है। ऐसा माना जाता है की जब कोई माध्यम ट्रान्स जैसी स्थिति में पहुँच जाता है तो रक्षक देवता माध्यम के शरीर पर कब्जा कर लेते है और वर्तमान दलाई लामा और तिब्बती नेताओं को सलाह और भविष्यवाणी करके बताते है। 

1959 से पहले तिब्बत के ल्हासा के मूल नेचुंग मठ में 115 भिक्षु रहा करते थे लेकिन 1959 की क्रांति के बाद सिर्फ 06 बौद्ध भिक्षु तिब्बत से भारत भाग कर आने में सफल हुए। उसके बाद तत्कालीन भारत सरकार ने उन भिक्षुओं को यहाँ पर नेचुंग मठ बनाने के लिए अनुमति प्रदान की। उसके बाद 1977 में नए नेचुंग मठ का निर्माण शुरू किया गया और 1984 में यह मठ बन कर पूरी तरह से तैयार हो गया। 

नेचुंग मठ से जुड़े हुए धार्मिक महत्व के कारण आसपास के सभी बौद्ध सम्प्रदाय के लोग इस मठ की यात्रा करते रहते है।

नड्डी गाँव

मैक्लोडगंज से मात्र 04 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नड्डी गांव हिमालय की धौलाधार पर्वत श्रृंखला में स्थित एक बेहद खूबसूरत गाँव है। समुद्रतल से 2180 मीटर (7154 फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित नड्डी गाँव अपने यहाँ से दिखाई देने वाले खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों की वजह से पर्यटकों में बेहद प्रसिद्ध है। 

अधिकांश पर्यटक ट्रैकिंग करके इस गाँव की यात्रा करना बहुत पसंद करते है। दलाई लामा की वजह से भी नड्डी गाँव को एक अलग पहचान मिली है। स्वयं दलाई लामा भी इस गाँव बेहद पसंद करते है और वर्ष में कई बार वह नड्डी गाँव में समय बिताने के लिए जाते है। अगर आप की किस्मत अच्छी रही तो आप यहाँ पर दलाई लामा से भी मिल सकते है। 

अगर आप को ट्रैकिंग पसंद है तो आप को मैक्लोडगंज से नड्डी गाँव की पैदल यात्रा जरूर करना चाहिए। वर्ष के अप्रैल महीने से लेकर अक्टूबर महीने को नड्डी गाँव की यात्रा का सबसे अच्छा समय माना जाता है। बाकी आप पूरे साल कभी भी नड्डी गांव घूमने जा सकते है। बस आपको मानसून के मौसम में विशेष सावधानी बरतनी होगी

लाहेश गुफा

त्रिउंड से लगभग 3.4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लाहेश गुफा रोमांचक और साहसिक गतिविधि पसंद करने वाले यात्रियों की पसंदीदा जगहों में से एक है। लाहेश गुफाएँ मूल रूप से एक कैंपिंग ग्राउंड है। समुद्रतल से 3500 मीटर (11482 फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित लाहेश गुफा मैक्लोडगंज के पास स्थित सबसे लोकप्रिय और साहसिक स्थलों में से एक है। 

लाहेश गुफाओं के बारे में बहुत ही कम यात्रियों को पता होता है। इसलिए अधिकांश यात्री मैक्लोडगंज या फिर धर्मकोट से त्रिउंड तक ही यात्रा करते है। असली रोमांचक और साहसिक गतिविधि पसंद करने वाले यात्री अपनी त्रिउंड यात्रा के साथ-साथ लाहेश गुफा की यात्रा भी जरूर करते है। लाहेश गुफा हिमालय की धौलाधार पर्वतश्रृंखला के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से चारों तरफ से घिरी हुई है। 

इसके अलावा इस जगह के आसपास के क्षेत्र में हरे-भरे शंकुधारी वन भी है जो इस जगह को और भी रोमांचक बना देते है। लाहेश गुफा तक पहुंचने के दो मुख्य रास्ते है पहला रास्ता मैक्लोडगंज से होकर जाता है और दूसरा रास्ता धर्मकोट से गालु देवी मंदिर होते हुए जाता है। धर्मकोट से लाहेश गुफा के रास्ता मैक्लोडगंज से 02 किलोमीटर छोटा है। 

तिब्बत संग्रहालय

मैक्लोडगंज के मुख्य शहर से मात्र 2.4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तिब्बत संग्रहालय केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सूचना और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विभाग का आधिकारिक संग्रहालय है। यह संग्रहालय मैक्लोडगंज में स्थित त्सुगलाक्खांग के मुख्य मंदिर के पास में ही बना हुआ है। 

तिब्बत संग्रहालय में चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जे और चीन द्वारा किये जा रहे मानव अधिकारों के हनन के प्रति लोगों में जागरूकता लाना है। इसके अलावा इस संग्रहालय में तिब्बत की संस्कृति और इतिहास के बारे में भी बताया जाता है। तिब्बत संग्रहालय में अब तक 30000 चित्रों का संग्रह किया जा चुका है और इसके अलावा संग्रहालय में एक यात्रा प्रदर्शनी और तिब्बत निर्वासित होने के बाद के दस्तावेजों के संग्रह किया गया है। 

करेरी झील

 

 

 

हिमालय की धौलाधार पर्वतश्रृंखला में स्थित मनकियानी चोटी से पिघली हुई बर्फ के पानी से निर्मित करेरी झील मैक्लोडगंज पास स्थित सबसे खूबसूरत स्थानों में से एक है। करेरी झील के पास में गद्दी जाती के लोगों एक गाँव है जिसका नाम करीरी है, इस गाँव के नाम पर ही इस झील का नाम करेरी झील रखा गया है। 

 

 

 

करीरी गाँव की इस झील से दूरी लगभग 09 किलोमीटर है। कांगड़ा जिले में स्थित ये झील धौलाधार पर्वतश्रृंखला की ताजा और मीठे पानी की झील है। ताजा पानी की झील होने की वजह से इस झील का पानी बिलकुल साफ और पारदर्शी है। इस झील का पानी इतना साफ है कि आप अपनी नंगी आँखों से इस झील का तल देख सकते है। करेरी झील की समुद्रतल से ऊँचाई 2934 मीटर (9625 फ़ीट) है। 

 

धौलाधार पर्वतश्रृंखला में स्थित करेरी झील मैक्लोडगंज के पास स्थित सबसे शानदार ट्रैकिंग डेस्टिनेशन में से एक मानी जाती है। अत्यधिक ठंड की वजह से यह झील दिसंबर से लेकर अप्रैल महीने तक पूरी तरह से जमी हुई रहती है। झील के पास में स्थित एक पहाड़ को चोटी पर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर भी बना हुआ है। झील से कुछ किलोमीटर की दूरी गद्दी जाती के लोगों के पुराने घर भी बने हुए है। 

कांगड़ा घाटी

 

अगर आपको धौलाधार पर्वतश्रृंखला की खूबसूरती को नज़दीक से देखना है तो आपको मैक्लोडगंज से शुरू होने वाले कांगड़ा घाटी ट्रेक पर जरूर जाना चाहिए। कांगड़ा घाटी ट्रेक के दौरान आप धौलाधार पर्वतश्रृंखला के बर्फ़ीले पहाड़ो के अलावा सुंदर झीलों, प्राचीन मंदिरों और कई पुराने हिन्दू गाँव को नज़दीक से देखने का मौका मिलता है। 

कांगड़ा घाटी का ट्रैक मैक्लोडगंज से शुरू होकर करेरी झील और करीरी गांव से होकर गुजरता है। कांगड़ा घाटी ट्रेक भी एक मध्यम कठिनाई वाला ट्रेक है, ट्रेक के दौरान आप विशाल पेड़ों के जंगलों और खड़ी ढलानों से होकर गुजरना पड़ता है। मैक्लोडगंज से शुरू होने वाला कांगड़ा घाटी ट्रेक मैक्लोडगंज में करने वाली सबसे अच्छी चीज़ों में से एक माना जाता है। 

कांगड़ा घाटी ट्रेक करने का सबसे अच्छा समय मार्च से लेकर अक्टूबर तक माना जाता है। 

 

 

 

लाका ग्लेशियर

 

 

 

मैक्लोडगंज के पास में स्थित लाका ग्लेशियर ने वर्तमान में पर्यटन के क्षेत्र में बहुत लोकप्रियता प्राप्त की है। समुद्रतल से 3200 मीटर (10498 फ़ीट) की ऊँचाई पर स्थित लाका ग्लेशियर से घाटी के बेहद आश्चर्यजनक और शानदार दृश्य दिखाई देते है। आप त्रिउंड ट्रेक करते समय लाका ग्लेशियर के ट्रेक को भी अपनी बकेट लिस्ट में शामिल कर सकते है। 

 

लाका ग्लेशियर के सबसे खास बात यह है कि यह ग्लेशियर धौलाधार पर्वतश्रृंखला की स्नो लाइन के एकदम पास में स्थित है। अगर आप लंबे समय के लिए मैक्लोडगंज आये है तो आपको त्रिउंड ट्रेक करते समय लाका ग्लेशियर ट्रेक भी पूरा करना चाहिये। यह एक ऐसा ट्रेक है जो कि आपको अपने जीवन के सबसे शानदार दृश्य दिखा सकता है। 

लाका ग्लेशियर जुलाई के बाद पिघलना शुरू हो जाता है और मानसून पूरा होते-होते इस ग्लेशियर की सारी बर्फ़ पिघल जाती है। अगर आप को इस ग्लेशियर पर बर्फ़ के समय ट्रेक करना है तो मार्च से लेकर जून का समय सबसे अच्छा माना जाता है।मैक्लोडगंज में भागसूनाग मंदिर और त्रिउंड होते हुए आप लाका ग्लेशियर तक पहुँच सकते है। 

इस ग्लेशियर तक ट्रेक करते समय आप ओक, रोडोडेंड्रोन और देवदार के विशाल पेड़ों से होते हुए त्रिउंड के घास के मैदानों तक पहुँचते है। त्रिउंड ट्रेक पूरा करने के बाद लाका ग्लेशियर का ट्रैक शुरू कर सकते है। 

 

तिब्बती इंस्टीट्यूट ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स

क्लोडगंज में स्थित तिब्बती इंस्टीट्यूट ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स (टीआईपीए) की स्थापना स्वयं दलाई लामा ने तिब्बत के पारम्परिक तिब्बती नृत्य, संगीत, संस्कृति और कला को जीवित रखने के लिए की थी। आप अपनी मैक्लोडगंज यात्रा के समय तिब्बती इंस्टीट्यूट ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स (टीआईपीए) में आयोजित किये जाने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों को जरूर देखें। 

इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों के कारण आप तिब्बत की संस्कृति और कला को नज़दीक से जानने का मौका भी मिलेगा और आपको एक अलग तरह का अनुभव भी प्राप्त होगा। इस इंस्टिट्यूट में प्रति वर्ष 10 दिवसीय वार्षिक उत्सव का आयोजन किया जाता है। 

यहाँ आयोजित किये जाने वाले कार्यक्रमों में कलाकारों द्वारा पारम्परिक वेशभूषा पहन कर नृत्य और गायन की प्रस्तुतियां दी जाती है। इन सब के अलावा तिब्बती लोक गीत, मूर्खों, चुड़ैलों और योगियों की दिलचस्प कहानियाँ सुनाई जाती है।

 

 

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload









Advertisement